ब्रिक्स में डोकलाम विवाद को भुला भारत-चीन आगे बढ़ने को राजी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तीन दिवसीय चीन यात्रा पर सबकी निगाहें लगी हुई थीं। यह ऐसे समय हो रही थी, जबकि उनकी रवानगी से चार दिन पहले तक दोनों देशों की सेनाएं सिक्किम-चीन-भूटान के तिकोने मुहाने पर डोकलाम में 73 दिन तक आमने-सामने खड़ी रही।
चीन वहां सड़क बनाने की जुगत में था। भूटान ने कहा कि यह उसकी जमीन है, लिहाजा भारत ने चीनी सेना को न केवल रोक दिया बल्कि उसके सामने मोर्चा लगाते हुए साफ कर दिया कि विवादित क्षेत्रों में उसकी मनमानी और दादागिरी नहीं चलने दी जाएगी।
पहले वहां के सरकारी मीडिया के माध्यम से। उसके बाद सैन्य अफसरों के जरिए और बाद में चीनी विदेश मंत्रालय ने भारत को यह कहकर धमकाने की कोशिश की कि चीनी सेना से टकराना उसे भारी पड़ेगा, मगर भारतीय सेना टस से मस नहीं हुई।
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दुनिया भर में इस मसले पर चीन को भारी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। अंतत: दोनों देशों के बीच परदे के पीछे कूटनीतिक वार्ता के बाद तय हुआ कि दोनों एक साथ पीछे हटें। इसका साफ संदेश था कि भारत जो चाहता था, वही हुआ।
चीन ने वहां सड़क बनाने का इरादा त्याग दिया। पाक सहित कुछ देश इस उम्मीद से थे कि चीन जरूर भारत से दो-दो हाथ करेगा। ऐसे देशों को भारी निराशा का सामना करना पड़ा। प्रधानमंत्री मोदी ब्रिक्स देशों के तीन दिवसीय सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन जा रहे थे।
ऐसे में यदि डोकलाम में दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने खड़ी रहती तो इसे अच्छा नहीं माना जाता। इसलिए दोनों ही देशों ने गरिमापूर्ण समाधान निकाला। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अन्य देशों के राष्ट्र प्रमुखों के साथ मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया।
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यही नहीं, दोनों के बीच एक घंटे से अधिक की दोतरफा बातचीत भी हुई, जिसमें इस पर सहमति जाहिर की गई कि सीमा संबंधी और दूसरे मदभेदों को विवादों में नहीं बदलने दिया जाए। इसके लिए एक व्यवस्था बनाने पर भी दोनों देश सहमत हो गए हैं।
चीनी राष्ट्रपति ने स्वीकारा कि भारत और चीन तेजी से बढ़ती हुई विकासशील ताकतें हैं। चीन भारत के साथ मिलकर पंचशील के सिद्धांत पर काम करने को तैयार है। मोदी ने भी सहयोग और सदभाव के लिए उनका शुक्रिया अदा किया।
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अहम बात यही है कि दोनों देशों ने रिश्तों को बेहतर बनाने की दिशा में सीमाई इलाकों में शांति स्थापित करने पर रजामंदी जाहिर की है। डोकलाम और लद्दाख में हाल ही में चीन और भारत की सेनाओं के बीच हुए टकराव के मद्देनजर यह बातचीत बेहद अहम मानी जा रही थी।
हालांकि दि्वपक्षीय बातचीत में आतंकवाद के मुद्दे पर अलग से चर्चा नहीं हुई। विदेश सचिव एस जयशंकर के मुताबिक, 'हाल-फिलहाल की घटनाओं के मद्देनजर दोनों देश सेनाओं में आपसी तालमेल बेहतर करने पर राजी हुए हैं।
इससे पहले म्यांमार की दो दिन की यात्रा पर रवाना होने से पूर्व मंगलवार को ही मोदी ने 'डायलॉग ऑफ इमर्जिंग मार्केट्स एंड डिवेलपिंग कंट्रीज' कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आतंकवाद, साइबर सुरक्षा और आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में उभरते देशों के बीच सहयोग को महत्वपूर्ण बताया।
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पीएम मोदी ने कहा कि हमारे लिए अगला एक दशक बेहद महत्वपूर्ण साबित होने वाला है। उन्होंने कहा कि हमें अलगे दशक को स्वर्णिम बनाने के प्रयासों में जुटना होगा। इस लिहाज से प्रधानमंत्री की चीन यात्रा को महत्वपूर्ण और उपलब्धिपूर्ण माना जाएगा।
क्योंकि पहली बार भारत ब्रिक्स देशों के घोषणा -पत्र में जैश ए मोहम्मद और लश्कर ए तोयबा जैसे आतंकवादी संगठनों की ओर से चलाई जा रही आतंकवादी वारदातों की कड़ी भर्त्सना कराने और चीन की धरती से पाकिस्तान को कड़ा सदेश भेजने में सफल रहा।
अब तक मसूद अजहर जैसे आतंकी सरगना को प्रतिबंधों से बचाए रखने में चीन ढाल का काम करता आ रहा था। ब्रिक्स के घोषणा-पत्र से बंधने के बाद अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर वह आतंकियों का बचाव नहीं कर सकेगा।
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