Delhi High Court: पहली हो या दूसरी पत्नी, दोनों को देना होगा गुजारा भत्ता, HC की टिप्पणी

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि चाहे पहली पत्नी हो या फिर दूसरी, दोनों को अपने पति से गुजारा भत्ता पाने का हक है। नीचेल पढ़ें पूरा मामला...

Updated On 2025-07-17 11:29:00 IST

पहली हो दूसरी पत्नी, दोनों को देना होगा गुजारा भत्ता।

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि कानूनी रूप से पति को अपनी पत्नी को भरण पोषण (Maintenance) देने के लिए बाध्य है, फिर चाहे वह उसकी पहली पत्नी हो या दूसरी। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने मंगलवार अपने एक फैसले में कहा कि भरण-पोषण के अधिकार के मामले डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के तहत पहली और दूसरी शादी के बीच कोई अंतर नहीं है। जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा की बेंच ने कहा कि अगर कोई पुरुष खुद की मर्जी से दूसरी शादी करता है, तो वह अपनी दूसरी पत्नी को मेंटेनेंस का खर्च देने से मना नहीं कर सकता है।

दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट एक शख्स की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें याचिकाकर्ता ने अपनी दूसरी पत्नी को मेंटेनेंस देने फैसले को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया कि उसकी दूसरी पत्नी मेंटेनेंस का खर्च पाने की हकदार नहीं है, क्योंकि यह उसकी दूसरी शादी थी और उसने खुद की इच्छा से उसे छोड़ दिया।

क्या है पूरा मामला?

याचिका में पति का कहना है कि महिला मेंटेनेंस का खर्च पाने की हकदार नहीं है, क्योंकि यह उसकी दूसरी शादी थी और उसने खुद की इच्छा से उसे छोड़ दिया। जबकि उसने महिला और उसकी पहली शादी से हुए दो बेटों को स्वीकार कर लिया था। वहीं, दूसरी ओर महिला का दावा है कि उस व्यक्ति ने उससे वादा किया था कि वो उसके बच्चों की देखभाल करेगा और पिता की तरह प्यार देगा।

इसी आधार पर ही महिला ने व्यक्ति से शादी की थी। महिला का आरोप है कि उसके बच्चों के प्रति व्यक्ति के अपमान और शारीरिक दुर्व्यवहार की वजह से उसे छोड़ना पड़ा। इस मामले में फैमिली कोर्ट ने पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। याचिकाकर्ता ने इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

हाईकोर्ट ने क्या कहा?

इस मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की मांग को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जब याचिकाकर्ता ने खुद की इच्छी से शादी कर ली और महिला के साथ उसके बच्चों को स्वीकार कर लिया, तो फिर वह वह भरण-पोषण के अपने वैधानिक दायित्वों से बच नहीं सकता है।

दोनों पक्षों का ने क्या कहा?

महिला ने कोर्ट में बताया कि 1987 में अपने पहले पति की मौत के बाद वह अपने दो बेटों की अकेले ही देखभाल कर रही थी। उस समय याचिकाकर्ता (व्यक्ति) ने बच्चों की देखभाल करने का वादा करते हुए शादी का प्रस्ताव रखा। वहीं, पति का कहना है कि उसकी पत्नी ने खुद ही ससुराल छोड़ दिया और वापस लौटने की कोशिश नहीं की। कोर्ट ने बताया कि हलफनामे के अनुसार, महिला 12,000 रुपए हर महीने कमाती है, जबकि बाकी का खर्च कथित तौर पर कर्ज से पूरा किया जाता है।

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