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Mother Day 2024: बच्चों की प्रथम पाठशाला परिवार को माना जाता है। इस पाठशाला की प्रथम अध्यापिका मां होती है, जिसकी देख-रेख में बच्चे जीवन की वो सीखें लेते हैं, जो जीवन को सही ढंग से जीने के लिए जरूरी हैं।

Mother Day 2024: बच्चों की प्रथम पाठशाला परिवार को माना जाता है। इस पाठशाला की प्रथम अध्यापिका मां होती है, जिसकी देख-रेख में बच्चे जीवन की वो सीखें लेते हैं, जो जीवन को सही ढंग से जीने के लिए जरूरी हैं। यहां अपने-अपने क्षेत्र की तीन हस्तियां सहेली को बता रही हैं, इन्होंने अपनी मां से कौन-सी ऐसी बातें सीखीं, जो जीवन के लिए जरूरी सबक हैं।

काम के साथ घर का ख्याल रखना मां से सीखा- अपरा मेहता, अभिनेत्री 
मेरी मां मंदाकिनी मेहता सुशिक्षित और आधुनिक विचारों वाली महिला थीं। मैं उनकी इकलौती संतान हूं, फिर भी उन्होंने मुझे बहुत ही अनुशासन में रखा। अधिक लाड़-प्यार देकर उन्होंने मुझे बिगड़ने नहीं दिया। मेरी मां पढ़ाई के साथ स्कूल की हर एक्टिविटी में हमेशा मुझे सबसे आगे रखती थीं। मां खुद भी थिएटर ऑर्टिस्ट थीं, लेकिन शादी के बाद जब मेरी बेटी का जन्म हुआ तो उसकी देखभाल के लिए उन्होंने अपना काम छोड़ दिया, क्योंकि अभिनय के क्षेत्र में वह मुझे आगे बढ़ते देखना चाहती थीं।

मेरे करियर के लिए उन्होंने अपना करियर दांव पर लगा दिया। बहुत कम महिलाएं ऐसी होती हैं, जो अपनी बेटी के करियर पर इतना ध्यान देती हैं। बचपन में जब मां मेरे साथ सख्ती भरा व्यवहार करती थीं, मुझे बहुत बुरा लगता था, लेकिन अब समझ में आता है कि आज मैं जो कुछ भी हूं, वह उनके कारण ही हूं। बचपन में मैं क्लास में हमेशा फर्स्ट आती थी, वह मेरी तारीफ नहीं करती थीं। उनका कहना था कि अपने बच्चे की प्रशंसा तो सभी करते हैं, असली उपलब्धि तो तब है, जब दूसरे लोग हमारे बच्चे की तारीफ करें। मेरी मां ने मेरी परवरिश इस तरह से की कि मैं एक नेक इंसान बनूं। जब मेरे पिता जी का निधन हो गया तो उसके बाद मैंने उन्हें हमेशा के लिए अपने पास बुला लिया ताकि मैं उनकी अच्छी तरह देखभाल कर सकूं।

मेरी बेटी खुशाली को भी उन्होंने बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं। उन्होंने हमेशा मुझे प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ के बीच बैलेंस की सीख दी। मेरी मां बहुत अच्छी होममेकर थीं, घर को बहुत सजा-संवार कर रखती थीं। काम के साथ घर का ख्याल रखना मैंने उनसे ही सीखा है। उन्हें फाइनेंस की बहुत अच्छी समझ थी। अपने पैसों को इंवेस्ट करना मैंने उन्हीं से सीखा है। मुझे याद है, जब भी मैं अनावश्यक शॉपिंग करती तो वो मुझे बहुत डांटती थीं।

मुझे हमेशा सोच-समझकर खर्च करने के लिए प्रेरित करती थीं। दो साल पहले 91 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। मदर्स-डे के अवसर पर मैं उन्हें याद करते हुए यही कहना चाहूंगी कि अपनी बेटी के लिए मैं भी वैसी ही मां बनने की कोशिश कर रही हूं, जैसी वह एक आदर्श मां थीं।

मां से मिली सेवा भावना- ममता कालिया, साहित्यकार
अपनी मां से मेरा रिश्ता पारंपरिक ढर्रे से कुछ अलग हटकर था। इसकी एक बड़ी वजह यह भी थी कि उनका विवाह कम उम्र में ही हो गया था। उनकी शादी के बाद जल्द ही हम दोनों बहनों का जन्म हुआ। दो बेटियों के जन्म के बाद रिश्तेदार उन्हें देखकर उनके प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करने लगे कि इस बेचारी की दो बेटियां हैं, इन बातों से मेरी मां अकसर उदास रहती थीं।

