विश्वकर्मा पूजा 2025: जानिए पूजा की विधि, शुभ मुहूर्त, आरती और महत्व

Vishwakarma Puja 2025: विश्वकर्मा पूजा 2025 को 17 सितंबर को मनाया जाएगा। जानें पूजा की विधि, शुभ मुहूर्त, आरती और भगवान विश्वकर्मा की पूजा का महत्व।

Updated On 2025-10-16 16:29:00 IST
विश्वकर्मा पूजा 2024

Vishwakarma Puja 2025: भगवान विश्वकर्मा की जयंती का पर्व इस साल 17 सितंबर 2025, बुधवार को पूरे श्रद्धा भाव से मनाई जा रही है। विश्वकर्मा भगवान भारत में शिल्प, निर्माण और तकनीकी कौशल के प्रतीक माने जाते हैं। इस दिन देशभर में कारखानों, वर्कशॉप, दुकानों और तकनीकी संस्थानों में भगवान विश्वकर्मा की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। यह दिन कारीगरों, इंजीनियरों, निर्माणकर्ताओं और तकनीकी पेशेवरों के लिए विशेष महत्व रखता है। यहां जानें विश्वकर्मा पूजा विधि, आरती, शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में।

विश्वकर्मा पूजा का मुहूर्त

तिथि: 17 सितंबर 2025, बुधवार

कन्या संक्रांति का क्षण: 01:55 AM

ब्रह्म मुहूर्त: 04:33 AM- 05:20 AM

प्रात: संध्या: 04:57 AM- 06:07 AM

विजय मुहूर्त: 02:18 PM- 03:07 PM

गोधूलि मुहूर्त: 06:24 PM- 06:47 PM

अमृत काल: 12:06 AM- 01:43 AM (18 सितंबर)

निशीथ काल: 11:52 PM- 12:39 AM (18 सितंबर)

विश्वकर्मा पूजा विधि

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और घर या कार्यस्थल की सफाई करें।
  • पूजा स्थान पर भगवान विश्वकर्मा तथा भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  • कलश स्थापित करें और उस पर रोली-अक्षत लगाएं।
  • भगवान को पुष्प, फल, सुपारी, मिठाई, धूप, दीपक, तिलक आदि अर्पित करें।
  • मशीनों, औजारों, वाहनों, उपकरणों पर भी तिलक और फूल चढ़ाएं।
  • ‘ॐ विश्वकर्मणे नमः’ या ‘ॐ श्री सृष्टिनाय सर्वसिद्धाय विश्वकर्माय नमः’ मंत्र का जप करें।
  • भगवान की आरती करें और सभी में प्रसाद वितरित करें।

क्या करते हैं विश्वकर्मा पूजा के दिन?

  • फैक्ट्रियों, दुकानों और वर्कशॉप में मशीनों व औजारों की विशेष पूजा होती है।
  • कार्यस्थल को सजाया जाता है और पूजा के बाद काम बंद रखकर भगवान का आशीर्वाद लिया जाता है।
  • कई स्थानों पर भगवान विश्वकर्मा की विशाल झांकियां और पंडाल भी बनाए जाते हैं।
  • कुछ क्षेत्रों में पतंगबाजी की परंपरा भी इस दिन निभाई जाती है।
  • कार्यस्थल के कर्मचारियों के बीच प्रसाद व भोजन का आयोजन भी होता है।

विश्वकर्मा पूजा का महत्व

भगवान विश्वकर्मा को ब्रह्मा का पुत्र और सृष्टि का पहला शिल्पी माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, उन्होंने स्वर्गलोक, पुष्पक विमान, द्वारका नगरी और इंद्र के वज्र जैसे दिव्य शस्त्रों का निर्माण किया। इस दिन उनकी पूजा से माना जाता है कि मशीनों में कोई खराबी नहीं आती। व्यापार में उन्नति होती है। कामगारों को नई ऊर्जा और सुरक्षा मिलती है। जीवन में सफलता, समृद्धि और तकनीकी दक्षता बढ़ती है।

विश्वकर्मा जी की आरती

ॐ जय श्री विश्वकर्मा, प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।

सकल सृष्टि के कर्ता, रक्षक श्रुति धर्मा॥

आदि सृष्टि में विधि को श्रुति उपदेश दिया।

जीव मात्रा का जग में, ज्ञान विकास किया॥

ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नहीं पाई।

ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥

रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।

संकट मोचन बनकर, दूर दुःख कीना॥

जब रथकार दंपति, तुम्हरी टेर करी।

सुनकर दीन प्रार्थना, विपत हरी सगरी॥

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।

त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप सजे॥

ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।

मन दुविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे॥

“श्री विश्वकर्मा जी” की आरती, जो कोई नर गावे।

कहत गजानंद स्वामी, सुख संपति पावे॥

विश्वकर्मा पूजा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह तकनीकी और औद्योगिक समर्पण का पर्व भी है। यह दिन हमें अपने कार्य में ईमानदारी, श्रम और रचनात्मकता के महत्व का स्मरण कराता है। भगवान विश्वकर्मा की आराधना से न केवल मशीनें ठीक रहती हैं, बल्कि कार्यस्थल पर सकारात्मक ऊर्जा और सौहार्द का वातावरण भी बना रहता है।

डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। HariBhoomi.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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