साय सरकार के संकल्प की धार: बस्तर में अंतिम सांसें गिन रहा नक्सलवाद, सुदूर आदिवासी अंचल में पहुंच रही विकास की बयार

आदिवासी बाहुल्य आबादी, अनुपम नैसर्गिक सुंदरता और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर बस्तर में आज विकास का नक्सलवाद सबसे बड़ा अवरोधक है।

Updated On 2025-08-25 17:08:00 IST

बस्तर से मिट रहा है नक्सलवाद का नासूर  

रायपुर। छत्तीसगढ़ का बस्तर अंचल और उसके आस-पास के वनवासी क्षेत्र लंबे समय तक नक्सली हिंसा और आतंक के लिए कुख्यात रहे हैं। 1980 के दशक के अंत से लेकर शुरुआती 2000 के दशक तक इस क्षेत्र में नक्सलियों का प्रभाव इतना गहरा था कि, आम नागरिक, सरकारी कर्मचारी, व्यापारी, यहाँ तक कि, ग्रामीण भी हर समय भय की छाया में जीने को विवश थे। नक्सली संगठन स्वयं को 'जनता का सशस्त्र आंदोलन' बताते हुए आदिवासी जनता की आड़ में हिंसा, हत्या और लूट की गतिविधियों को अंजाम देते रहे। लेकिन आज स्थिति पूरी तरह बदल रही है। तीन दशकों के रक्तरंजित इतिहास के बाद छत्तीसगढ़ में नक्सली हिंसा का दायरा तेजी से सिमट रहा है और एक नए युग की शुरुआत हो रही है। 


नक्सलवाद से निर्णायक लड़ाई - सीएम साय
नक्सलवाद को लेकर सीएम विष्णुदेव साय ने कहा कि, लाल आतंक के खात्मे के लिए नक्सलवाद के खिलाफ हमारी निर्णायक लड़ाई जोर-शोर से जारी है, जिसका परिणाम है कि, नक्सलियों की कमर अब टूट गई है। प्रदेश से जब तक नक्सलवाद का अंत नहीं हो जाता हम चुप नहीं बैठेंगे।


बस्तर के विकास में नक्सलवाद सबसे बड़ा अवरोधक
आदिवासी बाहुल्य आबादी, अनुपम नैसर्गिक सुंदरता और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर बस्तर में आज विकास का सबसे बड़ा अवरोधक है नक्सलवाद। पिछले 4 दशकों में नक्सली हिंसा ने यहां अपने पैर पसारे। बंदूक के दम पर हिंसा के साथ विकास कार्यों में बाधा पहुंचाई। नक्सलियों ने अपने झूठे और खोखले सिद्धांतों के जरिए लंबे समय तक भोले- भाले आदिवासियों को भ्रम में डाला। हिंसा का सहारा लेकर उन्हें डराने की कोशिश की। बच्चों से उनके स्कूल छीने, उनका बचपन छीन, उन्हें हिंसा के राह पर धकेला। कई परिवारों को बर्बाद किया, सुहागनों के सिंदूर उजाड़े। बेटियों को अगवा किया और उन्हें भी हिंसा के रास्ते पर ले गए। इसी वजह से संसाधनों से परिपूर्ण बस्तर पर देश के सबसे पिछड़े इलाकों में एक होने का धब्बा लगा।