मेरी बड़ी बहन बहुत सुंदर थी, जबकि मेरी शक्ल-सूरत बेहद मामूली थी। शायद इसी वजह से मां मेरे प्रति थोड़ी अनमनी-सी रहती थीं। इसके अलावा मेरी रुचि पढ़ने-लिखने में ज्यादा थी, घर के काम-काज में मैं उनका जरा भी हाथ नहीं बंटाती थी। अगर वह मुझे रसोई में बुलातीं तो मैं मना कर देती थी, इस मामले में पिताजी भी मेरा साथ देते थे। इसी वजह से बचपन में मां के साथ मेरे रिश्ते में प्रगाढ़ आत्मीयता नहीं थी, लेकिन 18 वर्ष की उम्र में जब मेरी बहन ने अपनी मर्जी से प्रेम विवाह कर लिया, उसके बाद मां बहुत बीमार रहने लगीं। तब ऐसी हालत थी कि परीक्षा की तैयारी भी मैं अस्पताल में रहकर ही करती थी।

इस तरह उनके साथ वक्त बिताने की वजह से उनके साथ मेरा भावनात्मक बंधन मजबूत हुआ। मुझे उनके मन को बहुत करीब से समझने का मौका मिला। पिताजी आकाशवाणी में निदेशक थे, घर में भौतिक सुख-सुविधाओं की कमी नहीं थी, लेकिन जैसा कि अधिकतर परिवारों में होता है। घर में उन्हें पिता के साथ बराबरी का जीवन जीने का अवसर नहीं मिला, इससे उनका व्यक्तित्व थोड़ा दब-सा गया था।

वह बहुत कुशल गृहिणी थीं, घर को बहुत अच्छे ढंग से संभालती थीं, खाना बहुत अच्छा बनाती थीं। उनमें सेवा की भावना बहुत ज्यादा थी, दूसरों की मदद करना मैंने उनसे ही सीखा है। आज भले ही वह हमारे बीच नहीं हैं, पर मदर्स-डे के अवसर पर मैं उनसे यही कहना चाहूंगी कि मां आज मुझे देखकर तुम बहुत खुश होती, अब मैं तुम्हारी आज्ञाकारी बेटी बन गई हूं। तुम्हारी ही तरह मैं भी अपना घर सुव्यवस्थित रखती हूं।

मां ने बचपन से ही मुझे आत्मनिर्भर बनाया- इरा टाक, लेखिका-फिल्म निर्मात्री
मेरी मां कॉलेज में प्राध्यापिका थीं। वह बहुत ज्यादा पढ़ती थीं, भाषा के प्रति वह बहुत सचेत रहती थीं। पढ़ने-लिखने और भाषा के प्रति अच्छी समझ रखने का संस्कार मुझे अपनी मां से ही मिला है। मेरे पिताजी की पोस्टिंग दूसरे शहर में थी, वह ज्यादातर वहीं रहते थे। ऐसे में मां ही अकेले पूरे घर को बहुत अच्छी तरह संभालती थीं। उन्होंने बचपन से ही मुझे आत्मनिर्भर बनाया, इसके लिए प्रेरित किया।

मुझे ऐसी ट्रेनिंग दी थी कि मैं अपने काम स्वयं करूं, घर के कामों में भी मदद करूं। दस-बारह साल की उम्र में उन्होंने मुढे खाना बनाना सीखा दिया था। मैंने अपने कपड़े धोने सीखे, प्रेस करना सीखा। थोड़ी और बड़ी हुई तो बैंक जाकर खुद पैसे निकालना सीख गई थी। दूसरे भी वह काम करने लगी थी, जो बड़े करते हैं। बचपन में मैं अपनी पॉकेटमनी से पैसे बचाकर हर साल मदर्स-डे के अवसर पर उनके लिए गिफ्ट खरीद कर जरूर लाती थी। मुझे याद है, रात को सोने से पहले वह अकसर मुझे कहानियां सुनाती थीं।

इन कहानियों जो सीख मिलती थी, उसको भी वह बताती थीं। मां की सुनाई कहानियों से मैंने जीवन के कई सबक सीखे। अच्छे-बुरे के बारे में जाना। किताबें पढ़ने की अच्छी आदत मुझे उनसे ही मिली है। ये किताबें ही होती हैं, जो हमारा मार्गदर्शन करती हैं, हमें मोटिवेट करती हैं। अपनी मां से मैंने जीवन में अनुशासन का सबक सीखा है। उन्हीं की वजह से ही मैं आज भी अनुशासित दिनचर्या अपनाती हूं। 2015 में मेरी मां का स्वर्गवास हो गया।

आज जब भी मेरी कोई नई किताब आती है या मुझे कोई पुरस्कार मिलता है तो मुझे मां की बहुत याद आती है। मदर्स-डे के अवसर पर मैं उन्हें धन्यवाद देना चाहती हूं कि उन्हीं के बताए रास्ते पर चलने के कारण आज मैं जीवन में कामयाब हूं, खुश हूं। मैं सहेली की पाठिकाओं से यही कहूंगी, अपनी मां की सीखों को हमेशा अपने दिमाग में रखें, क्योंकि उन सीखों में जीवन को सही ढंग से जीने की कला छुपी है। ये सीखें आगे बढ़ने की राह बनाएंगी, जीवन को सुखी रखेंगी। 

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