क्रिकेटर कमाते हैं करोड़ों, ये नेशनल लेवल बॉक्सर उठाता है घर घर कूड़ा

क्रिकेटर कमाते हैं करोड़ों, ये नेशनल लेवल बॉक्सर उठाता है घर घर कूड़ा
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नेशनल लेवल के बॉक्सर रहे कमल कुमार अब इतने मजबूर हैं कि घर घर जाकर कूड़ा उठाते हैं।
नई दिल्ली. हम लोगों क्रिकेटरों को भगवान समझते हो, जो कि भारत में एक गुप्त बीमारी है। जबकि क्रिकेटर लाखों-करोड़ों रुपये की डील करते है जिसमें वो विज्ञापन करते हैं जैसे ऑइल, शूज़ और भी कई चीजें। वे मोटरस्पोर्स टीम को खरीदते है, कपड़ो पर लेगे लेबल को बेचते हैं, हीरोईनों के साथ डेट करते हैं और अपनी तीन साल की सैलरी से वो एक बाइक खरीद लेते हैं। संक्षेप में कहें, तो वो एक रॉकस्टार की तरह जिंदगी जीते हैं। और होना भी चाहिए क्योकि भारत में क्रिकेट स्पोर्टस से बड़ा है। ये समस्या नहीं है कि क्रिकेटर बहुत सा पैसा कमाते हैं या बनाते हैं लेकिन बहुत से ऐसे स्पोर्टसमैन है जो ऐसा नहीं कर पाते हैँ।


आपको बताते हैं ऐसे ही एक स्पोर्टस मैन की कहानी। नेशनल लेवल के बॉक्सर रहे कमल कुमार अब इतने मजबूर हैं कि घर घर जाकर कूड़ा उठाते हैं। कमल यूपी में कानपुर के ग्वालटोली के रहने वाले हैं। कमल को परिवार का पेट पालने के लिए एक अदद नौकरी की उम्मीद थी, लेकिन सरकार ने इस खिलाड़ी की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। आखिरकार उसे ठेले पर घर घर जाकर कूड़ा उठाने का काम करना पड़ा। इसके साथ ही बाकी समय में वे पान की दुकान भी चलाते हैं।

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बचपन से ही बॉक्सिंग का शौक रखने वाले कमल ने 1991 में जिलास्तरीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता और 1993 में यूपी ओलिंपिक में कांस्य पदक और उसी साल 'जूनियर नेशनल चैम्पियनशिप अहमदाबाद' में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद 2004 में जिलास्तरीय प्रतियोगिता में रजत और 2006 के राज्य खेलों में कांस्य पदक जीता। कमल को तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा और राज्य खेलों में पूर्व मंत्री कलराज मिश्रा ने कांस्य पदक से सम्मानित भी कर चुके हैं, लेकिन गरीबी के चलते खेल पीछे छूट गया। इसके बाद जब परिवार पर भूखे मरने की नौबत आई तो कमल ने सारे मेडल और डिग्री को छोड़कर जो काम भी हाथ लगा उसे करना जरूरी समझा।

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कमल के तीन बेटे हैं और उनमें से दो बेटे बॉक्सिंग सीख ही सीख रहे हैं। कमल का सपना है कि उनके बच्चे अच्छे बॉक्सर बनकर देश का नाम रोशन करें। कमल का दूसरा बेटा आदित्य धनराज कक्षा आठ का छात्र है और नेशनल बॉक्सिंग खेल चुका है। बेटे का कहना है कि वह पिता के सपनों को पूरा करना चाहता है।

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