हरिभूमि INH का शिक्षा संवाद: विशेषज्ञ बोले-शिक्षकों की भर्ती पूरी हो, फिर प्रदेश में खोलें नए स्कूल
शिक्षा संवाद 2025 के दूसरे सत्र में शिक्षा जगत की जमीनी चुनौतियों को गंभीरता से उठाया गया। दूसरे सेशन का संचालन वरिष्ठ एंकर सोनल भारद्वाज ने किया।
शिक्षा संवाद 2025 के दूसरे सेशन का संचालन आईएनएच न्यूज की वरिष्ठ एंकर सोनल भारद्वाज ने किया
रायपुर। आईएनएच न्यूज और हरिभूमि के संयुक्त तत्वावधान में ज्ञान धारा शिक्षा संवाद 2025 के दूसरे सत्र में शिक्षा जगत की जमीनी चुनौतियों को गंभीरता से उठाया गया। दूसरे सेशन का संचालन आईएनएच न्यूज की वरिष्ठ एंकर सोनल भारद्वाज ने किया, जिन्होंने शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की स्थिति को लेकर पैनल में शामिल विशेषज्ञों से विस्तृत चर्चा की। सेशन के दौरान शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने, प्रतियोगी परीक्षाओं में कोचिंग के बढ़ते प्रभाव और बच्चों में मोबाइल की लत जैसे विषयों पर गहन संवाद हुआ। वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि डिजिटल युग में बच्चों की मोबाइल की लत से छुड़वाने पालकों को घर में नियम बनाकर खुद भी इसका पालन करना होगा।
कार्यक्रम में सरस्वती शिशु मंदिर रायपुर के सचिव संजय जोशी, दिल्ली पब्लिक स्कूल दुर्ग के प्रिंसिपल यशपाल शर्मा, कृष्णा पब्लिक स्कूल रायपुर के चेयरमैन आशुतोष त्रिपाठी, राजकुमार कॉलेज के प्रिंसिपल लेफ्टिनेंट कर्नल अविनाश सिंह और संजय रुंगटा ग्रुप के चेयरमैन संजय रुंगटा प्रमुख रूप से शामिल हुए। सभी अतिथियों ने शिक्षा प्रणाली को और अधिक प्रभावशाली व समावेशी बनाने को लेकर सकारात्मक विचार रखे। संवाद का उद्देश्य शिक्षा के क्षेत्र में वर्तमान चुनौतियों को समझना और समाधान की दिशा में सुझाव प्रस्तुत करना रहा।
सवाल- मोबाइल के बढ़ते उपयोग के कारण बच्चों में न सिर्फ रीडिंग हैबिट कम हो रही है, बल्कि शिक्षक का सम्मान और आवश्यकता भी घटती जा रही है। आप भी इस स्थिति से जरूर परेशान होंगे। ऐसे में आप लोग किस स्तर पर इसे नियंत्रित करने के प्रयास कर रहे हैं?
जवाब- दिल्ली पब्लिक स्कूल दुर्ग के प्रिंसिपल यशपाल शर्मा ने कहा कि स्कूल में मोबाइल लाने की अनुमति नहीं है, लेकिन असली चुनौती घर के माहौल में है, जहां बच्चे आसानी से फोन का उपयोग करते हैं। उन्होंने अभिभावकों से अपील की कि वे बच्चों को अनियंत्रित रूप से मोबाइल न दें। उन्होंने सुझाव दिया कि मोबाइल उपयोग के लिए एक कोड ऑफ कंडक्ट तय किया जाना चाहिए। प्रत्येक परिवार को एक निर्धारित समय के बाद फोन के उपयोग पर रोक लगानी चाहिए और सभी सदस्य अपना मोबाइल एक कमरे में रख दें। ऐसे अनुशासित और सामूहिक प्रयासों से बच्चों में मोबाइल की लत को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है।
सवाल- वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को किस तरह से देखते है? सरकार को क्या बेहतर करने की जरूरत है?
जवाब- सरस्वती शिशु मंदिर रायपुर के सचिव संजय जोशी का कहना है, मैं मानता हूं कि संसाधनों की कमी है। सरकारी स्कूलों में उस तरह की सुविधाएं नहीं हैं, लेकिन फिर भी कहीं-कहीं हमें दिखता है कि कहीं अध्यापक कम हैं, कई जगह भवन जर्जर हैं, लेकिन मुझे जो लगता है कि जो वर्तमान सरकार है, मुख्यमंत्री विष्णु देव जी की, उनका जो प्रयास मुझे दिखता है कि जिस तरह से क्रियान्वयन के लिए जितनी चिट्ठियां हमें सीबीएसई से आती हैं, इतनी हमें शिक्षा अधिकारी के यहां से भी आती हैं तो इस तरह से हमारी केंद्र की और राज्य की सरकार शिक्षा पर केंद्रित दिखती है। आने वाले समय में सकारात्मक चीजें और बेहतर ढंग से बढ़कर आगे आएंगी और जब बच्चों के अंदर भी यह कौशल विकास की तरह की चीजें जाएंगी तो मुझे लगता है कि छत्तीसगढ़ 20-25 साल पहले जहां था, आज वहां से बहुत आगे है और आने वाले समय में एक अग्रणी राज्य रूप में जाना जाएगा।
सवाल- वर्तमान समय में डमी कल्चर कितना नुकसान पहुंचा रहे?
