दिल्ली हाई कोर्ट का अहम फैसला: प्रियदर्शनी मट्टू हत्याकांड... Delhi HC ने नए सिरे से विचार करने का दिया आदेश

14 मई को जस्टिस संजीव नरूला की कोर्ट ने मामले की सुनवाई करने के बाद फैसले को सुरक्षित रख लिया था। अब कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए सजा समीक्षा बोर्ड के फैसले को रद्द कर दिया है।

Updated On 2025-07-01 18:03:00 IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रियदर्शनी मट्टू हत्याकांड में दिया अहम फैसला।  

दिल्ली हाई कोर्ट ने 1996 में हुए प्रियदर्शनी मट्टू हत्याकांड पर सुनवाई करते हुए सजा समीक्षा बोर्ड द्वारा याचिका खारिज करने के फैसले को रद्द कर दिया है। सजा समीक्षा बोर्ड ने दोषी संतोष कुमार की समय से पहले रिहाई की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने सजा समीक्षा बोर्ड के इस फैसले को रद्द करते हुए कहा कि दोषी संतोष कुमार में सुधार की गुंजाइश है, लिहाजा बोर्ड को इस मामले पर नए सिरे से विचार करना चाहिए। कोर्ट ने बोर्ड से दोषियों का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन कराने को भी कहा है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, संतोष कुमार ने साल 2023 में याचिका दायर की थी। संतोष कुमार ने समय से पहले रिहाई की मांग की थी। समा समीक्षा बोर्ड (SRB) ने इस याचिका को रद्द कर दिया था। इस पर हाई कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी गई। 14 मई को जस्टिस संजीव नरूला की कोर्ट ने मामले की सुनवाई करने के बाद फैसले को सुरक्षित रख लिया था। अब कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए एसआरबी के फैसले को रद्द कर दिया है। साथ ही, दिल्ली जेलों की सजा समीक्षा बोर्ड के लिए कुछ गाइडलाइंस निर्धारित की हैं।

मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन कराने को कहा
जस्टिस नरूला ने अपने फैसले में कहा कि SRB (स्टेंस रिव्यू बोर्ड) के मौजूदा ढांचे में दोषी का किसी सक्षम मेडिकल प्रोफेशनल द्वारा औपचारिक मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन नहीं होता है। इस वजह से बोर्ड के लिए यह आकलना करना मुश्किल है कि दोषी में अपराध करने की प्रवृत्ति खत्म हो गई है या नहीं। कोर्ट ने ऐसी व्यवस्था विकसित करने और दोषियों का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन कराने के साथ ही दोबारा से मामले पर विचार करने के लिए कहा है।

1996 में हुई थी प्रियदर्शनी मट्टू की हत्या
दिल्ली विश्वविद्यालय में कानून की छात्रा प्रियदर्शनी मट्टू (25) की जनवरी 1996 में रेप के बाद हत्या कर दी गई थी। संतोष कुमार भी डीयू में कानून का छात्र था। 3 दिसंबर 1999 में ट्रायल कोर्ट ने सबूतों के अभाव में उसे बरी कर दिया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने 27 अक्टूबर 2006 को ट्रायल कोर्ट का फैसला पलट दिया। कोर्ट ने संतोष कुमार को दोषी ठहराकर मौत की सजा सुना दी। इस पर संतोष कुमार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में संतोष को दोषी माना, लेकिन मौत की सजा को उम्रकैद में तबदील कर दिया था।

Tags:    

Similar News