Hartalika Teej Vrat katha: पति की लंबी आयु के लिए रखें हरतालिका तीज, पढ़ें व्रत कथा
Hartalika Teej Vrat katha: जानिए हरतालिका तीज की पौराणिक कथा, व्रत का महत्व और कैसे पड़ा इसका नाम।
Hartalika Teej Vrat katha: हरतालिका तीज केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति, समर्पण और प्रेम की प्रतीक पावन परंपरा है। यह पर्व देवी पार्वती के तप और भगवान शिव के प्रति अटूट प्रेम की स्मृति में मनाया जाता है। व्रत करने वाली स्त्रियां देवी पार्वती की तरह सौभाग्यवती बनने और अखंड प्रेम पाने की कामना से यह उपवास रखती हैं। यहां पढ़ें हरितालिका तीज व्रत कथा।
हरतालिका तीज की पौराणिक कथा
एक समय की बात है, माता पार्वती ने शिवजी को पति रूप में पाने के लिए बाल्यावस्था में ही कठोर तप का संकल्प लिया। उन्होंने न भोजन किया, न जल ग्रहण किया। केवल हवा में जीवित रहकर सूखे पत्तों को चबा कर जीवनयापन किया। तपस्या इतनी कठिन थी कि भीषण गर्मी, ठंड और बारिश भी उन्हें डिगा नहीं सकी। उनकी यह हालत देखकर उनके पिता हिमालय राज अत्यंत दुखी हुए। उसी समय नारद मुनि वहां आए और बताया कि भगवान विष्णु माता पार्वती से विवाह करना चाहते हैं। हिमालय ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
जब देवी पार्वती को इस निर्णय की जानकारी मिली, तो वे अत्यंत व्यथित हो गईं। उन्होंने अपने मन की बात अपनी सखी से साझा की और कहा कि वे तो मन ही मन भगवान शिव को पति रूप में स्वीकार कर चुकी हैं। इस विवाह की बात सुनकर उन्होंने जीवन त्यागने तक की बात सोची।
उनकी सखी ने उन्हें आत्महत्या से रोका और कहा कि ऐसे समय में धैर्य से काम लेना चाहिए। सखी उन्हें हिमालय से दूर, एक घने वन में ले गई, जहां उन्होंने एकांत में शिवजी की तपस्या प्रारंभ की। माता पार्वती ने वहां रेत का शिवलिंग बनाकर निरंतर उपासना की।
उनकी अडिग भक्ति और कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए और स्वयं माता के समक्ष प्रकट हुए। उन्होंने वर मांगने को कहा। माता पार्वती ने कहा, "मैंने आपको ही पति रूप में चुना है, कृपया मुझे स्वीकार करें।" भगवान शिव ने 'तथास्तु' कहा और कैलाश लौट गए। कुछ समय बाद, हिमालय अपनी पुत्री की खोज करते हुए वहां पहुंचे। जब पार्वती ने उन्हें संपूर्ण घटना सुनाई और कहा कि वह केवल भगवान शिव से ही विवाह करेंगी, तो पिता ने सहमति दे दी। इसी के बाद शिव और पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ।
'हरतालिका' नाम कैसे पड़ा?
कहानी में पार्वती की सखी, जो उन्हें वन में ले गई थी, ने उनका ‘हरण’ किया था। अर्थात उन्हें बिना बताए घर से दूर ले गई। इसी कारण इस व्रत का नाम ‘हर-तालिका’ पड़ा। ‘हर’ का अर्थ है हरण करना और ‘तालिका’ यानी सखी।
व्रत का महत्व
भगवान शिव ने स्वयं कहा कि जो स्त्री इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा, निष्ठा और नियम से करती है, उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है और अविवाहित कन्याओं को योग्य जीवनसाथी का वरदान मिलता है।
डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। HariBhoomi.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।
अनिल कुमार