Sarva Pitru Amavasya 2025: सर्वपितृ अमावस्या पर करें श्राद्ध, तर्पण और दान, मिलेगा पितरों का आशीर्वाद, जानें सही विधि
सर्वपितृ अमावस्या 2025 पर जानें श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान और दान की सही विधि और धार्मिक महत्व। पितरों को प्रसन्न करने के लिए करें ये उपाय और पाएं उनका आशीर्वाद।
Sarva Pitru Amavasya 2025: 20 सितंबर 2025 (शनिवार) को सर्वपितृ अमावस्या का पावन पर्व मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह दिन आश्विन मास की अमावस्या तिथि को पड़ता है और पितृपक्ष का अंतिम दिन होता है। जिन पूर्वजों की तिथि ज्ञात नहीं होती या जिनका श्राद्ध किसी कारणवश नहीं हो पाया, उनके लिए इसी दिन श्रद्धा, तर्पण और पिंडदान करने की परंपरा है।
इस दिन को पितरों की विदाई का विशेष अवसर माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, श्राद्ध कर्म करने से पूर्वज प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
दिन की शुरुआत कैसे करें?
सर्वपितृ अमावस्या की सुबह जल्दी उठकर स्नान करना अत्यंत शुभ माना गया है। यदि संभव हो तो गंगा, यमुना या किसी तीर्थ स्थल पर स्नान करें, अन्यथा घर में ही गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। स्नान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पवित्र भावना के साथ पूजा की तैयारी करें।
पितरों को जल अर्पण करने की विधि
श्राद्ध कर्म की पहली प्रक्रिया तर्पण होती है। इसके लिए तांबे या पीतल के लोटे में जल लें और उसमें तिल, कुश और जौ डालें। फिर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों को जल अर्पित करें। मंत्र: "ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः" यह क्रिया पूर्ण श्रद्धा और शांत मन से करनी चाहिए। दिखावे की बजाय भावना प्रधान होनी चाहिए।
पिंडदान कैसे करें?
पिंडदान में चावल, जौ, काले तिल और देसी घी मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं। इन्हें पीपल के पत्ते या किसी थाली में रखकर पूर्वजों को समर्पित किया जाता है। यदि संभव हो तो किसी योग्य ब्राह्मण की देखरेख में पिंडदान करें। इससे पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है और वे वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
पंचबलि नियम
श्राद्ध में पंचबलि परंपरा के अनुसार भोजन का एक-एक हिस्सा गाय, कुत्ता, कौआ, चींटी और देवताओं के लिए निकाला जाता है। यह परंपरा हमें सभी जीवों के प्रति दया और सम्मान सिखाती है।
ब्राह्मण भोज और दान का महत्व
इस दिन 1, 3 या 5 ब्राह्मणों को भोजन कराने की परंपरा है। उन्हें पूर्व में आमंत्रित करें और आदरपूर्वक बिठाकर पितरों की याद में भोज कराएं। भोजन के उपरांत उन्हें यथाशक्ति वस्त्र, अन्न, दक्षिणा या बर्तन दान करें। इससे पितरों को संतोष मिलता है और घर में पुण्य बढ़ता है।
पीपल के नीचे दीपक जलाने की परंपरा
संध्या के समय पीपल के पेड़ के नीचे या घर के मुख्य द्वार पर एक चौमुखा दीपक जलाएं। यह दीपक पितरों के मार्गदर्शन और संतोष का प्रतीक होता है।
मंत्र: "ॐ सर्वपितृ देवताभ्यो नमः"
दीपक जलाकर अपने पूर्वजों को सम्मानपूर्वक विदा करें और उनके कल्याण की प्रार्थना करें।
विदाई
श्राद्ध और तर्पण के अंत में पितरों से क्षमा याचना करें कि यदि किसी विधि में त्रुटि रह गई हो, तो क्षमा करें और कृपा बनाए रखें। यह क्षण परिवार और पूर्वजों के बीच के आध्यात्मिक संबंध को और भी प्रगाढ़ करता है।
दान-पुण्य का विशेष महत्व
इस दिन गरीबों, जरूरतमंदों, ब्राह्मणों और पितरों के नाम पर दान करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।
दान में आप दे सकते हैं।
- अन्न
- वस्त्र
- बर्तन
- फल-मिठाई
- दक्षिणा
- पूजा सामग्री
धार्मिक महत्व
सर्वपितृ अमावस्या केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि यह पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता जताने का दिन है। यह दिन हमें यह स्मरण कराता है कि हम अकेले नहीं हैं हमारे साथ हमारे पूर्वजों की आत्माएं हैं, जिनके आशीर्वाद से हमारा जीवन सफल होता है। 20 सितंबर 2025 को मनाई जाने वाली सर्वपितृ अमावस्या पर श्रद्धा, सेवा और दान के माध्यम से पितरों को प्रसन्न करें। उनका आशीर्वाद जीवन में सुख, समृद्धि और उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। HariBhoomi.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।