Delhi Tram Story: 100 साल पहले पुरानी दिल्ली में दौड़ती थी 'मेट्रो', जिससे नेहरू की शादी में गई थी बारात, पढ़िए 'ट्राम' की स्टोरी

Delhi Tram Story: दिल्ली में आज से 100 साल पहले भी एक मेट्रो हुआ करती थी, जो पुरानी दिल्ली की सड़कों पर खटखट की आवाज करके चलती थी। जानिए इसकी कहानी...

Updated On 2025-06-09 10:10:00 IST

पुरानी दिल्ली के ट्राम की कहानी

Delhi Tram Story: दिल्ली मेट्रो आज के समय में शहर के लोगों के जीवन का अहम हिस्सा हन गई है। लेकिन शायद आपको मालूम न हो कि आज से करीब 100 साल पहले भी दिल्ली में एक 'मेट्रो' चला करती थी, जिसकी आवाज शहर की सड़कों पर सुनाई देती थी। इस 'इलेक्ट्रिक मेट्रो' की शुरुआत अंग्रेजों के शासनकाल में हुई थी, जिसका नाम 'ट्राम' था। इसका सफर 1908 से 1960 तक ही रहा था।

इसके खटखट की आवाज आज भी दिल्ली की यादों में बसी है। यह ट्राम चांदनी चौक से शुरू होकर सिविल लाइंस तक चलती थी और उस दौर में लोगों के लिए यात्रा का प्रमुख साधन थी।

कहां पर चलती थी ट्राम?

आज दिल्ली के हर कोने में चारों तरफ मेट्रो की आवाज सुनाई देती है, जो दिल्लीवासियों की लाइफलाइन बनी हुई है। लेकिन आज से करीब 100 साल पहले भी एक ट्राम नाम की मेट्रो जैसी गाड़ी चलती थी। ये ट्राम दिल्लीवासियों की धड़कन कही जाती थी। इसकी शुरुआत पहली बार 1908 में हुई थी, दिल्लीवालों ने उस समय इसका खुले मन से ट्राम स्वागत किया था।

इस मेट्रो को शुरू करने का मकसद सैर को आसान करना था। 15 किलोमीटर के ट्रैक पर 24 ट्रामें चलती थीं, जो कि चांदनी चौक से जामा मस्जिद, खारी बावली से अजमेरी गेट तक आती-जाती थीं। लोगों को जोड़ने के साथ-साथ दिल्ली की शान और सस्कृति को भी जोड़े हुए थी। हालांकि साल 1960 तक ट्राम का सफर खत्म हो गया।

नेहरू की बारात और ट्राम का ऐतिहासिक दिन

बता दें कि इसी ट्राम से पंडित जवाहरलाल नेहरू की बारात निकली थी। उनकी शादी दिल्ली के सीताराम बाजार में वसंत पंचमी के दिन, 4 फरवरी 1916 में कमला कौल से हुई थी। उस समय कई बाराती ट्राम में बैठकर शादी समारोह में पहुंचे थे। उस दिन ट्राम सिर्फ सवारी नही, बल्कि एक ऐतिहासिक पल का गवाह बन गई थी। दिल्ली के मशहूर हकीम अजमल खान भी ट्राम से सफर करके अपने घर बल्लीमारान जाया करते थे।

ट्राम कैसे बनी दिल्ली की पहचान?

उस समय दिल्ली की आबादी कम थी और सड़कों पर बहुत कम गाड़ियां देखने को मिलती थीं। ऐसे में ट्राम लोगों के लिए न सिर्फ यात्रा का, बल्कि आपसी जुड़ाव और संस्कृति का भी हिस्सा थी। इसकी धीमी रफ्तार और घंटियों की आवाज पुरानी दिल्ली वालों की पहचान बन चुकी थी जो उनको आज भी याद है।

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