Delhi Pul Bangash: दिल्ली के पुल बंगश इलाके की कहानी के पीछे का रहस्य
दिल्ली में एक ऐसा इलाका है जहां पुल न होते हुए भी उसका नाम पुल बंगश रखा हुआ है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब इस इलाके में पुल नहीं है, तो इसका नाम पुलबंगश कैसे पड़ा?
Delhi Pul Bangash: दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों की अनेकों कहानियां इतिहास के पन्नों में सिमटी हुई हैं। इन इतिहास के पन्नों में हर गली, मोहल्ले से जुड़ी कई कहानी मौजूद हैं। ऐसी ही कहानी है दिल्ली के पुलबंगश की... दिल्ली में मेट्रो की रेड लाइन पर पुल बंगश नाम का एक मेट्रो स्टेशन है। अगर आपने इस रेड लाइन पर सफर किया है, तो ये स्टेशन जरूर देखा होगा।
पुल बंगश नाम की कहानी
दिल्ली शहर में अनेक बाहरी लोगों ने राज किया और यहां पर रहकर कई ऐतिहासिक स्मारकों का भी निर्माण करवाया। देश की राजधानी दिल्ली में बंगश वंश के लोगों ने भी अपनी गहरी छाप छोड़ी थी। इस वंश का दिल्ली में बहुत अधिक प्रभाव रहा था। ऐतिहासिक स्रोतों के मुताबिक मुहम्मद खान बंगश, बंगश जनजाति का एक प्रभावशाली अफगान सरदार था। जिसने भारत में 1665 से 1743 तक मुगल बादशाह फर्रुखसियर और मुहम्मद शाह रंगीला के साथ मिलकर काम किया था। पुल बंगश नाम उनकी ही पत्नी की देन है।
रबिया बेगम ने बनवाया पुल बंगश
रबिया बेगम मुहम्मद खान की पत्नी का नाम था, जिसने दिल्ली की अली मर्दन नहर की एक शाखा पर पुल बनवाया था। इस पुल का निर्माण स्थानीय लोगों की सुविधा के लिए करवाया गया था। इसी पुल का नाम बंगश रखा गया था। इस पुल के नाम पर ही आस-पास के इलाके का नाम पुल बंगश पड़ गया था। लेकिन वर्तमान समय में अब दिल्ली में ऐसा कोई पुल नहीं है। मुगल शासन के पतन के साथ ही अली मर्दन नहर सूख गई और उसके ऊपर बना पुल भी नष्ट हो गया था। पहले अली मर्दन नहर दिल्ली शहर के लोगों के लिए जीवन रेखा हुआ करती थी।
दिल्ली के विकास में रबिया बेगम योगदान
रबिया बेगम ने दिल्ली के विकास के लिए अनेक काम करवाए थे। उन्होंने एक शानदार हवेली का निर्माण करवाया था, यह हवेली मटिया महल से दिल्ली गेट तक सड़क पर बनाई गई थी। इसे कमरा बंगश के नाम से जाना जाता है। सराय बंगश जो फतेहपुर मस्जिद के पास बना है, जिसका निर्माण भी रबिया बेगम के प्रयासों का नतीजा था। इसका निर्माण सामाजिक और व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए किया गया था। परन्तु इन सब में पुल बंगश का नाम काफी चर्चा में रहा था क्योंकि यह आम लोगों के जीवनयापन से जुड़ा था।
अली मर्दन के गुमनाम की कहानी
बदलते समय के साथ अली मर्दन नहर गुमनाम हो गई। जिस जगह यह नहर बहती थी, आज वहां संकरी गलियां, घनी आबादी और भीड़भाड़ वाले बाजार बस चुके हैं। पुल बंगश इस इलाके की शान हुआ करता था। अब उसका नाम केवल इतिहास के पन्नों में दर्ज है। अब मेट्रो स्टेशन, पुरानी हवेलियां और ऐतिहासिक इमारतें इस इलाके की पहचान बन चुकी हैं। थॉमस जे. हॉलैंड और माइकल डी. कैलांब्रिया नाम के लेखक की एक किताब 'दिल्ली अ हिस्ट्री ' में मोहम्मद खान बंगश और उनके परिवार के प्रभाव के बारे में लिखा है।
आज पुल बंगश इलाके में खूब चहल-पहल देखने को मिलती है। यह इलाका पूरी तरह बदल चुका है। एक तरफ पुरानी रिहायशी कॉलोनिया हैं, तो दूसरी ओर commercial hubs हैं। अब इसकी तंग गलियों की पहचान मसालों के बाजार, पुरानी हवेलियां, स्वादिष्ट स्ट्रीट फूड है। इस ऐतिहासिक इलाके तक आप मेट्रो से आसानी से जा सकते हैं। यह इलाका करोल बाग और ओल्ड दिल्ली को जोडता है, जो इसे व्यापार की दृष्टि से खास बनाता है।