45 सालों बाद लाल आतंक की गुलामी से मुक्त हो रहा बीजापुर: विकास के साथ हो रहा है नक्सलवाद का खात्मा
आज़ादी के 78 साल बाद बीजापुर के कई गांवों ने पहली बार असली मायनों में स्वतंत्रता का पर्व मनाया। गांव की गलियों में बच्चों के हाथों में लहराते झंडे दिखे।
प्राथमिक शाला
गणेश मिश्रा- बीजापुर। आज़ादी के 78 साल बाद इस बार बीजापुर के कई गांवों ने पहली बार असली मायनों में स्वतंत्रता का पर्व मनाया गया। दशकों तक नक्सली दहशत के साए में जीने वाले इलाक़े अब तिरंगे की शान से रोशन हो गए हैं। गांव की गलियों में बच्चों के हाथों में लहराते झंडे, सड़कों पर तिरंगी झालरें और राष्ट्रगान की गूंज,ये नज़ारे यहां के इतिहास का नया अध्याय लिख रहे हैं।
जहां कभी डर था, वहां अब विकास की पहचान
पहले इन पगडंडियों और सड़कों पर नक्सली बैनर-पोस्टर लोगों में खौफ भरते थे। आज वही रास्ते बिजली की रोशनी से जगमगा रहे हैं। शासन की योजनाओं से सड़क, बिजली, पानी, स्कूल और स्वास्थ्य सेवाएं गांव-गांव पहुंच चुकी हैं। महिलाएं निडर होकर हाट- बाज़ार जा रही हैं, और शाम होते ही हर घर में बल्ब की रौशनी फैल रही है।
सुरक्षा बल और विकास, दोनों की जीत
लगातार चल रहे सुरक्षा अभियानों ने तस्वीर बदल दी है। 2025 में अब तक 466 नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं, 820 गिरफ्तार हुए हैं। 20 नए सुरक्षा कैंप बने, जिनमें से 12 इस साल ही शुरू हुए- कोण्डापल्ली, जीडपल्ली-1, जीडपल्ली-2, वाटेवागु, कोरागुट्टा, गोरना, पीडिया, पुजारीकांकेर, गंजेपर्ती, भीमाराम, तोड़का/कोरचोली और गुटुमपल्ली जैसे गांव अब नई उम्मीदों के प्रतीक बन गए हैं।
कनेक्टिविटी की राह खुली, गांव रोशन हुए
नेलसनार- गांगलूर होते हुए बीजापुर मुख्यालय और तार्रेम- पामेड़- उसूर के रास्ते तेलंगाना का संपर्क अब आसान हो गया है। गंजेपर्ती, कोण्डापल्ली, जीडपल्ली-01 और 02, पुजारीकांकेर, कोरचोली, भीमाराम में 7 नए मोबाइल टावर लगे, जिससे गांव पहली बार मोबाइल नेटवर्क से जुड़े। कोण्डापल्ली, गंजेपर्ती, गोरना और कोरचोली में इस साल पहली बार बिजली पहुंची। स्कूल की घंटी भी पहली बार बजी- जीडपल्ली-1, गुल्लागुडेम, गोरना, इशुलनार, तोड़का, कोरचोली, नेण्ड्रा, इतावर, सावनार, करका, एडसमेटा और भटटीगुड़ा में शिक्षा की नई शुरुआत हुई। जहां कभी गोलियों की आवाज़ गूंजती थी, आज वहां ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे गूंज रहे हैं। बीजापुर ने इस स्वतंत्रता दिवस पर साबित कर दिया कि जब सुरक्षा और विकास साथ चलते हैं, तो सबसे गहरी जड़ें जमाए आतंक भी खत्म हो जाता है।