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Where Mukhtar Aansari Wife Afshan Ansari?: 2005 में मुख्तार अंसारी के जेल जाने के बाद अफशां अंसारी ने गैंग की कमान संभाली थी। अफशां गाजीपुर जिले के यूसुफपुर मोहम्मदाबाद के दर्जी मोहल्ला की रहने वाली हैं।

Where Mukhtar Aansari Wife Afshan Ansari?: माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की मौत हो चुकी है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि लंबे समय से फरार चल रही उसकी पत्नी अफशां अंसारी सामने आएंगी या नहीं? अफशां को यूपी पुलिस ने फरार घोषित कर रखा है। उस पर 75 हजार का इनाम है। उस पर गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई हो चुकी है और दर्जन भर से ज्यादा मुकदमे हैं। इनमें मऊ से लखनऊ तक फर्जी तरीके से जमीनों पर कब्जे के भी मुकदमे हैं। 

2005 के बाद से संभाली अंसारी गैंग की कमान
2005 में मुख्तार अंसारी के जेल जाने के बाद अफशां अंसारी ने गैंग की कमान संभाली थी। अफशां गाजीपुर जिले के यूसुफपुर मोहम्मदाबाद के दर्जी मोहल्ला की रहने वाली हैं। उस पर 31 जनवरी 2022 को गैंगस्टर एक्ट लगाया गया। इसी मुकदमे में वह फरार चल रही हैं। उस पर गाजीपुर जिले से 50 हजार और मऊ पुलिस की तरफ से 25 हजार इनाम घोषित है।

मुख्तार अंसारी का एक बेटा अब्बास अंसारी कासगंज जेल में बंद है। जबकि दूसरा बेटा उमर अंसारी जमानत पर है। मुख्तार की बहू निकहत बानो भी जेल जा चुकी है। उस पर अपने पति अब्बास अंसारी को जेल से फरार कराने की कोशिश करने का आरोप है।

मौत के बाद भी जारी रहेगा रसूख?
फिलहाल, मऊ-गाजीपुर पर दबदबा रखने वाले माफिया-राजनेता मुख्तार अंसारी का प्रभाव मौत के बाद भी जारी रहने की संभावना है। हालांकि वह पिछले 18 वर्षों तक सलाखों के पीछे रहे। लेकिन क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय पर उनके प्रभाव के कारण मुख्तार अंसारी के समर्थन के लिए कई पार्टियों में होड़ देखी गई। 

भाई अफजाल गाजीपुर से सपा के उम्मीदवार
गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊ और गाजीपुर जिलों की राजनीति में दशकों तक दबदबा बनाए रखा और बड़े अंतर से विधानसभा चुनाव जीते। और यह देखना बाकी है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी मौत का क्षेत्र की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? उनके भाई अफजाल अंसारी गाजीपुर से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हैं।

मऊ सदर विधानसभा सीट 1996 से 2022 तक मुख्तार और उनके परिवार का अजेय किला बनी रही। मुख्तारी खुद इस सीट से लगातार पांच बार 1996, 2002, 2007, 2012 और 2017 में जीते। उनके बेटे अब्बास अंसारी वर्तमान में मनी-लॉन्ड्रिंग मामले में जेल में हैं। उन्होंने 2022 में यह सीट जीती।

Mukhtar Aansari
Mukhtar Aansari

स्वतंत्रता सेनानी परिवार से मुख्तार
मुख्तार अंसारी स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार से थे। उनके दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी 1926-27 में कांग्रेस के अध्यक्ष थे। उनके नाना ब्रिगेडियर उस्मान को 1947 में नौशेरा सेक्टर में पाकिस्तानी सेना पर जीत के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। उनके पिता सुभान उल्लाह अंसारी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता थे। उनके चाचा हामिद अंसारी भारत के उपराष्ट्रपति थे।

मुख्तार अंसारी ने अपनी शिक्षा गाजीपुर पीजी कॉलेज से पूरी की और छात्र संघ की राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमाई। इस दौरान मुख्तार एक गिरोह के नेता के संपर्क में आया और कथित तौर पर उसका सदस्य बन गया।

क्षेत्र में मुख्तार के प्रभुत्व के कारण गैंगस्टर से नेता बने ब्रजेश सिंह, हरि शंकर तिवारी और धनंजय सिंह जैसे अन्य लोगों ने आजमगढ़, मऊ और गाजीपुर की राजनीति में हस्तक्षेप नहीं किया। उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों की भी आसानी से जीत सुनिश्चित कर दी।

भाजपा दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी को दी थी चुनौती
लोकसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी और कांग्रेस नेता कल्पनाथ राय की ताकत को चुनौती दी थी। उनके भाई अफजल अंसारी ने पांच बार गाजीपुर जिले की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया। बाद में अफजल ने 2004 और 2019 में गाजीपुर से लोकसभा चुनाव जीता। दूसरी बार उन्होंने भाजपा उम्मीदवार मनोज सिन्हा को हराया, जो जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल हैं। तीसरे भाई सिबगतुल्लाह अंसारी भी 2007 और 2012 में मोहम्मदाबाद से दो बार विधानसभा चुनाव जीते। सिबगतुल्लाह के बेटे सुहैब अंसारी 2022 में मोहम्मदाबाद से सपा के टिकट पर जीते।

मुख्तार अंसारी का दबदबा गाजीपुर, मऊ, आज़मगढ़, वाराणसी, मिर्ज़ापुर और जौनपुर जिलों में था। 1995 में वह बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए। उन्होंने 1996 में दिग्गज कांग्रेस नेता कल्पनाथ राय के खिलाफ घोसी से बसपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा। हालांकि वह लोकसभा चुनाव हार गए, लेकिन 1996 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने उन्हें मऊ से मैदान में उतारा और वह जेल से ही जीत गए।

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यह फोटो अफजाल अंसारी के छोटी बेटी नूरिया की शादी की है। अखिलेश यादव अपने चाचा शिवपाल के साथ पहुंचे थे।

अदालत जाते समय अचानक पहुंचा डीजीपी दफ्तर
उत्तर प्रदेश में भाजपा के समर्थन से बसपा की सरकार बनने के बाद जिला जेल से अदालत ले जाते समय उनके डीजीपी कार्यालय जाने से राज्य सरकार को शर्मिंदगी उठानी पड़ी। अपने सहयोगी दल के दबाव में बसपा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। बाद में, अंसारी ने 2002 और 2007 में मऊ से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में विधान सभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 2012 में कौमी एकता दल के उम्मीदवार के रूप में और 2017 में बसपा उम्मीदवार के रूप में सीट बरकरार रखी।

2009 के लोकसभा चुनाव से पहले मुख्तार अपने भाई अफजाल के साथ फिर बसपा में शामिल हो गए। उन्होंने वाराणसी लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ चुनाव लड़ा और रनर रहे। लेकिन 10 अप्रैल 2010 को मायावती ने मुख्तार और उनके भाई अफजल को बसपा से निकाल दिया।

इसके बाद उन्होंने कौमी एकता दल (क्यूईडी) की स्थापना की, जिसने 2012 के विधानसभा चुनाव में मऊ और मोहम्मदाबाद सीटें जीतीं। QED का 2016 में समाजवादी पार्टी में विलय हो गया लेकिन SP प्रमुख अखिलेश यादव ने विलय रद्द कर दिया। जनवरी 2017 में, QED का बीएसपी में विलय हो गया। मायावती ने जेल में बंद मुख्तार को मऊ से और बड़े भाई सिबगतुल्लाह को मोहम्मदाबाद से मैदान में उतारा। मुख्तार ने सीट जीत ली। 

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