Delhi History: संभाजी महाराज की निर्मम हत्या के बाद क्या हुआ? छावा 2 आने से पहले पढ़ लें कहानी

आज का दिन यानी 3 जुलाई बेहद खास है, जो कि फिल्म छावा के आगे की कहानी पर प्रकाश डालता है। जानिये संभाजी महाराज की मौत के बाद दिल्ली मराठों के निशाने पर क्यों आ गया?

Updated On 2025-07-05 17:53:00 IST

आज के दिन मराठों ने किया था दिल्ली पर हमला। 

Delhi History 3 July: मराठा साम्राज्य के द्वितीय छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित फिल्म 'छावा' में क्रूर मुगल शासक औरंगजेब की हैवानियत को बाखूबी तरीके से दर्शाया गया है। यह फिल्म देखने वाले सभी लोग जान गए होंगे कि औरंगजेब ने संभाजी महाराज को किस तरह धोखे से पकड़ा और मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए कई जुल्म किए थे। इसके बावजूद संभाजी महाराज ने औरंगजेब की गुलामी स्वीकार नहीं की और हंसते-हंसते जान दे दी। अगर आपने छावा मूवी देखी है, तो आप भी छावा 2 के आने का इंतजार कर रहे होंगे। लेकिन, आज का दिन यानी 3 जुलाई बेहद खास है, जो इसके आगे की कहानी पर रोशनी डालता है। तो चलिये बताते हैं कि संभाजी महाराज की मौत के बाद क्या कुछ हुआ...

संभाजी महाराज की पत्नी यशोबाई को बंदी बनाया
इतिहास पर नजर डालें तो औरंगजेब ने 1689 में शिवाजी के पुत्र संभाजी महाराज को निर्मम तरीके से मार डाला था। इसके बाद उनकी पत्नी यशोबाई को बंदी बना लिया गया। 88 साल की उम्र में 1907 को औरंगजेब की प्राकृतिक कारणों से मृत्यु हो गई। औरंगजेब की मौत के बाद यशोबाई को दिल्ली के लाल किले में भेज दिया गया।

पेशवा बाजीराव के पिता बालाजी विश्वनाथ भट्ट ने पहली बार 1719 में लाल किले पर हमला किया और यशोबाई को छुड़वाने में सफल रहे। इसके बाद मराठा सेनाओं ने उत्तर की ओर रुख किया और पेशावर तक भगवा रंग लहरा दिया। इस बीच मराठा सेना के एक दल ने दिल्ली पर कब्जा करने की इच्छा जताई, जिसके बाद रघुनाथ राव, दत्ताजी शिंदे और जनकोजी शिंदे दिल्ली पर कब्जा करने के लिए रवाना हो गए।

दिल्ली में कई बार लहराया भगवा ध्वज
इतिहासकारों की मानें तो मराठों ने एक-दो बार नहीं बल्कि आठ बार दिल्ली की सत्ता पर कब्जा किया था। सबसे पहले 3 जुलाई 1760 को दिल्ली की सत्त पर पूरी तरह से कब्जा किया था। इतिहासकार मोहन शेटे की मानें तो मराठा सरदार महादजी शिंदे के नेतृत्व में 1771 में भी दिल्ली पर हमला किया गया।

महादजी शिंदे की सेना ने शाह आलम द्वितीय को मुसीबतों से निकालकर दिल्ली की गद्दी पर बैठा दिया। शाह आलम बेहद प्रसन्न थे और महादजी शिंदे को तोहफा देना चाहते थे। इस पर महादजी शिंदे ने कहा था कि जिस तरह से लाल किले पर मुगल शासन का हरा झंडा लहरा रहा है, उसी तरह मराठों का भगवा झंडा भी लहराया जाए। इसके बाद करीब 15 साल तक भगवा रंग लाल किले की शोभा बढ़ाता रहा।

मराठों को फिर से दगाबाजी मिली
इतिहास पर नजर डालें तो मराठों ने जहां मुगल शासक शाह आलम द्वितीय की मदद कर उसे गद्दी पर बैठाया था, उसी ने अंग्रेजों के साथ मिलकर साजिश रची। दरअसल, शाह आलम को लग रहा था कि वह मराठों की कठपुतली बन गया है। इसलिए उसने ब्रिटिश जनरल गेरार्ड लेक से संरक्षण मांगा। अंग्रेज पहले से ऐसे अवसर की तलाश में थे, लिहाजा मराठों के खिलाफ युद्ध की प्लानिंग तैयार कर ली गई। 11 सितंबर 1803 को पटपड़गंज में मराठों और अंग्रेजों के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जिसे दिल्ली युद्ध के नाम से भी पहचाना जाता है।

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