''बेहद खतरनाक होगा राम मंदिर निर्माण के लिए 1992 जैसा आंदोलन'': मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

बेहद खतरनाक होगा राम मंदिर निर्माण के लिए 1992 जैसा आंदोलन: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
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ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अयोध्‍या में राम मंदिर के निर्माण के लिये वर्ष 1992 जैसा ही आंदोलन शुरू करने के राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के इरादे को मुल्‍क के लिये बेहद खतरनाक बताया है।

ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने अयोध्‍या में राम मंदिर के निर्माण के लिये वर्ष 1992 जैसा ही आंदोलन शुरू करने के राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के इरादे को मुल्‍क के लिये बेहद खतरनाक बताते हुए आज कहा कि मंदिर को लेकर अचानक तेज हुई गतिविधियां पूरी तरह राजनीतिक हैं।

एआईएमपीएलबी के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने राम मंदिर निर्माण की मांग को लेकर हिन्‍दूवादी संगठनों द्वारा अचानक तेज की गयी गतिविधियों के बारे में कहा कि जहां तक मंदिर निर्माण को लेकर तथाकथित हिन्‍दूवादी संगठनों में बेचैनी का सवाल है, तो साफ जाहिर है कि यह सियासी है।

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उन्होंने कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव 2019 को सामने रखकर यह दबाव बनाया जा रहा है। लेकिन वे संगठन दरअसल क्‍या करेंगे, अभी तक इसका सही अंदाजा नहीं है।

मंदिर निर्माण के लिये वर्ष 1992 जैसा व्‍यापक आंदोलन छेड़ने के संघ के इशारे के बारे में रहमानी ने कहा कि संघ अगर आंदोलन शुरू करता है तो यह बहुत खतरनाक होगा। इससे मुल्‍क में अफरातफरी का माहौल पैदा हो जाएगा।

इस आशंका का कारण पूछे जाने पर उन्‍होंने बताया कि वर्ष 1992 में हिन्‍दुओं और मुसलमानों के बीच नफरत इतनी ज्‍यादा नहीं थी। हाल के सालों में दोनों के बीच खाई बहुत गहरी हो गयी है।

विश्‍व हिन्‍दू परिषद, अंतरराष्‍ट्रीय हिन्‍दू परिषद समेत तमाम हिन्‍दूवादी संगठनों और साधु-संतों द्वारा मंदिर निर्माण के लिये अध्‍यादेश लाने या कानून बनाने को लेकर सरकार पर दबाव बनाये जाने के बारे में पूछे गये सवाल पर मौलाना रहमानी ने कहा कि कुछ कानूनविदों के मुताबिक इस मसले पर अभी कोई अध्‍यादेश या संसद का कानून नहीं आ सकता।

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अब सरकार क्‍या करेगी और उसके क्‍या नतीजे होंगे, यह नहीं कहा जा सकता। हालांकि उन्‍होंने यह भी कहा कि हाल में सेवानिवृत्‍त हुए न्‍यायमूर्ति जे. चेलमेश्‍वर ने चंद दिन पहले मुम्‍बई में एक कार्यक्रम में कहा था कि मंदिर निर्माण को लेकर अध्‍यादेश लाना या संसद से कानून पारित कराया जाना नामुमकिन नहीं है।

बोर्ड का शुरू से ही स्‍पष्‍ट नजरिया है कि आपसी सहमति से मसला हल करने की तमाम कोशिशें नाकाम होने के बाद वह अयोध्‍या विवाद पर उच्‍चतम न्‍यायालय के निर्णय को ही मानेगा।

इस बीच, देश में मुसलमानों के सबसे बड़े सामाजिक संगठन माने जाने वाले जमीयत उलमा-ए-हिन्‍द की उत्‍तर प्रदेश इकाई के अध्‍यक्ष मौलाना अशहद रशीदी ने कहा कि अयोध्‍या मामले को लेकर तेज हुई गतिविधियों पर उनका एक ही जवाब है कि मामला अदालत में है इसलिये सभी को सब्र से काम लेते हुए अदालत के फैसले का इंतजार करना चाहिये।

उसका जो भी निर्णय हो, उसे कुबूल करना चाहिये। मुल्‍क में अमन और सलामती इसी तरह रहेगी। उन्‍होंने कहा कि हठधर्मिता से देश को नुकसान होगा। हमारी अपील है कि इस मामले में जज्‍बात से काम न लेकर हालात की नजाकत को समझते हुए काम किया जाए।

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