गठबंधन धर्म' को चुनौती: योगी के मंत्री अपने ही सरकार के खिलाफ करेंगे प्रचार, जानिए अंदरखाने वाली कहानी!
राजभर ने 153 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का दावा किया था, लेकिन केवल 64 उम्मीदवार ही मैदान में उतर पाए।
राजभर आठ नवंबर को रामनगर और दाऊदनगर में चुनावी जनसभाओं को संबोधित करेंगे।
लखनऊ : उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में पंचायती राज मंत्री ओम प्रकाश राजभर अब बिहार के चुनावी रण में NDA के लिए चुनौती बनकर उतरेंगे। उनकी पार्टी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव के लिए 64 प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं और राजभर खुद इन उम्मीदवारों के लिए प्रचार करेंगे। यह घटनाक्रम न केवल बिहार की चुनावी बिसात पर, बल्कि उत्तर प्रदेश में सुभासपा और बीजेपी के बीच गठबंधन को लेकर भी राजनीतिक हलचल बढ़ा रहा है। राजभर की रैलियां एनडीए और महागठबंधन दोनों के खिलाफ होंगी, जिसमें उनका लक्ष्य अपने वोट आधार, खासकर राजभर समुदाय को, अपनी ओर आकर्षित करना है। बिहार में पार्टी की यह आक्रामक एंट्री सीटों के बंटवारे पर एनडीए से बात न बन पाने का नतीजा है।
एनडीए से बात न बनने के बाद लिया बड़ा फैसला
उत्तर प्रदेश में एनडीए गठबंधन में शामिल होने के बावजूद, ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले उतरने का बड़ा फैसला लिया है। यह निर्णय तब आया जब बिहार में सीट बंटवारे को लेकर सुभासपा और एनडीए के बीच कोई सहमति नहीं बन पाई। राजभर अपनी पार्टी के लिए कुछ सीटें चाहते थे, लेकिन एनडीए ने कथित तौर पर उनकी मांग पर कोई खास ध्यान नहीं दिया। इसके बाद राजभर ने 153 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, हालांकि बाद में 64 प्रत्याशी ही मैदान में उतारे जा सके। यह माना जा रहा है कि सुभासपा की मौजूदगी उन सीटों पर एनडीए के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है जहा पर राजभर समाज की अच्छी खासी आबादी है, विशेष रूप से पूर्वांचल से सटे बिहार के इलाकों में। राजभर अपनी रैलियों में दोनों प्रमुख गठबंधनों की नीतियों की आलोचना कर अपनी पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास करेंगे।
राजभर परिवार मैदान में, बेटे भी संभाल रहे मोर्चा
ओम प्रकाश राजभर न केवल खुद चुनाव प्रचार की कमान संभाल रहे हैं, बल्कि उनके परिवार के सदस्य भी सुभासपा के प्रचार में सक्रिय रूप से जुटे हुए हैं। राजभर के बेटे और पार्टी के प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव डॉ. अरविंद राजभर तथा प्रमुख राष्ट्रीय प्रवक्ता अरुण राजभर भी बिहार के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार कर रहे हैं। राजभर आठ नवंबर को रामनगर और दाऊदनगर जैसी जगहों पर चुनावी जनसभाओं को संबोधित कर 10 विधानसभा क्षेत्रों के मतदाताओं को साधने की कोशिश करेंगे। पार्टी की रणनीति स्पष्ट है कि वह बिहार में एक विकल्प के तौर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है और अपने पारंपरिक वोट बैंक को एकजुट करना चाहती है। राजभर अपने भाषणों में सामाजिक न्याय और वंचितों के अधिकारों पर जोर दे रहे हैं, ताकि मतदाताओं को उनकी पार्टी की ओर आकर्षित किया जा सके। उनकी यह पूरी कोशिश एनडीए और महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगाने की है।
प्रेशर पॉलिटिक्स बनाम हकीकत, सीमित जनाधार और एनडीए की रणनीति
ओम प्रकाश राजभर का 153 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का ऐलान, जिसके बाद केवल 64 प्रत्याशी ही मैदान में आ सके, राजनीतिक गलियारों में उनकी 'प्रेशर पॉलिटिक्स' के तौर पर देखा जा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में सुभासपा का जमीनी स्तर पर व्यापक जनआधार बहुत सीमित है, खासकर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल से सटे कुछ इलाकों से बाहर। इसी सीमित जनाधार की वजह से वह अपनी घोषित संख्या 153 के मुकाबले बहुत कम उम्मीदवारों को ही मैदान में उतार पाए। भारतीय जनता पार्टी बिहार में राजभर के अल्प प्रभाव को अच्छी तरह से जानती थी। यही कारण रहा कि एनडीए ने उन्हें बिहार चुनाव में सीटें नहीं दीं, क्योंकि भाजपा नहीं चाहती थी कि किसी ऐसे सहयोगी को सीट देकर गठबंधन की सीटें खतरे में डाली जाए, जिसका जीतना संदिग्ध हो। राजभर की यह कोशिश अपनी पार्टी की अखिल भारतीय पहचान बनाने और उत्तर प्रदेश में भविष्य के गठबंधन के लिए सौदेबाजी की शक्ति बढ़ाने की रही है, भले ही बिहार में उनका राजनीतिक प्रभाव मामूली हो।