धान के बाद मखाना बना छत्तीसगढ़ की नई पहचान: बालाघाट के किसानों ने आरंग में लिया 'काले हीरे' के मॉडल का प्रशिक्षण
बालाघाट के किसानों के दल ने रायपुर के आरंग स्थित ओजस फॉर्म में मखाना उत्पादन और प्रसंस्करण मॉडल का निरीक्षण किया, जहां मखाना खेती को सुरक्षित और लाभकारी बताया गया।
बालाघाट के किसानों ने आरंग में लिया मखाना उत्पादन और प्रसंस्करण मॉडल का निरीक्षण
रायपुर। धान उत्पादन के लिए प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ अब मखाना (काला हीरा) की खेती में नए अध्याय लिख रहा है। स्वास्थ्यवर्धक गुणों और उच्च बाजार मूल्य के कारण मखाना तेजी से किसानों के लिए लाभकारी विकल्प बनता जा रहा है। इसी मॉडल को समझने के लिए मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले से किसानों का दल 25 दिसंबर को रायपुर जिले के आरंग ब्लॉक स्थित ओजस फॉर्म पहुंचा और मखाना उत्पादन से लेकर बाजार व्यवस्था तक हर पहलू का प्रत्यक्ष अध्ययन किया।
किसानों ने लिया मखाना उत्पादन का प्रत्यक्ष अनुभव
उद्यानिकी विभाग के मार्गदर्शन में आयोजित इस अध्ययन भ्रमण में किसानों ने मखाना की खेती, तालाब प्रबंधन, प्रसंस्करण तकनीक और मार्केट चैन को नजदीक से समझा। खेती के हर चरण को विस्तार से देखकर किसानों ने इस फसल को पारंपरिक खेती का मजबूत विकल्प बताया।
छत्तीसगढ़ में मखाना का सफल मॉडल
छत्तीसगढ़ में मखाना का पहला व्यावसायिक उत्पादन आरंग ब्लॉक के लिंगाडीह गांव में स्वर्गीय कृष्ण कुमार चंद्राकर ने शुरू किया था। 5 दिसंबर 2021 को यहां राज्य का पहला मखाना प्रसंस्करण केंद्र स्थापित हुआ, जिसने इस क्षेत्र को मखाना मॉडल के रूप में देशभर में पहचान दिलाई।
विशेषज्ञों ने बताए उत्पादन और लागत के तथ्य
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. गजेंद्र चंद्राकर ने बताया कि मखाना की खेती में प्रति एकड़ लगभग 20 किलो बीज लगता है, जिससे करीब 10 क्विंटल उत्पाद प्राप्त हो जाता है। यह छह माह की फसल है जिसमें कीट-व्याधि का खतरा ना के बराबर होता है और चोरी की समस्या भी नहीं रहती, जिससे किसानों का जोखिम बेहद कम हो जाता है।
मखाना प्रसंस्करण विशेषज्ञ रोहित साहनी ने बताया कि 1 किलो बीज से 200-250 ग्राम पॉप निकलता है, जिसकी बाजार कीमत 700 से 1000 रुपये प्रति किलो तक रहती है। यदि किसान स्वयं प्रसंस्करण करें, तो लाभ कई गुना बढ़ जाता है।
ओजस फॉर्म ने दी तकनीकी जानकारी और सहयोग का आश्वासन
फॉर्म के प्रबंधक संजय नामदेव ने किसानों को तालाब निर्माण, मिट्टी चयन, बीज गुणवत्ता और जलवायु अनुकूलता के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने किसानों को हर स्तर पर तकनीकी सहायता उपलब्ध कराने का भरोसा दिया।
बालाघाट के किसानों ने की सराहना, मॉडल अपनाने का निर्णय
भ्रमण में योगेंद्र लोधी, कौशल उईके, रघुवंश लोधी, मोहनलाल उईके, सुकेश नागवंशी, राम नागपुरे, सुमित सिंह उईके, देवराज मरकाम, धीरज पाटले और यशवंत अहिरवार शामिल थे। किसानों ने कहा कि मखाना खेती पारंपरिक फसलों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित और लाभकारी है और इसे अपने जिले में अपनाने के लिए वे तैयार हैं।
सरकार दे रही प्रोत्साहन, बढ़ रही संभावनाएं
उद्यानिकी विभाग ने बताया कि मखाना बोर्ड के माध्यम से प्रशिक्षण, तकनीकी मार्गदर्शन और सब्सिडी जैसी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। इसका उद्देश्य प्रदेश में मखाना को बड़े स्तर पर बढ़ावा देना है।