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Ayodhya Ram Temple Space View: 500 वर्षों के इंतजार के बाद शुभ घड़ी आई है। करोड़ों हिंदुओं के आराध्य प्रभु राम अपने बाल स्वरूप में सोमवार, 22 जनवरी को अयोध्या के भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित होंगे। इससे पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने देश को स्वदेशी सैटैलाइट का इस्तेमाल कर अंतरिक्ष से राम मंदिर की पहली झलक दिखाई है।

Ayodhya Ram Temple Space View: 500 वर्षों के इंतजार के बाद शुभ घड़ी आई है। करोड़ों हिंदुओं के आराध्य प्रभु राम अपने बाल स्वरूप में सोमवार, 22 जनवरी को अयोध्या के भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित होंगे। इससे पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने देश को स्वदेशी सैटैलाइट का इस्तेमाल कर अंतरिक्ष से राम मंदिर की पहली झलक दिखाई है। जिसमें 2.7 एकड़ भूमि पर बने राम मंदिर को देखा जा सकता है। NDTV के अनुसार, इसरो ने पिछले साल 16 दिसंबर को निर्माणाधीन मंदिर का फोटो लिया था। तब से अयोध्या में घने कोहरे के कारण नई फोटो नहीं मिल सकी। 

दशरथ महल और सरयू नदी आई नजर
रेमोट सेंसिंग तकनीकी के इस्तेमाल से कैप्चर की गई सैटेलाइट तस्वीरों में दशरथ महल और सरयू नदी साफ नजर आ रही है। नव पुनर्निर्मित अयोध्या रेलवे स्टेशन भी दिखाई दे रहा है। वर्तमान में अंतरिक्ष में 50 से अधिक भारतीय सैटेलाइट हैं। उनमें से कुछ का रिज़ॉल्यूशन एक मीटर से भी कम है। हैदराबाद में राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा फोटो को प्रोसेस किया जाता है। 

ayodhya ram temple space view
Ayodhya ram temple space view (NDTV)

निर्माण में इसरो की तकनीक ने की मदद
मंदिर निर्माण में भी इसरो ने मदद की है। एक बड़ी चुनौती भगवान राम की मूर्ति स्थापित करने के लिए उनके सटीक जन्मस्थान की पहचान करना था। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट चाहता था कि मूर्ति को 3X6 फीट की उसी जगह पर रखा जाए, जहां भगवान राम का जन्म हुआ था।

Ayodhya ram temple space view
Ayodhya ram temple space view (NDTV)

मलबे में खो गया था रामलला का जन्मस्थान
विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक शर्मा ने बताया कि 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद 40 फीट मलबे ने जन्मस्थान को ढक दिया। इस मलबे को हटाना पड़ा और स्थान को सुरक्षित करना पड़ा, ताकि नई मूर्ति ठीक उसी स्थान पर हो। यह उतना आसान नहीं था। ऐसे में इसरो की तकनीकी ने मदद की। निर्माण की जिम्मेदारी संभाल रही फर्म लार्सन एंड टुब्रो के ठेकेदारों ने ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) इस्तेमाल किया। लगभग 1-3 सेंटीमीटर तक सटीक कोआर्डिनेट्स तैयार किए थे। उन्होंने मंदिर के गर्भगृह और मूर्ति की स्थापना का आधार बनाया।

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