Travel dairy: तंजानिया… जहां, वन और जीव पर्यटन का ही नहीं, जीवन का भी हिस्सा हैं
डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने तंजानिया की अपनी यात्रा का अनुभव साझा किया। जानिए यहाँ के नेशनल पार्क, 'बिग फाइव' वन्य जीव, दार एस सलाम का अनुभव और भारतीय पर्यटकों के लिए जरूरी टिप्स।
डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने तंजानिया की अपनी यात्रा का अनुभव साझा किया।
डा. हिमांशु द्विवेदी
जीवन में दो विषयों ने हमेशा ही बहुत आकर्षित किया। पहला वन और दूसरा वन्य जीव। जहां तक वनों की बात है तो यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि कान्हा नेशनल पार्क से बेहतर कोई नहीं। आकाश की ऊंचाई नापने को आतुर और सूरज की किरणों को दाखिल होने से रोकने की कोशिश में जुटे असंख्य साल वृक्षों की मौजूदगी रगों में रक्त के प्रवाह को सहज ही बढ़ा देती है। लेकिन, वन्य जीवों के संबंध में हालात पूरी तरह जुदा हैं। इस मामले में हमारा अतीत जितना भी गौरवशाली रहा हो, पर लज्जित वर्तमान और आशंकित भविष्य ही सच्चाई है।
नई-नई मानव बस्तियां बसाने, वनों को उजाड़ कर उनके नीचे से खनिज संपदा पाने और विलासिता व धनोपार्जन की खातिर बेहिसाब वन्यजीवों के शिकार ने हमारे देश में कई वन्य प्राणियों को लुप्त या लुप्तप्राय ही कर दिया। तीन-तीन दिन तक कान्हा समेत तमाम नेशनल पार्क में सुबह-शाम बाघ की तलाश करने के बाद भी सैलानियों का असफल लौटना आम बात है।
इसके ठीक उलट हालात हैं भारत से छह हजार किलोमीटर दूर अफ्रीकी देश तंजानिया के। प्रथम विश्व युद्ध से पहले जर्मनी और उसके बाद ब्रिटिश उपनिवेश के रूप में जीने को मजबूर रहा यह देश, जिसे आजादी की सांस लिए पांच दशक ही बीते हैं। हिंद महासागर के मुहाने पर मौजूद प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर यह देश अभी अपने पैरों पर खड़ा होने की जद्दोजहद से ही गुजर रहा है।
सुरक्षा की चिंता और पर्यटकों का आकर्षण
यहां कच्चे मकान और टूटी सड़कों की भरमार है। कानून-व्यवस्था का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि देश की व्यापारिक राजधानी समझे जाने वाले दार-ए-सलाम शहर में सूरज ढलने के साथ ही होटल में रहने की सलाह दी जाती है। इसके बाद भी यहां दुनियाभर से पर्यटकों का आना वर्ष भर लगा रहता है। इसकी एकमात्र वजह है इस देश में बेहिसाब वन्य जीवों का होना।
'बिग फाइव' और द ग्रेट माइग्रेशन
बिग फाइव अर्थात सिंह, हाथी, गेंडा, तेंदुआ और वनभैंसा को देखने की चाहत में लाखों लोग यहां हर साल खिंचे आते हैं और यह जमीन किसी को निराश नहीं करती। दुनिया भर में चर्चित सालाना 'द ग्रेट माइग्रेशन' केन्या और तंजानिया के बीच ही होता है। दुर्लभ हो चुके वन्य प्राणियों को देखने की चाहत लिए इस समय मैं तंजानिया में ही हूं।
भारत से तंजानिया का सफर और सुविधाएं
भारत से आने में बहुत अधिक दुश्वारी नहीं है क्योंकि मुंबई से दार-ए-सलाम के लिए सीधी फ्लाइट उपलब्ध है। एयर तंजानिया की यह फ्लाइट सुबह छह बजे उड़ान भरकर स्थानीय समय अनुसार सुबह साढ़े नौ बजे यहां पहुंचा देती है। भारत के मुकाबले यहां घड़ी की सुइयां ढाई घंटे पीछे रहती हैं। भारतीयों के लिए वीजा ऑन अराइवल की सुविधा है, इसलिए जेब में थोड़े से पैसे आते ही आप यहां का रुख कर सकते हैं।
दार-ए-सलाम में 'मिनी मुंबई' का अहसास
समय है और थकान है तो एक दिन दार-ए-सलाम में बिताना बेहतर है। यह शहर आपको बहुत हद तक मुंबई का अहसास कराएगा। भारतीय रेस्त्रां की कोई कमी नहीं है। कम पैसों में अच्छा भारतीय भोजन अच्छी जगहों पर सहज उपलब्ध है। भारतीयों की उपस्थिति इतनी प्रभावी है कि एक सड़क का नाम ही इंडियन स्ट्रीट है। यहां 'दालचीनी' नाम का एक रेस्टोरेंट है, जो पूरी तरह शाकाहारी है। पंद्रह हजार शिलिंग (लगभग 500 भारतीय रुपये) के भुगतान पर हमें एक बेहतरीन थाली मिली।
वन्य जीवों की भरमार के बीच तंजानिया ने राष्ट्रीय पशु के रूप में जिराफ को तय किया है। अपनी लंबी गर्दन के कारण विशिष्ट पहचान रखने वाले इस शाकाहारी जीव को शांत, सौम्य और अहिंसक स्वभाव के कारण सराहा जाता है। 5 से 6 मीटर की ऊंचाई और हजार किलो से ज्यादा वजनी इस जीव को अपनी पतली-पतली टांगों पर चलते देखना हैरत में डाल देता है। तंजानिया के तमाम नेशनल पार्क में सहजता से ही दिख जाने वाले इस जीव को मारना जघन्य अपराध है।