श्राद्ध स्पेशल: श्राद्ध के अंतिम दिन क्या करें और क्या ना करें...

श्राद्ध स्पेशल: श्राद्ध के अंतिम दिन क्या करें और क्या ना करें...
X
धर्म ग्रंथों के अनुसार, श्राद्ध के 16 दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करते हैं।
नई दिल्ली. हमारे देश में पितृ पक्ष को एक महत्वपूर्ण दर्जा दिया गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, श्राद्ध के 16 दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है। कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं।
श्राद्ध का तात्पर्य श्रद्धाभिव्यक्ति परक कर्म हैं जो देवात्माओं, महापुरुषों, ऋषियों, गुरुजनों और पितर पुरुषों की प्रसन्नता के लिए किए जाते हैं। वार्षिक श्राद्ध भी जो किए जाते हैं, उसमें श्रद्धाभाव का, पितृ पुरुषों के उपकारों के लिए उनके प्रति आभार व्यक्त करने की भक्ति भावना प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया जाता है। इन सब प्रयत्नों में पितरों की तृप्ति के लिए उनकी पूजा-उपासना के साथ वैदिक विधान से पिण्डदान के साथ उनका तर्पण किया जाता है। पिण्ड तो प्रतीक भर होते हैं, असली समपर्ण श्रद्धा-भावना ही होती है। वही पितर, देव, ऋषि व महापुरुषों को प्रसन्न करने के माध्यम बनती है।
श्राद्ध जब भी किया जाए उत्तम है। बारह महीनों के पूरे 365 दिन देव-पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त की जाए तो और उत्तम है। पूजा-उपासना जितनी अधिक हो, उतना अच्छा। देव-पितरादि को जितनी अधिकाधिक श्रद्धा भावना समर्पित करके प्रसन्न किया जायए उतना उत्तम। पितृपक्ष का श्राद्ध ऐसा है कि नित्य यदि श्रद्धार्पण न बन पड़े तो नैमित्तिक सही, करते रहना चाहिए। असली श्रद्धा तो नित्य देव पूजन, पितर पूजन, ऋषि आत्माओं का पूजन और सत्स्वरूप ईश्वर आराधन है। यह जितना अधिक हो सके उनता ही सत्य की निकटता प्राप्त होने का अवसर मिलता है।
बता दें कि श्रद्धा यदि इस हद तक पहुंच जाए तो समझना चाहिए श्राद्ध सार्थक हो गया। श्रद्धा यदि सत्य को छू ले तो समझना चाहिए श्राद्ध धन्य हो गया। साल में एक बार श्राद्ध किया तो क्या किया? श्रद्धार्पण हर वक्त, हर पल, हर क्षण होना चाहिए। हमें देव पुरुषों, पितर पुरुषों, दिव्यात्माओं और ईश्वरीय सत्ता के जितना अधिक आशीष मिले, उतना ही अहोभाग्य है। श्राद्ध के साथ-साथ एक और बात भी करने योग्य है। हम ईश्वर या पितर पुरुषों से सुख सौभाग्य की कामना करते हैं। सुख सौभाग्य केवल ईश्वर से नहीं मिलते। उनके रचित इस सुविस्तृत निसर्ग में भी वह मौजूद है जो महाभूतों से निर्मित है। इन भूतों में धरती हमारे सबसे निकट है, बस-वास और खान-पान का आधार है। इसमें अन्न जल ही नहीं, वृक्ष वनस्पति भी हमारे जीवित एवं स्वस्थ रहने में सहायक होते हैं।
नीचे की स्लाइड्स में पढें, खबर से जुड़ी अन्य जानकारी -
खबरों की अपडेट पाने के लिए लाइक करें हमारे इस फेसबुक पेज को फेसबुक हरिभूमि, हमें फॉलो करें ट्विटर और पिंटरेस्‍ट पर-

और पढ़े: Haryana News | Chhattisgarh News | MP News | Aaj Ka Rashifal | Jokes | Haryana Video News | Haryana News App

WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo

Tags

  • 1
  • 2
  • ...
  • 4
  • 5

  • Next Story