No Monsoon Rain: दिल्ली में बारिश न होना MCD और DDA के लिए फायदेमंद? जानिये वजह
मानसून ने पूरे देश को कवर कर लिया है, लेकिन दिल्ली के लोग अभी तक इसका इंतजार कर रहे हैं। एक पेंच ऐसा भी है, जो बारिश न होने को जस्टिफाई कर रहा है।
देश के सभी राज्यों में मानसून ने दस्तक दे दी है, लेकिन दिल्ली के लोग अभी तक मानसून की बारिश का इंतजार कर रहे हैं। ऐसे में राजधानी के लोगों का मायूस होना लाजमी है। लेकिन, दिल्ली नगर निगम में स्टाफ की कमी पर नजर डालें तो बारिश का न होना, इस विभाग के लिए फायदेमंद नजर आ रहा है। खास बात है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण भी स्टाफ की कमी से जूझ रहा है। आलम यह है कि एग्जिक्यूटिव इंजीनियर और जूनियर इंजीनियर के भी ढेरों पद खाली पड़े हैं। इसके चलते टेंडर जारी करने से लेकर सुपरविजन करने तक कई काम प्रभावित हो रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पब्लिक प्रोटेक्शन मूवमेंट ऑर्गेनाइजेशन के निदेशक जीशान हैदर ने आरटीआई लगाकर एमसीडी और डीडीए से रिक्त पदों पर जानकारी मांगी थी। जानकारी से पता चला कि एमसीडी में एग्जिक्यूटिव इंजीनियर से लेकर जूनियर जेई तक कुल 1385 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 216 पद रिक्त पड़े हैं।
इसी प्रकार, डीडीए में भी एग्जिक्यूटिव इंजीनियर से लेकर जेई तक 536 पद खाली हैं। बारिश के मौसम में एमसीडी और डीडीए को खास तैयारियां करनी पड़ती है। नालों की सफाई, सड़क निर्माण, जर्जर इमारतों की पहचान जैसे कई कार्य करने होते हैं। लेकिन, एग्जिक्यूटिव इंजीनियर से लेकर जेई तक कई पद रिक्त होने से इन कार्यों पर असर पड़ना तय है। यही वजह है कि दिल्ली में बारिश का न होना, इनके लिए फायदेमंद बताया जा रहा है।
एमसीडी में खाली पदों का ब्यौरा
एमसीडी में एग्जिक्यूटिव इंजीनियर से लेकर जूनियर इंजीनियर तक कुल 216 पद खाली हैं। एग्जिक्यूटिव इंजीनियर (सिविल) के 47 पद, एग्जिक्यूटिव इंजीनियर (इलेक्ट्रिक) के 10 पद, असिस्टेंट इंजीनियर (सिविल) के 82 पद, असिस्टेंट इंजीनियर (इलेक्ट्रिक) के 13 पद, जूनियर इंजीनियर (सिविल) के 36 पद और जूनियर इंजीनियर (इलेक्ट्रिक) के 28 पद रिक्त हैं। इन अधिकारियों का कार्य टेंडर जारी करने, कार्य पर निगरानी रखने समेत कई महत्वपूर्ण कार्य करने होते हैं। इन पदों के रिक्त रहने से इन कार्यों का प्रभावित होना लाजमी है।
पार्षदों ने उठाया था ये मुद्दा
दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति की बैठक में कई पार्षदों ने यह मुद्दा उठाया था। पार्षदों ने सवाल उठाए थे कि नालों की सफाई नहीं हो रही। कुछ इलाकों में तो कचरा उठान भी नहीं हो रहा। इस चर्चा के जवाब में निगमायुक्त अश्वनी कुमार ने कहा था कि हमने 92 प्रतिशत नालों की सफाई का कार्य कर लिया है। 23 जून तक 4 फुट से गहरे नालों से 1.56 लाख मीट्रिक टन गाद निकाली गई, जबकि 4 फुट से कम गहरे नालों से 37 मीटिंग टन गाद निकाली गई है, जो कि पिछले साल की तुलना में अधिक है।
पार्षदों के सवालों से परेशान निगमायुक्त ने कहा कि जलभराव और नाले की सफाई, अलग अलग बात है। हमारा इंद्रदेव पर नियंत्रण नहीं है कि कहां कम वर्षा करनी चाहिए और कहां ज्यादा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि निचले इलाकों में भी जलभराव होना तय है, लेकिन पिछले साल की तुलना में बेहतर कार्य कर रहे हैं।
अधिकारी नहीं तो फिर मॉनिटरिंग कैसे होगी
पिछले अनुभवों से पता चलता है कि मानसून की बारिश दिल्ली में बड़े जानमाल का सबब बनती है। कहीं इमारत के ढहने से, तो कहीं जलभराव से लोगों की जान चली जाती है। बड़ी घटनाओं पर नजर डालें तो इसी साल अप्रैल महीने में दिल्ली के मुस्तफाबाद में चार मंजिला इमारत ढहने से 11 लोगों की मौत और पिछले साल 27 जुलाई 2024 को राजेंद्र नगर के कोचिंग सेंटर में जलभराव से तीन छात्रों की मौत के अलावा ऐसे कई हादसे हैं, जो कि प्रशासनिक लापरवाही के चलते आम जिंदगियों पर भारी पड़ी है। ऐसे में इन हादसों पर नकेल कसने के लिए इन विभागों को स्टाफ की कमी से उबारना आवश्यक है।