राधाष्टमी व्रत कथा: पढ़ें राधा रानी के जन्म की पावन कथा और महत्व
Radhashtami Vrat Katha: राधाष्टमी के दिन पढ़ें राधा रानी की दिव्य जन्म कथा। जानिए वृंदावन में राधा के अवतरण, प्रेम, त्याग और भक्ति से जुड़ी प्रेरणादायक कहानी और पूजा विधि।
Radhashtami Vrat Katha: राधाष्टमी, जो भगवती राधा के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है, एक ऐसा पर्व है जो प्रेम, समर्पण और भक्ति का प्रतीक है। राधाष्टमी के पावन पर्व पर व्रत कथा का बहुत महत्व है। अगर आप भी राधाष्टमी का व्रत रखे हैं तो आपको यह कथा जरूर पढ़नी चाहिए। यहां पढ़ें राधा-रानी की कथा।
बहुत समय पहले, वृंदावन की पवित्र भूमि पर एक शांत सुबह थी। उस दिन आकाश में अनुपम सुंदरता के साथ बादल छाए थे और हवा में फूलों की मधुर सुगंध फैली थी। वृषभानु और कीर्ति नामक एक धर्मनिष्ठ दंपति, जो गोकुल में रहते थे, पुत्री की कामना से निरंतर भगवान की भक्ति में लीन रहते थे। एक दिन, वृषभानु जी ने सपने में एक दिव्य प्रकाश देखा, जिसमें एक अलौकिक कन्या ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा, "मैं तुम्हारे घर में अवतरित होऊंगी और इस धरती पर प्रेम और भक्ति का संदेश दूंगी।
"सपने के कुछ दिनों बाद, भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को, एक अलौकिक घटना हुई। वृषभानु जी कीर्ति के साथ यमुना नदी के किनारे पूजा कर रहे थे। तभी नदी के जल में एक कमल का फूल प्रकट हुआ, और उसमें से एक सुंदर कन्या प्रकट हुई, जिसका रूप चंद्रमा की किरणों जैसा चमक रहा था। उसका चेहरा मुस्कान से प्रकाशित था, और उसके चारों ओर मोरपंखी हवा चल रही थी। वृषभानु और कीर्ति ने उस कन्या को अपनी गोद में लिया और उसे "राधा" नाम दिया, जिसका अर्थ है वह जो सभी को आकर्षित करे।
राधा का प्रेम और समर्पण
राधा का बचपन वृंदावन की हरियाली और गायों की घंटियों की मधुर ध्वनि के बीच बीता। वह अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करती थी और गायों को चराने जाती थी। एक दिन, जब वह जंगल में थी, उसे एक छोटा सा बच्चा मिला, जो भूखा और थका हुआ था। वह बच्चा कोई और नहीं, बल्कि भगवान कृष्ण थे, जो अपने लीलाओं के लिए वृंदावन आए थे। राधा ने अपने साथ लाए दूध और फल उसे दिए और कहा, "तुम्हें भूख लगी है, मेरे भाई। इसे खाओ और तरोताजा हो जाओ।
"कृष्ण मुस्कुराए और बोले, "राधा, तुम्हारा हृदय इतना पवित्र है कि मैं तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ।" तभी से राधा और कृष्ण की मित्रता शुरू हुई, जो बाद में प्रेम और भक्ति का अनुपम उदाहरण बनी। राधा ने कभी भी अपने प्रेम को स्वार्थ के लिए इस्तेमाल नहीं किया। उसका समर्पण केवल भगवान के प्रति था। वह गायों की सेवा करती, फूलों से माला बनाती, और कृष्ण के लिए भजन गाती।
राधा का त्याग
एक बार, वृंदावन में भयंकर सूखा पड़ा। नदियां सूख गईं, और लोग भूख से पीड़ित थे। राधा ने अपने माता-पिता से कहा, "मैं यमुना को पुनर्जीवित करने के लिए प्रार्थना करूंगी।" वह दिन-रात भगवान की तपस्या में लीन हो गई। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने स्वयं प्रकट होकर यमुना को पुनः प्रवाहित किया। लेकिन राधा ने अपने लिए कुछ नहीं मांगा। उसने केवल वृंदावन की सुख-शांति की कामना की। यह त्याग ही राधा को विशेष बनाता है।
राधा का संदेश
राधाष्टमी के दिन, जब लोग राधा की पूजा करते हैं, यह कथा उन्हें सिखाती है कि सच्चा प्रेम और समर्पण ही जीवन का आधार है। राधा ने दिखाया कि भक्ति में स्वार्थ नहीं, बल्कि आत्म-त्याग और दूसरों की भलाई का भाव होना चाहिए। उनकी कहानी आज भी हमें प्रेरित करती है कि हम अपने जीवन में प्रेम, करुणा और भगवान के प्रति श्रद्धा को अपनाएं।
व्रत कथा के बाद करें पूजा
इस कथा को राधाष्टमी के दिन सुबह स्नान के बाद पढ़ें।
राधा-कृष्ण की मूर्ति या चित्र के सामने दीप प्रज्वलित करें।
फूल, मिठाई और जल अर्पित करें।
कथा के बाद भजन गाएं और प्रसाद वितरित करें।