बारिश से जुड़ी अनोखी परंपरा: ग्रामीणों ने भीमा देवी की पूजा कर किया भीमा नाच, कुछ ही घंटों में हुई ज़ोरदार वर्षा

नगरी- सिहावा क्षेत्र के एक गांव में बारिश से जुड़ी परंपरा भीमा नाच और देवी पूजन का उत्सव मनाया गया। प्रकृति से जुड़े इस पर्व से अच्छी बारिश होने की मान्यता है।

Updated On 2025-08-09 10:53:00 IST

पारंपरिक भीमा नाच करती हुईं महिलाएं 

अंगेश हिरवानी- नगरी / सिहावा। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण वनांचल क्षेत्रों में आज भी बारिश से जुड़ी अनेक पारंपरिक रीति-रिवाज जीवित है। ऐसा ही एक अनोखा आयोजन सिहावा क्षेत्र के एक गांव में देखने को मिला। जहां पर ग्रामीणों ने भीमा देवी की पूजा और भीमा नाच की परंपरा को विधिवत निभाया। ग्रामीणों के अनुसार, जब समय पर बारिश नहीं होती और खेतों में सूखे के आसार नजर आने लगते हैं, तब गांव वाले भीमा देवी की शरण में जाते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भीमा देवी वर्षा की देवी मानी जाते हैं। मान्यता है कि उनका पूजन और नृत्य (भीमा नाच) करने से वर्षा होती है। आपको बता दें कि, 7 अगस्त को नगरी सिहावा वनांचल क्षेत्र के बिरनासिल्ली, उमरगांव के गांववासियों ने इस परंपरा को जीवित रखते हुए पूरे श्रद्धा और आस्था के साथ भीमा देवी का पूजन किया। इसके बाद पुरुषों और महिलाओं ने मिलकर भीमा नाच किया। यह आयोजन पारंपरिक वाद्य यंत्रों और लोकगीतों के साथ संपन्न हुआ।

पूजन और नाच के बाद हुई बारिश
गौर करने वाली बात यह रही कि पूजन और नाच के कुछ ही घंटों बाद क्षेत्र में घनघोर बादल छा गए और ज़ोरदार बारिश हुई। कई लोग इसे देवी की कृपा मानते हैं, वहीं कुछ इसे संयोग कह सकते हैं। लेकिन गांव के लोगों के लिए यह सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि आस्था और सामूहिक विश्वास की अभिव्यक्ति है। ग्रामीणों का कहना है कि चाहे इसे कोई अंधविश्वास कहे या परंपरा, यह आयोजन सामूहिक एकता, संस्कृति और पर्यावरण से जुड़ाव का प्रतीक है।


प्रकृति से जुड़ा है भीमा नाच
भीमा नाच न केवल प्रकृति के प्रति सम्मान का भाव प्रकट करता है, बल्कि अगली पीढ़ियों को भी हमारी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ने का कार्य करता है। इस तरह की परंपराएं आज भी गांवों में जीवित हैं और समाज को प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने की सीख देती हैं।

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