सीएम साय के नेतृत्व में हो रहा नक्सलवाद का खात्मा
छत्तीसगढ़ में सीएम विष्णु देव साय के नेतृत्व वाली सरकार दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ विकास के इस अवरोध को पूरी तरह से समाप्त करने पर डटी हुई है। अब वह दिन दूर नहीं जब नक्सलवाद की काली छाया छत्तीसगढ़ से पूरी तरह मिट जाएगी। बस्तर में विकास का नया सवेरा अब होने ही वाला है। यहां नक्सलवाद की कमर टूट चुकी है, अब बस इसका समूल खात्मा बाकी है, जिसकी डेट लाइन भी तय हो चुकी है। मजबूर आदिवासी ग्रामीणों पर हुए इन अत्याचारों का अब हिसाब- किताब होने वाला है। उन्हें अब न्याय मिलेगा। उन्हें अब अपना खुशहाल बस्तर मिलेगा, जो इन हिंसा वादियों के चंगुल से पूरी तरह मुक्त होगा और विकास के रास्ते पर पूरी गति से आगे बढ़ेगा। छत्तीसगढ़ में सिमटते हुए नक्सली उग्रवाद के अतीत पर अगर गौर करें तो यह बेहद दर्दनाक रहा है। नक्सली हिंसा की वजह से बस्तर के स्थानीय लोगों ने करीब चार दशकों तक बहुत कुछ सहा है। बहुत सी ऐसी कड़वी यादें हैं जो कभी भी भुलाई नहीं जा सकतीं, और इन्हें जब भी याद कर करें तो नक्सली हिंसा को परास्त करने का हौसला और भी मजबूत हो जाता है। पुलिस और सुरक्षा बलों के जवान पूरे हौसले के साथ नक्सल मोर्चे पर डटे हैं और अब जल्द ही नक्सलियों का समूल अंत होगा। 


बारूदी सुरंगें बिछाकर फैलाई तबाही
विकास के विरोधी रहे नक्सली नहीं चाहते कि, बस्तर में किसी भी तरह का अधोसंरचना विकास हो, इसलिए वह विस्फोटकों का सहारा लेकर पुल- पुलिया, सड़कों और सड़क निर्माण में लगे वाहनों- मशीनरी को तबाह करते। इसके साथ ही बस्तर में जगह- जगह बारूदी सुरंगें बिछाकर मानवता को भी तबाह करने की कोशिश की। उनके बिछाए बारूदी सुरंगों की चपेट में आने से सुरक्षा बलों के जवानों सहित कई निर्दोष ग्रामीणों व बेजुबान मवेशियों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी। इन बारूदी सुरंगों को निष्क्रिय कर नष्ट करना बड़े-बड़े चुनौती भी रही। इस प्रक्रम में बड़ी कुर्बानी भी हमारे पुलिस व सुरक्षा बलों के जवानों को देनी पड़ी है। वर्ष 2003 से अब तक आईईडी के चपेट में आने से कुल 147 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 306 लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए हैं। वहीं अब तक कुल 4,173 लैंड माइंस रिकवर की गई हैं। 


खुल रहे स्कूलों के द्वार
झूठे सिद्धांतों की दुहाई देने वाले नक्सली बच्चों की शिक्षा के भी घोर विरोधी रहे हैं। उन्हें हमेशा यह डर रहा है कि, यदि बस्तर की नई पीढ़ी पढ़- लिखकर जागरूक हो जाएगी, तो उनके बहकावे में नहीं आएगी। इसी भय के चलते नक्सली शिक्षा के मंदिरों पर हमले करते, उन्हें तोड़ते और बच्चों को स्कूल जाने से रोकते थे। विगत 20 वर्षों में नक्सलियों ने 200 से अधिक स्कूल भवनों को क्षतिग्रस्त किया। अब बस्तर संभाग में करीब साढ़े तीन सौ बंद पड़े स्कूलों को दोबारा शुरू किया गया है। 

