Lung Cancer: शुरुआती स्टेज में पकड़ में आ सकेगा फेफड़ों का कैंसर! नई स्टडी ने जगाई उम्मीद

Lung Cancer New Study
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लंग कैंसर को लेकर हालिया स्टडी ने नई उम्मीद जगाई है।

Lung Cancer: फेफड़ों का कैंसर अब शुरुआती स्टेज में भी पकड़ में आ सकता है। हाल ही में हुई एक स्टडी से इस बात की उम्मीद जगी है।

Lung Cancer: फेफड़ों के कैंसर की समय पर पहचान अब आसान हो सकती है। एक नई स्टडी में दावा किया गया है कि एक खास तरह का ब्लड टेस्ट फेफड़ों के कैंसर को शुरुआती स्टेज में ही पकड़ सकता है। इससे न सिर्फ बीमारी की पहचान में होने वाली देरी कम होगी, बल्कि मरीजों के इलाज के नतीजे भी बेहतर हो सकते हैं। यह नया ब्लड टेस्ट यूके के शोधकर्ताओं ने मिलकर तैयार किया है। इस टीम में यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल्स ऑफ नॉर्थ मिडलैंड्स एनएचएस ट्रस्ट (UHNM), कील यूनिवर्सिटी और लॉफबरो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक शामिल हैं।

सीएनबीसीटीवी18 की खबर के मुताबिक शोधकर्ताओं का कहना है कि यह टेस्ट डॉक्टरों को फेफड़ों के कैंसर की पहचान और निगरानी दोनों में मदद कर सकता है। इस टेस्ट में फूरियर ट्रांसफॉर्म इन्फ्रारेड (FT-IR) माइक्रोस्पेक्ट्रोस्कोपी नाम की तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। यह तकनीक खून में मौजूद कोशिकाओं को उनके केमिकल पैटर्न के आधार पर पहचानती है।

कैसे काम करता है यह ब्लड टेस्ट

फिलहाल खून में मौजूद कैंसर कोशिकाओं, जिन्हें सर्कुलेटिंग ट्यूमर सेल्स (CTCs) कहा जाता है, को पहचानना काफी मुश्किल होता है। मौजूदा तरीके महंगे, जटिल और समय लेने वाले हैं। कई बार ये टेस्ट कैंसर कोशिकाओं को पहचान भी नहीं पाते, क्योंकि खून में घूमते समय ये कोशिकाएं अपना आकार और गुण बदल लेती हैं।

नई तकनीक इस प्रक्रिया को काफी आसान बना देती है। इसमें डॉक्टर सबसे पहले मरीज के खून के सैंपल पर इंफ्रारेड लाइट डालकर उसे स्कैन करते हैं। शरीर की हर कोशिका का एक अलग केमिकल फिंगरप्रिंट होता है, ठीक किसी पहचान पत्र की तरह। फेफड़ों के कैंसर की कोशिकाओं का फिंगरप्रिंट सामान्य कोशिकाओं से अलग होता है।

इसके बाद कंप्यूटर इस डेटा का विश्लेषण करता है और लाखों सामान्य कोशिकाओं के बीच मौजूद सिर्फ एक कैंसर कोशिका को भी पहचान सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक यही इस टेस्ट की सबसे बड़ी खासियत है।

स्टडी की पूरी जानकारी

इस स्टडी में कुल 1,814 लोगों को शामिल किया गया। इनमें 1,095 लोग फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित थे, जबकि 719 लोगों में कैंसर नहीं था। ये सभी लोग तीन अलग-अलग समूहों से थे। खून के सैंपल में चार प्रोटीन ट्यूमर मार्कर्स की जांच की गई। इसके लिए रोश कोबास टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया। इसके बाद शोधकर्ताओं ने इस डेटा पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) एल्गोरिदम लागू किए।

दो-स्टेप स्क्रीनिंग प्रोसेस

शोध टीम ने फेफड़ों के कैंसर की पहचान के लिए दो-चरणीय स्क्रीनिंग प्रक्रिया तैयार की है। पहले चरण में AI आधारित ब्लड टेस्ट किया जाता है, तो दूसरे चरण में मरीज का लो-डोज़ सीटी स्कैन (LDCT) किया जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तरीके से फेफड़ों के कैंसर को जल्दी पकड़ा जा सकता है और बिना जरूरत के होने वाले CT स्कैन भी कम किए जा सकते हैं।

स्टडी के प्रमुख लेखक और UHNM में ऑन्कोलॉजी विशेषज्ञ प्रोफेसर जोसेप सुले-सुसो ने कहा कि उनकी टीम ने इंफ्रारेड स्कैनिंग और कंप्यूटर एनालिसिस को मिलाकर मरीज के खून में मौजूद सिर्फ एक कैंसर कोशिका को भी पहचानने में सफलता पाई है। यह पहचान कैंसर कोशिकाओं के खास केमिकल फिंगरप्रिंट के आधार पर की गई।

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(लेखक:कीर्ति)

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