जवाब- संजय रूंगटा ग्रुप के अध्यक्ष संजय रूंगटा का कहना है कि कहीं न कहीं प्राइवेट स्कूलों और कॉलेज में बेहतर व्यवस्था है। हायर एजुकेशन में सबसे पहले गवर्नमेंट कॉलेज की सीटें भरती हैं। आज स्कूल के ऑफिसर, जितने भी पॉलीटिशियन, जितने भी सक्षम लोग हैं, उनके बच्चे भी प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं। उनका डायरेक्ट एडमिशन नहीं होता तो कहीं न कहीं से सिफारिश करके आते हैं। पूरी व्यवस्था यह मानती है कि प्राइवेट स्कूल अच्छा कर रहे हैं। हमारा स्टाफ अगर बहुत अच्छा रिजल्ट नहीं देगा तो उस पर एक्शन हो जाएगा, क्या सरकारी स्कूलों में ऐसा कोई सिस्टम है? लेकिन हमारी सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है। संजय रूगंटा ने आगे कहा कि आज स्कूल पर स्कूल खुले जा रहे हैं, पर शिक्षकों की भर्ती कम है। जब तक सभी स्कूलों में सही तरीके से शिक्षकों की भर्ती नहीं हो जाएगी, तब तक कम से कम नए स्कूल नहीं खोले जाएं। पहले उनकी जो भर्ती प्रक्रिया पूरी हो, उसके बाद नए स्कूल खोले जाएं। इसके अलावा सरकार यह सुनिश्चित करे कि शिक्षकों की किसी दूसरे कार्यों में ड्यूटी न लगाई जाए।
सवाल- आरटीआई को लेकर कहना है कि यह पैरेंट्स और स्टूडेंट्स के फेवर में ज्यादा है, ऐसा क्यों?
जवाब- राजकुमार कॉलेज के प्रिंसिपल लेफ्टिनेंट कर्नल अविनाश सिंह ने कहा कि आज शिक्षक को वह सम्मान नहीं मिल पा रहा, जिसके वे हकदार हैं। स्कूल को अब सेवा प्रदाता मान लिया गया है, गुरु नहीं। किसी भी समस्या के लिए तुरंत शिक्षक और स्कूल को दोषी ठहरा दिया जाता है, क्योंकि बच्चा स्कूल में 6 घंटे से अधिक बिताता है। बच्चों के हाथों में मोबाइल अनियंत्रित रूप से है और वे यह मानने लगे हैं कि ज्ञान मोबाइल से मिलता है, गुरु की आवश्यकता नहीं। यह सोच समाज में बदलाव की मांग करती है।
सवाल- वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में एक समानांतर ढांचा विकसित हो चुका है, एक ओर स्कूल ट्यूशन फीस लेते हैं तो दूसरी ओर उससे अधिक सक्रियता के साथ कोचिंग संस्थान संचालित हो रहे हैं। यह समानांतर प्रणाली आपको कितनी परेशान कर रही है?
जवाब- कृष्णा पब्लिक स्कूल रायपुर के चेयरमैन आशुतोष त्रिपाठी ने कहा कि कोचिंग संस्थानों को समानांतर शिक्षा व्यवस्था कहना उचित नहीं होगा, क्योंकि स्कूल की शिक्षा समायोजिक होती है, जबकि कोचिंग संस्थाएं विशिष्ट प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी पर केंद्रित होती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि कोचिंग संस्थाएं यह दावा नहीं करतीं कि वे पूर्ण शिक्षा दे रही हैं, वे सिर्फ प्रतियोगिता की तैयारी कराती हैं, जो हमारी शिक्षा प्रणाली के अंतिम चरण में आता है। श्री त्रिपाठी ने कहा, "यह सोच कि स्कूल में पढ़ाई पर ध्यान नहीं दिया जाता, इसलिए बच्चों को कोचिंग भेजना जरूरी है, गलत है। खेलों में कोच होता है, लेकिन कोचिंग संस्थानों में वह व्यक्तिगत मार्गदर्शन नहीं मिलता। वहां हजारों छात्रों को एकसाथ पढ़ाया जाता है, जबकि सीटें सीमित होती हैं।" उन्होंने यह भी जोड़ा, "अगर आज कोचिंग संस्थाएं बंद कर दी जाएं तो भी 10000 सीटें भरने के लिए पर्याप्त योग्य विद्यार्थी मौजूद हैं। हमें जेईई जैसी परीक्षा की नहीं, जीवन की तैयारी पर फोकस करना चाहिए।