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आज देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 97 वीं जयंती है। हरिभूमि इस मौके पर आपके लिए लेकर आया है उनकी चुनिंदा सात कविताएं।

Atal Bihari Jayanti: देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजयपेयी न सिर्फ एक प्रखर वक्ता बल्कि एक शानदार कवि भी थे। उनकी कविताएं मौजूदा परिस्थतियों में भी फिट बैठती है। उन्होंने कई कालजयी रचनाएं लिखी है। वह अपनी विशेष भाषण शैली के साथ ही अपनी काव्य रचनाओं के लिए भी जाने जाते हैं। वह प्रखरता के साथ अपनी काव्य रचनाओं का पाठ करते थे।

मुश्किलों में भी प्रेरणा देती हैं ये पंक्तियां

उन्होंने ऐसी कविताएं लिखी जो जीवन की मुश्किलों में फंसे इंसान को भी प्रेरणा देती है, मनोबल बढ़ाती है। इसके साथ ही उनकी रचनाओं ने साहित्यिक नजरिए से भी एक मानक तय किया, जिसे तक न कोई पहुंच सका था और न ही पहुंच पाएगा। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजयपेयी की जन्म जयंती पर आइए एक नजर डालते हैं उनकी 5 कालजयी रचनाओं पर। 

1. इस कड़ी में सबसे पहले हम जिक्र करेंगे अटल बिहारी की कविता गीत नया गाता हूं। यह कविता आज भी हिंदी कविता से प्रेम करने वाले लोगों में लोकप्रिय हैं। काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं पंक्ति को जहां बुजुर्ग पसंद करते हैं वहीं, यह युवाओं की प्लेलिस्ट में भी शामिल हैं। 

Atal Bihari Vajpayee
उपर की इन पंक्तियों में कवि की कभी न झुकने की जिजीविषा जाहिर होती है।

टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर,
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं
गीत नया गाता हूं

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी, 
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, 
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं

गीत नया गाता हूं

2. मौत से ठन गई शीर्षक से लिखी उनकी कविता उनकी जीजीविषा के शब्दों को बयान करते हैं। इसमें कवि अटल मौत से दो-दो हाथ करने की बात कहते हैं। पेश है कविता की चंद पंक्तियां: 

Maut Se Than gayi
कवि अपनी इस कविता के माध्यम से मुश्किलों से टकराने का हौसला दे रहे हैं।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए, 
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए, 
आज झकझोरता तेज तूफान है, 
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है 
पार पाने कायम मगर हौसला, 
देख तेवर तूफां का, तेवरी तन गई
मौत से ठन गई। 

3. अटल बिहार वाजपेयी की कविता आओ फिर से दिया जलाएं मुश्किलों में भी हौंसला बरकरार रखने की प्रेरणा देती है। इसमें कवि अटल लक्ष्य को हासिल करने के लिए अंतिम समय तक लड़ने का हौसता देता नजर आते हैं। 

aao phir se diya jalayen
अंतिम समय तक लड़ने का हौंसला देने वाली पंक्तियां टूटे इंसान में भी साहस भर देती हैं।

हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वर्तमान के मोहजाल में आने वाला कल न भुलाएं
आओ फिर से दिया जलाएं

आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने नव दधीचि हड्डियां गलाएं

आओ फिर से दिया जलाएं

4. अटल बिहारी वाजपेयी की कविता ऊंचाई में उन्होंने जीवन में बड़ी ऊंचाइयां छूने के बाद भी कैसे सहज रहा जाए, इसका संदेश दिया है। इसके साथ ही वे बताते हैं कि बड़ी जिम्मेदारियां के साथ कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है। 

koi kali na khile
इन पंक्तियों के माध्यम से ऊंचाइयां छू कर भी सहज बने रहने का संदेश दिया गया है।

धरती को बौनों की नहीं, 
ऊंचे कद के इंसानों की ज़रूरत है
इतने ऊंचे कि आसमान छू लें, 
नए नक्षत्रों में प्रतिभा के बीज बो लें, 
किंतु इतने ऊंचे भी नहीं, 
कि पांव तले दूब ही न जमे, 
कोई कांटा न चुभे, 

कोई कली न खिले। 

5. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी की कविता दूर कहीं कोई रोता है समाज और जीवन के कड़वे सच को कहने की कोशिश करती है। इसमें कवि अटल उन लोगों के प्रति भावुक होते नजर आते हैं, जो बेहद करीब होते हैं लेकिन किसी कारण की वजह से इंसान को उनसे दूर होना पड़ता है।

तन पर पहरा, भटक रहा मन, 
साथी है केवल सूनापन, 
बिछुड़ गया क्या स्वजन किसी का, 
क्रंदन सदा करुण होता है। 
जन्म दिवस पर हम इठलाते, 
क्यों न मरण-त्यौहार मनाते, 
अंतिम यात्रा के अवसर पर, 
आंसू का अशकुन होता है। 

6.अटल बिहारी वाजपेयी की जिस अगली कालजयी रचना का जिक्र हम करने जा रहे हैं उसका नाम शीर्षक है झुक नहीं सकते। यह कविता ऐसी है जो किसी भी स्थिति में बड़े से बड़े संकट से टकराने की प्रेरणा देती है। कवि अटल ने मानों ने इन शब्दों में खुद की शख्सियत ही शब्दों में उकेर कर रख दी है। इसकी हर पंक्ति मुश्किलों से भिड़ जाने की कला सिखाती है। 

dav par sabkuch laga hai
इन पंक्तियों में किसी भी हाल में जीतने की धुन जाहिर होती है।

दीप निष्ठा का लिये निष्कंप
वज्र टूटे या उठे भूकंप
यह बराबर का नहीं है युद्ध
हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध
हर तरह के शस्त्र से है सज्ज
और पशुबल हो उठा निर्लज्ज

किन्तु फिर भी जूझने का प्रण
अंगद ने बढ़ाया चरण
प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार
समर्पण की मांग अस्वीकार

दांव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते

7.अटल बिहार वाजपेयी की कविता हरी हरी दूब पर उनके प्रकृति प्रेम को दिखाती है। यह रचना सूर्य और ओस के बूंद का तुलना करती है। इन पंक्तियों के माध्यम से उन्होंने यह बताने की कोशिश की है चाहे सूर्य में ऊर्जा का भंडार हो लेकिन एक छोटी सी ओस की बूंद का भी अपना महत्व है। यह पंक्तियां कवि अटल के अंदर के दार्शनिक को सामने लाती हैं। डालिए इन पंक्तियों पर एक नजर...

सूर्य एक सत्य है
जिसे झुठलाया नहीं जा सकता
मगर ओस भी तो एक सच्चाई है
यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है
क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊं?
कण-कण मेँ बिखरे सौन्दर्य को पिऊं?

सूर्य तो फिर भी उगेगा,
धूप तो फिर भी खिलेगी,
लेकिन मेरी बगीची की
हरी-हरी दूब पर,
ओस की बूंद
हर मौसम में नहीं मिलेगी।

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