Chana Dal Sife Effects: 5 परेशानियों में नहीं खाएं चना दाल, फायदे की जगह हो सकता है नुकसान

5 हेल्थ कंडीशन में चना दाल से बनाएं दूरी।
Chana Dal Sife Effects: सर्दियों में प्रोटीन की जरूरत पूरी करने के लिए ज्यादातर लोग दालों को अपनी रोज़ की डाइट में शामिल करते हैं। चना दाल ऐसी ही एक पौष्टिक दाल है, जो स्वाद के साथ शरीर को एनर्जी भी देती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर किसी के लिए यह दाल फायदेमंद नहीं होती? कुछ हेल्थ कंडीशन में इसे खाने से उल्टा असर हो सकता है।
कुछ शारीरिक स्थितियों में चना दाल पाचन से लेकर ब्लड शुगर तक असर डाल सकती है। ऐसे में अगर बिना सोचे-समझे इसे रोज़ाना खाने लगें, तो फायदे की जगह नुकसान भी झेलना पड़ सकता है।
5 हेल्थ कंडीशंस में न खाएं चना दाल
पाचन कमजोर हो तो बढ़ सकती है दिक्कत: चना दाल में फाइबर की मात्रा काफी ज्यादा होती है। ऐसे लोग जिनका पाचन सिस्टम कमजोर हो, उन्हें इसे खाने के बाद भारीपन महसूस हो सकता है। गैस, पेट फूलना और अपच जैसी शिकायतें बढ़ सकती हैं। खासतौर पर सर्दियों में पाचन धीमा होता है, ऐसे में सावधानी जरूरी है।
पेट में गैस या एसिडिटी हो तो रहें दूर: चना दाल शरीर में गैस बनाने वाले फूड्स में शामिल है। अगर किसी को पहले से गैस, एसिडिटी या पेट में सूजन की समस्या रहती है, तो यह दाल कंडीशन को और बिगाड़ सकती है। डॉक्टर इस स्थिति में दाल को सीमित या बंद रखने की सलाह देते हैं।
डायबिटीज के रोगियों के लिए खतरा बढ़ सकता है: चना दाल का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होते हुए भी अधिक मात्रा में खाने पर ब्लड शुगर लेवल को प्रभावित कर सकता है। डायबिटीज वाले लोग अगर इसे नियमित रूप से ज्यादा मात्रा में लें, तो शुगर कंट्रोल में दिक्कत आ सकती है। इसलिए मॉनिटरिंग के साथ ही सेवन करना चाहिए।
किडनी की समस्या हो तो बढ़ सकता है प्रोटीन लोड: किडनी रोगियों को प्रोटीन की मात्रा नियंत्रित रखनी होती है। चना दाल में प्रोटीन ज्यादा होता है, जो किडनी पर अतिरिक्त दबाव डाल सकता है। इसी वजह से किडनी मरीजों को इसे डॉक्टर की सलाह के बिना डाइट में शामिल नहीं करना चाहिए।
जोड़ों के दर्द या यूरिक एसिड में कर सकती है असर: चना दाल में प्यूरीन पाया जाता है, जो शरीर में जाकर यूरिक एसिड लेवल बढ़ा सकता है। जिन लोगों को गाउट, जोड़ों में दर्द या यूरिक एसिड की समस्या रहती है, उन्हें चना दाल खाने से परेशानी बढ़ सकती है। इस स्थिति में हल्की और लो-प्यूरीन दालें बेहतर विकल्प होती हैं।
(Disclaimer: इस आर्टिकल में दी गई सामग्री सिर्फ जानकारी के लिए है। हरिभूमि इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी सलाह या सुझाव को अमल में लेने से पहले किसी विशेषज्ञ/डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।)
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लेखक: (कीर्ति)
