लुवास को बड़ी सफलता: हिसार के वैज्ञानिकों को मिला पशुओं के थनैला रोग की जांच किट का पेटेंट, जल्द पकड़ में आएगी बीमारी
हरियाणा के हिसार में स्थित पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के छात्र व वैज्ञानिकों ने थनैला रोग को जल्द पकड़ने की नई तकनीक खोजी है। इससे बीमारी को पहली स्टेज में ही पकड़कर उसका जल्द इलाज संभव हो सकेगा। इस तकनीक का पेटेंट भी करवा लिया गया है।
LUVAS scientists get patent : हरियाणा के हिसार स्थित लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास) ने पशुओं में थनैला (मैस्टाइटिस) रोग के निदान में क्रांति लाने वाली एक अत्याधुनिक जैव रासायनिक तकनीक विकसित की है। इस अभिनव तकनीक को भारत सरकार के बौद्धिक संपदा कार्यालय से पेटेंट प्राप्त हुआ है। यह पेटेंट "दूध में अल्फा-1 एसिड ग्लाइकोप्रोटीन की सांद्रता का अनुमान लगाने के लिए जैव रासायनिक परख" शीर्षक के अंतर्गत पेटेंट नंबर 566866 के रूप में प्रदान किया गया है।
थनैला रोग को जल्द पकड़कर इलाज में मदद करेगी नई तकनीक
लुवास के कुलपति एवं अनुसंधान निदेशक डॉ. नरेश जिंदल ने इस उपलब्धि को विश्वविद्यालय के लिए एक मील का पत्थर बताते हुए कहा कि यह तकनीक विशेष रूप से गाय और भैंसों में थनैला की पहचान के लिए तैयार की गई है। थनैला एक गंभीर रोग है जो दुग्ध उत्पादन को प्रभावित करता है और पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान पहुंचाता है। यह तकनीक समय रहते सटीक जांच और इलाज की दिशा में बेहद कारगर सिद्ध होगी।
कैसे काम करती है यह तकनीक?
इस तकनीक के अंतर्गत दूध के नमूने को एक विशिष्ट रसायन के साथ मिलाया जाता है। इसके बाद स्पेक्ट्रोफोटोमीटर की मदद से उसमें उपस्थित अल्फा-1 एसिड ग्लाइकोप्रोटीन की मात्रा को मापा जाता है। यह जैव अणु थनैला रोग की स्थिति में दूध में अधिक मात्रा में पाया जाता है, जिससे बीमारी की पुष्टि आसानी से की जा सकती है। इस विधि की खासियत यह है कि यह कम समय और खर्च में सटीक परिणाम देती है, जिससे इसका उपयोग फील्ड लेवल पर भी संभव हो सकेगा।
छात्र डॉ. अनिरबन गुहा की मेहनत रंग लाई
इस तकनीक को विकसित करने में डॉ. अनिरबन गुहा, जो लुवास के एक स्नातकोत्तर छात्र हैं ने अहम भूमिका निभाई। उन्होंने यह शोध कार्य पूर्व प्रोफेसर डॉ. संदीप गेरा के मार्गदर्शन में पशु चिकित्सा फिजियोलॉजी एवं जैव रसायन विभाग में पूरा किया। विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस नवाचार को संभव बनाने वाली टीम को बधाई दी है।
लुवास करवा चुका है 13 पेटेंट और 2 कॉपीराइट
कुलपति डॉ. जिंदल ने कहा कि इस तरह के वैज्ञानिक शोध विश्वविद्यालय की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा और नवाचार क्षमताओं को दर्शाते हैं। उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि भविष्य में लुवास के शोधार्थी और वैज्ञानिक और अधिक पेटेंट प्राप्त करने की दिशा में काम करेंगे। अब तक लुवास को कुल 13 पेटेंट (एक अंतरराष्ट्रीय व 12 राष्ट्रीय) और 2 कॉपीराइट प्राप्त हो चुके हैं। साथ ही विश्वविद्यालय द्वारा कई और अनुसंधान परियोजनाओं के लिए IPR (बौद्धिक संपदा अधिकार) के तहत आवेदन प्रस्तुत किए गए हैं। डॉ. संदीप गेरा ने इस मौके पर कहा कि हमारा मकसद पशुपालकों को कम लागत में वैज्ञानिक समाधान देना है। यह तकनीक थनैला रोग की त्वरित पहचान में मदद करेगी और इसके उपचार की दिशा को प्रभावी बनाएगी। यह पेटेंट न केवल विश्वविद्यालय की वैज्ञानिक क्षमता को प्रमाणित करता है, बल्कि यह देश के पशु स्वास्थ्य प्रबंधन को भी नई दिशा देगा।