रानी बोदली कैंप से लूटे हुए दो हथियार बरामद: नक्सलियों ने 2007 को किया था हमला, 55 जवान हुए थे शहीद
रानी बोदली कैंप से लूटे हुए हथियारों में दो हथियार तिरियारपानी मुठभेड़ में बरामद हुए हैं। मुठभेड़ में मिले तीसरे हथियार की तस्दीक जारी है।
रानी बोदली कैंप से लूटे हुए दो हथियार बरामद
विजय पाण्डेय- कांकेर। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पुलिस पर सबसे बड़ा हमला बीजापुर के रानी बोदली कैंप पर 2007 में हुआ था, जिसमें 55 जवान शहीद हुए थे। नक्सली इस कैंप से हथियार लूट कर ले गए थे। इस घटना में लूटे हुए हथियारों में दो हथियार तिरियारपानी मुठभेड़ में पुलिस को बरामद करने में सफलता मिली है। हथियार मिलने से फिर से रानी बोदल कैंप घटना याद आ गई।
तिरियारपानी मुठभेड़ में मिले तीन हथियार में से दो हथियार ऐसे है, जो रानी बोदली कैंप पर हुए हमले में लूटे थे। हरिभूमि ने हथियार के बारे में एसडीओपी से जानकारी चाही, इस पर उन्होने बताया कि, तिरियारपानी मुठभेड़ में मिली एसएलआर यानी 7.62 एसएलआर बाडी नंबर बीजेड 0304 और थ्री नाट थ्री रायफल बाडी नंबर 16670 एक्स रानी बोदली कैंप से लूटी हुई थी। रानी बोदली कैँप की घटना 15 मार्च 2007 को हुई थी। रानी बोदली कैंप की घटना के हथियार मिलने से कांकेर जिला के साथ-साथ छत्तीसगढ़ पुलिस के लिए बड़ी सफलता है। उन्होने बताया कि तिरियारपानी मुठभेड़ में मिला तीसरा हथियार 12 बोर बंदूक है, जिसकी तस्दीक की जा रही है।
छग गठन के बाद पुलिस पर सबसे बड़ा था हमला
रानी बोदली कैंप की घटना छग राज्य गठन के बाद नक्सलियों का पुलिस पर सबसे बड़ा हमला था। विदित हो कि वर्ष 2005 में सलवा जुडूम शुरू होने के बाद राहत शिविर में आए हुए ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए जगह-जगह कैंप स्थापित कर जवानों की तैनाती की गई थी। रानीबोदली कैंप भी उसी का हिस्सा था, इस कैंप में छसबल नौंवी वाहिनी सी कंपनी के जवान थे। नक्सली सलवा जुड़ुम के खिलाफ थे और 15 मार्च 2007 को लगभग 600 नक्सलियों ने रात 12 बजे रानीबोदली कैंप को घेर लिया था और इस मुठभेड़ में 55 जवान शहीद हुए थे, वहीं 7 नक्सली मारे गए थे। इस घटना में नक्सलियों ने कैंप से 13 एसएलआर, 09 थ्री नाट थ्री, 03 एके 47, 01 इंसास, 01 2 इंच मोर्टार, 01 नाईट वीजन डिवाईस और 10 मसकेट लूटकर ले गए थे।
सलवा जुडूम की पृष्ठभूमि
करकेली गांव के कुछ युवकों को नक्सली जबरदस्ती उठा ले गए थे, जिन्हें छुड़ाने के लिए गांव के वाचम एवड़ा, मिच्चा हुंगा समेत कुछ युवकों ने एक बैठक कर नक्सलियों के खिलाफ आवाज उठाने का ऐलान किया था। इस बैठक के दूसरे दिन जब नक्सली करकेली गांव पहुंचे तो स्थानीय युवकों ने उन्हें पकड़ लिया। इस घटना से नाराज नक्सलियों ने 7 लोगों की हत्या कर दी, जिसमें वाचम एवड़ा के साथ तुमला गांव में लेखराम भी शामिल थे। नक्सलियों के इस हिंसक कृत्य के बाद ग्रामीणों में उनके खिलाफ गुस्सा भड़क गया। इसके बाद करकेली के ग्रामीणों ने फिर से एक बैठक का आयोजन किया। इस बैठक को आदिवासियों द्वारा नक्सलियों के खिलाफ सलवा जुडूम आंदोलन की शुरुआत मानी जाती है। नक्सलियों द्वारा की गई हिंसा के खिलाफ आदिवासी आंदोलन सलवा जुडूम की पहली बैठक कुटरू से 20 किलोमीटर दूर इंद्रावती नदी के किनारे बसे करकेली गांव में हुई थी।
सलवा जुडूम की घोषणा
सलवा जुडूम आंदोलन की औपचारिक शुरुआत 4 जून 2005 को छत्तीसगढ़ के बीजापुर के कुटरू से हुई थी। इसके लिए एक बड़ी सभा का आयोजन किया गया था। इस सभा में छत्तासगढ़ के तत्कालीन राज्यपाल, मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, डीजीपी, कलेक्टर, एसपी समेत पक्ष विपक्ष के कई बड़े नेता शामिल हुए थे। सबसे बड़ी बात यह है कि इस आंदोनल में नेता और अधिकारियों के साथ करीब 20 से अधिक गांवो के आदिवासी भी शामलि हुए थे। कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा इस विशाल सभा की अगुआई कर रहे थे। इस दौरान महेंद्र कर्मा ने कहा कि सलवा जुडूम माओवादी हिंसा के खिलाफ एक शांतिपूर्ण आंदोलन है। उन्होंने कहा था कि इस आंदोलन का नाम स्थानीय गोंडी भाषा में ही रखा जाए, ताकि अधिक से अधिक स्थानीय लोग इसे समझ सके और इससे जुड़ सके। कर्मा ने ही इस आंदोलन का नाम सलवा जुडूम रखा था।