लाल रंग में दर्ज हैं ये तारीखें
28 फरवरी 2006 सुकमा जिले के दरभागुड़ा के ग्राम दोरनापाल में नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा के नेतृत्व में आयोजित सलवा जुडूम जन जागरण अभियान से 4 ट्रकों में कोंटा के ग्रामीण अपने अपने गांव वापस हो रहे थे कि, एर्राबोर थाना क्षेत्र के ग्राम दरभागुड़ा के समीप नक्सलियों द्वारा बारूदी सुरंग विस्फोट किया गया, जिसमें 28 ग्रामीणों की मौके पर ही मौत हो गई। घटना में अन्य 27 ग्रामीण गंभीर रूप से घायल हुए थे। 3 ट्रकों को आग के हवाले कर दिया गया था। वहीं 24 मार्च 2006 को थाना पखांजूर क्षेत्र के ग्राम संगम में साप्ताहिक बाजार से ग्रामीण बाजार कर जीप से पखांजूर लौट रहे थे। इसी दौरान घोडागांव एवं संगम गांव के मध्य नक्सलियों द्वारा बम विस्फोट कर जीप को उड़ा दिया गया। 


इस घटना में 13 ग्रामीणों की मौत हो गई और 4 ग्रामीण घायल हुए थे। 25 अप्रैल 2006 थाना दोरनापाल के राहत शिविर में रह रहे ग्राम मनीकोंटा के 50-60 ग्रामीण सामान लेकर वापस आ रहे थे कि, नक्सली उन्हें अगुआ कर पकड़ ले गए। नक्सलियों ने इनमें से 15 ग्रामीणों की हत्या कर दी थी। 16 जुलाई 2006 थाना एर्राबोर राहत शिविर कैंप में अज्ञात लगभग डेढ़ हजार नक्सली व संघम सदस्यों द्वारा गोलीबारी के साथ हमला कर दिया। नक्सलियों द्वारा 220 घरों को आग के हवाले कर दिया था, जिससे राहत शिविर में रह रहे 6 एसपीओ, 1 स्वास्थ्य कार्यकर्ता व 17 ग्रामीण मारे गए थे। इनके अलावा 47 अपहृत ग्रामीणों में से 6 की हत्या कर दी गई और 20 घायल ग्रामीणों में से 3 ने ईलाज के दौरान दम तोड़ दिया।

2007 में कैंप पर हमला
15 मार्च 2007 बीजापुर जिले के रानीबोदली के नेशनल पार्क दलम के नक्सली कमाण्डर व करीब 500 अन्य नक्सलियों ने हथियार लूटने की नीयत से रानीबोदरी में सुरक्षा बलों के कैम्प पर सशस्त्र हमला किया। स्वचलित अत्याधुनिक हथियारों से अंधाधुंध गोली-बारी की गई, जिससे कैम्प तबाह हो गया और वहां तैनात छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल 9वीं वाहिनी सी कम्पनी कैम्प के 55 जवान शहीद हो गए थे। 


9 जुलाई 2007 को थाना एर्राबोर से जिला बल सीआरपीएफ एवं एसपीओ के साथ दो पार्टी नक्सली गश्त- सर्चिंग हेतु रवाना हुई थी कि, एरांचोर से लगभग 12-15 किलोमीटर दूरी पर उत्पलमेटा पहाड़ी के पास नक्सली व पुलिस पार्टी के बीच मुठभेड़ हो गई। मुठभेड़ के दौरान जिला बल के 2 जवान, 6 एसपीओ व सीआरपीएफ के 15, कुल 23 जवान शहीद हुए और 2 सीआरपीएफ जवान व 5 एसपीओ घायल हुए।

2010 में हुए कई बड़े वारदात
16 मई 2010 सुकमा से जिला पुलिस बल एवं एसपीओ की संयुक्त पुलिस पार्टी गादीरास थाना क्षेत्र में भूसारास से सुकमा की ओर लौट रही थी। इसी दौरान चिंगावरम के पास नक्सलियों द्वारा उस बस को निशाना बनाया गया जिसमें पुलिस जवान सवार थे। घटना में 11 आरक्षक, 1 एसएसबी वेटनरी फिल्ड असिस्टेंट और 4 एसपीओ शहीद हो गए थे। इस घटना में 15 निर्दोष ग्रामीण भी मारे गए। 


