पूना मारगेम: नक्सलवाद से संवाद तक, छत्तीसगढ़ में शांति और विकास की नई राह
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद जैसी जटिल समस्या से निपटने के लिए भाजपा सरकार द्वारा शुरू किया गया 'पूना मारगेम' अभियान अब एक प्रभावी और मानवीय मॉडल के रूप में उभर रहा है।
साय सरकार का 'पूना मारगेम' अभियान- पुनर्वास से पुनर्जीवन
रायपुर। छत्तीसगढ़ में लंबे समय से नक्सलवाद केवल एक सुरक्षा समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और विकासात्मक चुनौती बना रहा है। बस्तर जैसे क्षेत्रों में हिंसा, भय और अविश्वास के कारण जन-जीवन के साथ-साथ सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी योजनाएँ भी बाधित होती रहीं।
इसी पृष्ठभूमि में छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने 'पूना मारगेम' अभियान की शुरुआत की, जिसका अर्थ है- नए रास्ते की ओर लौटना। यह पहल सुरक्षा कार्रवाई से आगे बढ़कर संवाद, विश्वास और पुनर्वास पर आधारित एक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।
क्या है ‘पूना मारगेम’ अभियान
'पूना मारगेम' का मूल उद्देश्य हिंसा का समाधान केवल हथियारों से नहीं, बल्कि संवाद और विश्वास के माध्यम से करना है। इस अभियान के तहत नक्सल संगठनों से जुड़े लोगों को मुख्यधारा में लौटने का अवसर दिया गया, ताकि वे भय और हिंसा का रास्ता छोड़कर समाज के साथ जुड़ सकें।
2025 में दिखे ठोस परिणाम
वर्ष 2025 में इस नीति को प्रभावी रूप से लागू किया गया, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए। बस्तर और दण्डकारण्य क्षेत्र में बड़े पैमाने पर नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। अक्टूबर 2025 में 210 से अधिक नक्सलियों का एक साथ आत्मसमर्पण इस अभियान की ऐतिहासिक सफलता माना गया। यह दर्शाता है कि कठोरता के साथ यदि मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाए, तो हिंसा के रास्ते पर चल रहे लोग भी लौटने को तैयार होते हैं।
पुनर्वास और रोजगार से जोड़ा गया भविष्य
'पूना मारगेम' के तहत आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को केवल कानूनी संरक्षण ही नहीं दिया गया, बल्कि आर्थिक सहायता, कौशल प्रशिक्षण, आवास सुविधा और रोजगार से जोड़ने की व्यवस्था की गई। कई पूर्व नक्सली अब सड़क निर्माण, जल परियोजनाओं और स्थानीय विकास कार्यों में श्रमिक या प्रशिक्षु के रूप में कार्य कर रहे हैं। इससे उन्हें सम्मानजनक जीवन मिला और विकास कार्यों को भी गति मिली।
विकास कार्यों को मिली रफ्तार
अभियान का प्रत्यक्ष प्रभाव यह रहा कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ। जिन इलाकों में पहले प्रशासन नहीं पहुँच पाता था, वहाँ अब स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, आंगनबाड़ी और सड़क जैसी सुविधाएँ पहुँचने लगी हैं, यह साबित करता है कि शांति और विकास एक-दूसरे के पूरक हैं।
सामाजिक भरोसे की बहाली
सामाजिक दृष्टि से 'पूना मारगेम' अभियान अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुआ है। लंबे समय से भय और अविश्वास में जी रहे ग्रामीणों में सरकार के प्रति भरोसा बढ़ा है। संवाद आधारित नीति ने यह संदेश दिया कि सरकार केवल दंड देने वाली संस्था नहीं, बल्कि सुधार और पुनर्वास का अवसर देने वाली संवेदनशील व्यवस्था भी है।
दीर्घकालिक प्रभावों पर नजर जरूरी
हालाँकि यह स्वीकार करना आवश्यक है कि इस अभियान के दीर्घकालिक प्रभावों का पूर्ण मूल्यांकन आने वाले वर्षों में ही संभव होगा। शिक्षा, आय, स्थायी रोजगार और सामाजिक स्थिरता जैसे संकेतकों पर निरंतर निगरानी आवश्यक है, लेकिन अब तक के परिणाम इसे एक मजबूत और सकारात्मक पहल सिद्ध करते हैं।
अन्य नक्सल प्रभावित राज्यों के लिए उदाहरण
'पूना मारगेम' यह स्पष्ट करता है कि हिंसा का स्थायी समाधान संवाद, संवेदनशीलता और विकास में निहित है। छत्तीसगढ़ सरकार की यह पहल एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत करती है, जहाँ सुरक्षा, मानवता और विकास एक साथ चलते हैं। यदि इसे निरंतरता और पारदर्शिता के साथ लागू किया गया, तो यह न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि अन्य नक्सल प्रभावित राज्यों के लिए भी एक प्रभावी उदाहरण बन सकता है।