डिप्रेशन से निकलने का ये है इलाज

आजकल की भागदौड़ और तनाव भरी जिंदगी में हर तीसरा आदमी अवसाद का शिकार हो जाता जा रहा है।
अवसाद कई बार थोड़े समय के लिए ही रहता है, कभी यही अवसाद भयानक रूप ले लेता है।
जब कोई व्यक्ति अवसाद संबंधी विकार से पीड़ित होता है, तो यह विकार उस व्यक्ति के रोजमर्रा के जीवन और उसके सामान्य कामकाज में बाधा डालता है तथा उस व्यक्ति और उसके परिवारजनों के दुखों का कारण बन जाता है।
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अधिकतर मामलों में अवसाद से गंभीर रूप से पीड़ित मरीज भी इलाज से बेहतर हो सकते हैं।
इस रोग के लिए हुई गहन शोधों से इस रोग से ग्रसित लोगों के इलाज के लिए अनेक औषधियां, साइकोथेरेपी और इलाज के अन्य तरीके ईजाद हुए हैं ।
हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है-
- तब उत्पन्न होती है जब हम जीवन के हर पहलू पर नकारात्मक रूप से सोचने लगते हैं। जब यह स्थिति चरम पर पहुंच जाती है तो व्यक्ति को अपना जीवन निरुद्देश्य लगने लगता है।
- जब मस्तिष्क को पूरा आराम नहीं मिल पाता और उस पर हमेशा एक दबाव बना रहता है, तो समझिए कि तनाव ने आपको अपनी चपेट में ले लिया है।
- तनाव के कारण शरीर में कई हार्मोन का स्तर बढ़ता जाता है, जिनमें एड्रीनलीन और कार्टिसोल प्रमुख हैं।
- लगातार तनाव की स्थिति अवसाद में बदल जाती है। अवसाद एक गंभीर स्थिति है। हालांकि यह कोई रोग नहीं है, बल्कि इस बात का संकेत है कि आपका शरीर और जीवन असंतुलित हो गया है।
- अवसाद रोग का कोई एक ज्ञात कारण नहीं है। फिर भी अवसाद के कारणों में आनुवंशिकता, बायोकेमिकल, वातावरण और मनोवैज्ञानिक संबंधी मिश्रित घटकों का समावेश होता है।
- अनेक शोधों के अनुसार अवसाद से संबंधित बीमारियां मस्तिष्क के विकार हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाएं डिप्रेशन से अधिक प्रभावित होती हैं।
- किसी भी काम में मन न लगना। ज़िन्दगी के लिए एक उलझा हुआ नज़रिया होना। बिना कारण वज़न का बढ़ना या कम होना।
- खान पान की आदतों में बदलाव करना। आत्महत्या के उपाय करना और आत्महत्या के बारे में सोचना।
- मन की एकाग्रता खोना, मन का एकाग्र न हो पाना आदि अवसाद के लक्षण होता है।
- परिवार में यदि किसी को अवसाद के लक्षण दो सप्ताह तक दिखाई दें, तो बिना देरी के मनोवैज्ञानिक या दोनो की सलाह लेनी चाहिए।
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उपचार-
- डॉक्टरी इलाज के अलावा नोएटिक (मंत्रों, संगीत, स्पर्श और प्रार्थना) थैरेपी वह थैरेपी होती है, जिसमें बिना दवाई, उपकरण और सर्जरी के इलाज किया जाता है।
- कई मरीजों पर नोएटिक थैरेपी का इस्तेमाल करने से पाया गया है कि वह,जो सिर्फ दवाई लेते हैं, उनके मुकाबले इनके 30 प्रतिशत ज्यादा सही होने की संभावना होती है।
- साथ ही इन लोगों में एक आश्वासन इस बात का भी होता है कि ये मरीज लंबे समय तक बीमार नहीं पड़ते।
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