Delhi High Court: कॉलेज, यूनिवर्सिटी को हाईकोर्ट का अल्टीमेटम, 'अटेंडेंस कम होने पर परीक्षा से नहीं रोक सकते'

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि लॉ कॉलेज, यूनिवर्सिटी आदि में अब मिनिमम अटेंडेंस का कॉन्सेप्ट लागू नहीं होना चाहिए। मिनिमम अटेंडेंस पूरी न होने पर परीक्षा देने से नहीं रोका जा सकता।

Updated On 2025-11-03 15:15:00 IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने छात्र सुसाइड केस में दिया फैसला।

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने सुशांत रोहिल्ला आत्महत्या मामले में सोमवार को फैसला सुनाते हुए अहम आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि भारत में किसी भी मान्यता प्राप्त लॉ कॉलेज, विश्वविद्यालय या संस्थान के किसी भी छात्र को मिनिमम अटेंडेंस की कमी के आधार पर परीक्षा देने या आगे की शैक्षणिक पढ़ाई से नहीं रोका जा सकता।

बता दें कि इस मामले में जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की बेंच ने कहा, 'किसी भी कॉलेज, विश्वविद्यालय या संस्थान को बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा निर्धारित न्यूनतम प्रतिशत से अधिक उपस्थिति मानदंड अनिवार्य करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।' कोर्ट ने स्वत: संज्ञान में लाए गए 2016 में एमिटी लॉ स्टूडेंट सुशांत रोहिल्ला की आत्महत्या के मामले को बंद करते हुए ये फैसला सुनाया।

'छात्रों को इतना मानसिक आघात न दिया जाए कि वो...'

कहा गया कि रोहिल्ला को कथित तौर पर अटेंडेंस कम होने के कारण पूरे शैक्षणिक वर्ष को दोहराने के लिए मजबूर किया गया। इससे परेशान होकर उसने ये कदम उठाया। कोर्ट ने कहा कि कानूनी शिक्षा में उपस्थिति के नियम इतने कठोर नहीं होने चाहिए कि छात्रों को इतना मानसिक आघात दिया जाए, कि वे आत्महत्या करने को मजबूर हो जाएं।

'शिक्षा का तरीका बदल गया है'

अदालत ने कहा, 'भले ही रोहिल्ला की मौत का कारण केवल उपस्थिति न हो, लेकिन अनिवार्य मापदंडों की कीमत पर एक युवा का जीवन खत्म नहीं हो सकता। आज के युग में शिक्षा का तरीका बदल गया है। कक्षा में उपस्थिति ही पर्याप्त नहीं है। कानूनी शिक्षा के लिए ज्ञान, व्यवहार, मूट कोर्ट, सेमिनार, अदालती सुनवाई में भाग लेना आदि बहुत सी जरूरी चीजें हैं।'

'मिनिमम अटेंडेंस की अनिवार्यता से स्वतंत्रता पर असर'

दिल्ली हाईकोर्ट ने ये भी माना कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत बहु-विषयक अध्ययन, ऑनलाइन क्लासेज और वर्चुअल भागीदारी के तहत छात्रों को फ्लेक्सिबिलिटी दी जा सकती है। ये नीति फ्लेक्सिबिलिटी के लिए है, न कि कठोरता के लिए। मिनिमम अटेंडेंस की अनिवार्यता से स्वतंत्रता पर असर पड़ता है। इन मानदंड के तहत छात्रों के सामने आने वाली व्यावहारिक कठिनाइयों जैसे वित्तीय संकट, दूर से आना-जाना और परिवार की जिम्मेदारियों पर विचार क्यों नहीं किया जाता है?

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