Chaitra Navratri 2025: काली खोह मंदिर में तंत्र साधना है बेहद फलदायी, रहस्य कर देगा हैरान

Chaitra Navratri 2025
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Chaitra Navratri 2025
काली खोह मंदिर तंत्र साधना के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यहां देशभर के तांत्रिकों का नवरात्र में आगमन होता है।

Navratri 2025: पौराणिक समय से ही शक्ति की आराधना के लिए दिन पर्वत की श्रेणी बहुत ही प्रसिद्ध है। मां शारदा पीठ के ज्योतिषाचार्य डॉक्टर मनीष गौतम ने बताया कि यहां पर विश्व प्रसिद्ध मां विंध्यवासिनी के साथ ही माता अष्टभुजी और माता महाकाली के दिव्य मंदिर विराजमान है। महाकाली मंदिर को लोग कालीखोह सिद्ध पीठ के नाम से जानते हैं।

काली खोह मंदिर तंत्र साधना के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यहां देशभर के तांत्रिकों का नवरात्र में आगमन होता है। सप्तमी तिथि को मां के विकराल स्वरूप माता महाकाली को रात्रि के दिन सभी तांत्रिक साधना करते हैं।

जानें मान्यता
माता के भक्त पूरी श्रद्धा एवं विश्वास के साथ मां का दर्शन करने प्रति नेहा आते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां पर तंत्र विधाओं की बहुत ही आसानी से रिद्धि सिद्धि प्राप्त हो जाती है। इस वजह से देश भर के तांत्रिक का यहां पर बहुत बड़ा जमा बाद रात में एवं साल भर बना रहता है भक्त यहां पर अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए मां की पूजा आराधना खुद करते हैं और ब्राह्मणों द्वारा करते है।

इस मंदिर की सबसे अलग विशेषता यह मानी जाती है, की माता यहां पर खिचड़ी मुद्रा में यानी की माता का मुंह ऊपर आसमान की ओर हैपुराने के अनुसार जब रक्त बीज नमक दाना उन्हें स्वर्ग लोक पर अपना कब्जा जमा लिया था तभी सभी देवी देवताओं को वहां से उसने मार कर भगा दिया था तब ब्रह्मा विष्णु और महेश सहित अन्य देवताओं ने माता की पूजा आराधना एवं प्रार्थना की की मां विंध्यवासिनी में महाकाली ने आकर ऐसा अपना रूप धारण किया और उनको उनके कासन से मुक्ति दिलाई।


रक्तबीज नामक दानव को ब्रह्मा जी ने यह वरदान दिया था कि अगर उसका एक भी शरीर का बूंद खून के रूप में धरती पर गिरेगा तो उसे हजारों लाखों दाना पैदा हो जाएंगे। इसी दानव के बाद हेतु माता महाकाली ने उसके रक्त का पान करने के लिए अपने मुंह ऊपर की ओर खोल देता था जिससे उसके खून का एक भी बहुत धरती पर नागिन ना पाए रक्तबीज नामक दानव का वध करने के बादमाता का ऐसा रूप देखने को मिलाकहा यह जाता है की माता के मुख में चाहे जितना भी प्रसाद खिला दिया जाए वह कहां जाता है आज तक इसका पता कोई भी नहीं कर पाया ना ही बता पाया।

तीनों रूपों में माता है विराजमान
विन्ध्य पर्वत श्रेणी में मिर्जापुर जिले में माता महाकाली महालक्ष्मी और महाशिवरात्रि तीनों देवियां त्रिकोण रूप में बिना पर्वत पर विराजमान है। लोगों की एवं भक्तों की मान्यता यह है कि यहां पर आकर अगर अपनी कोई भी मनोकामनामाता के सामने बोल दी जाए तो वह अवश्य ही पूरी हो जाती है। खास का तांत्रिक लोग अपनी तंत्र विद्या को सिद्ध करने के लिए यहां पर विशेष रूप से आते हैं एवं अपनी शक्तियों का प्रयोग जनकल्याण में लगाते हैं।

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