Delhi AIIMS News: अब वोकल कॉड के बिना भी बोलेंगे मरीज, AIIMS ने IIT संग मिलकर बनाया डिवाइस

Delhi AIIMS News: अब वोकल कॉर्ड को निकाले बिना ही गले के कैंसर के मरीज बोल पाएंगे। दिल्ली एम्स और आईआईटी दिल्ली ने मिलकर एक ऐसा उपकरण बनाया है। अभी तक यह उपकरण 20 मरीजों को लगाया गया है।

Updated On 2024-01-19 16:28:00 IST
एम्स और आईआईटी ने मिलकर बनाया डिवाइस।

Delhi AIIMS News:राजधानी दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) ने मिलकर ऐसा डिवाइस बनाया है, जिससे गले के कैंसर का इलाज कराने के चलते अपना वॉयस बॉक्स या वोकल कॉर्ड गंवाने वाले अब आसानी से बातचीत कर पाएंगे। प्लास्टिक से बने इस देसी वॉल्व की मदद से लोग बोल सकेंगे। इसे बनाने में बेहद कम खर्च लगता है। अभी तक इस प्रकार का मेडिकल इंप्लांट यूरोप से मंगाया जाता था, जिसकी कीमत 40 से 45 हजार होती थी, लेकिन दिल्ली एम्स में बने इस इंप्लांट की कीमत 2 से ढाई हजार के बीच होगी।

वोकल कॉड क्या होता है। 

व्यक्ति की वोकल कॉ़ड मांसपेशी ऊतक के दो लचीले बैंड को कहते हैं, जो सांस लेने वाली नली के पास होता है। जब व्यक्ति बोलता है, तो बैंड एक साथ आते हैं और ध्वनि उत्पन्न करने के लिए कंपन करते हैं बाकी समय स्वरयंत्र या वोकल कॉर्ड खुली स्थिति में शिथिल रहते हैं ताकि व्यक्ति सांस ले सके। यह ध्वनि उत्पन्न करने के अलावा और भी बहुत कुछ करते हैं जैसे भोजन, पेय  और मुंह की लार को सांस लेने वाली नली में प्रवेश करने से रोक कर वायुमार्ग की रक्षा करते हैं। अगर ऐसा नहीं होता है तो व्यक्ति का दम घुट जाता है। 

20 मरीजों में लगाया गया वोकल कॉड

डॉक्टर के मुताबिक, दिल्ली एम्स और आईआईटी दिल्ली ने मिलकर दो प्रकार के डिजाइन का वोकल कॉड वॉल्व बनाया है। पहले फेज के ट्रायल में हमने इस प्लांट का लैब टेस्ट किया। इसका मकसद बायोलॉजिकल सेफ्टी जानना था। हमारे दो प्रकार के डिवाइस में से एक दुनिया के 10 बेस्ट प्रोडक्ट में से एक था। जब इसे पहली बार मरीज में लगाया तो मरीज इसे टॉलरेट नहीं कर पा रहा था, इसके बाद हमने इसके डिजाइन में बदलाव किया। जिसका वर्जन टू इस्तेमाल किया जा रहा है। अब तक 20 मरीजों में लगाया जा चुका है। सभी मरीज बोल पा रहे हैं। किसी को कोई दिक्कत नहीं आ रही है। 

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एम्स में फ्री में दिया जाएगा

एम्स डॉक्टर आलोक ने बताया कि एम्स में यह इंप्लांट मरीजों को फ्री में दिया जाएगा। अगर भविष्य में यह बाजार में उतारा जाता है तो कोशिश रहेगी कि यह सस्ता हो ताकि लोगों के पैसों से बने इंप्लांट का फायदा आम जनता को मिल सके। इसलिए इसकी कीमत भी कम ही रखी गई है। उन्होंने आगे कहा कि छह से आठ महीने में इसे बदलना पड़ता है, अब इसे ओपीडी बेसिस पर मरीज इसे बदलवा सकते हैं। 

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