6 अप्रैल 2010 को ताड़मेटला में नक्सलियों द्वारा सीआरपीएफ कैम्पों के आसपास प्रभाव बनाकर स्वयं का प्रभुत्व स्थापित करने की सूचना पर चिंतलनार में तैनात 62 वीं वाहिनी सीआरपीएफ के बी कंपनी द्वारा एरिया डॉमिनेशन और नक्सली गश्त सर्चिग अभियान चलाया गया। अभियान के दौरान ताड़मेटला पहाड़ी जंगल क्षेत्र में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ हुई। फोर्स की सहायता हेतु चित्तलनार कैम्प से अन्य पार्टी रवाना हुई थी कि, रास्ते में ही नक्सलियों द्वारा फायरिंग शुरू कर दी और बुलेट प्रुफ वाहन को विस्फोट कर क्षतिगस्त कर दिया। 

उक्त घटना में सीआरपीएफ के 75 जवान और जिला पुलिस बल के 1 प्रधान आरक्षक शहीद हुए थे। 29 जून 2010 को नारायणपुर के कैम्प थौड़ाई से केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल की पार्टी रोड ओपनिंग हेतु ग्राम झारा की ओर से वापस आ रही थी। इसी समय राकस नाला के पास पूर्व से घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने हथियार लूटने की नियत से अंधाधुन्ध फायरिंग की। पुलिस पार्टी द्वारा भी तत्काल पोजिशन लेते हुए फायर का जवाब दिया गया। इस घटना में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 27 जवान शहीद हो गए थे। 


2017 में 25 जवानों की ली जान
24 अप्रैल 2017 को सुकमा जिले के बुरकापाल कैम्प से सीआरपीएफ के 71 जवान और जिला बल का 1 जवान संयुक्त बल रोड निर्माण पार्टी की सुरक्षा हेतु चिंतागुफा की ओर रवाना हुए थे। इसी बीच करीब 200-250 हथियार बंद नक्सलियों ने सुरक्षा बलों पर अत्याधुनिक व देशी हथियारों, गोला बारूद से हमला कर दिया। सुरक्षा बलों द्वारा जवाबी कार्यवाही की गई, लेकिन दुर्भाग्यवश घटना में सीआरपीएफ 74 वाहिनी के 25 जवान शहीद हो गए। इस घटना में नक्सली बड़ी तादाद में सुरक्षा बलों के हथियार भी लूट कर ले गए थे। 


बस्तर में बदलाव की शुरुआत
पिछले एक दशक में परिस्थितियाँ तेजी से बदलने लगीं। सुरक्षाबलों की रणनीति, CRPF, BSF, ITBP और राज्य पुलिस ने मिलकर “एरिया डोमिनेशन” और 'ग्रिड पैटर्न' रणनीति अपनाई। इससे नक्सलियों के ठिकाने ध्वस्त हुए। लोन वर्राटू अभियान में आत्मसमर्पण और पुनर्वास की सरकारी योजनाओं ने हजारों नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रेरित किया। विकास के लिए सड़क निर्माण, मोबाइल टावर, स्कूल और स्वास्थ्य केंद्रों ने गाँवों को बदल दिया। अब ग्रामीण नक्सलियों के बजाय पुलिस और प्रशासन पर भरोसा करने लगे हैं। केंद्र और राज्य सरकारों ने सुरक्षा और विकास दोनों को समान महत्व दिया, जिससे हालात सुधरे। 


आत्मसमर्पित नक्सली जी रहे बेहतर जीवन
आज बस्तर और आसपास के क्षेत्रों में नक्सलियों का प्रभाव सिकुड़ कर सीमित इलाकों तक रह गया है। जहाँ कभी सांझ ढलते ही गाँव सुनसान हो जाते थे, वहाँ अब हाट-बाज़ार और सांस्कृतिक कार्यक्रम होने लगे हैं। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली आज रोजगार, शिक्षा और व्यवसाय से नया जीवन जी रहे है।छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र की संयुक्त पहल से नक्सली घटनाओं की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है।

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