श्रम संहिताओं पर विपक्ष का जोरदार प्रदर्शन, खड़गे ने बताया ‘मजदूरों के साथ धोखा’
संसद के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन बुधवार को विपक्षी दलों ने मोदी सरकार पर श्रम कानूनों को लेकर तीखा हमला बोला। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, सपा, वामदल और अन्य विपक्षी पार्टियों ने एक स्वर से चार नई श्रम संहिताओं को “मजदूर-विरोधी, कॉर्पोरेट हितैषी और श्रमिकों के हक छीनने वाला” करार दिया। सदन के अंदर और बाहर नारेबाजी, तख्तियां और प्रदर्शन के बीच विपक्ष ने इन संहिताओं को तत्काल वापस लेने की मांग की।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने X पर लिखा:
“ये चारों श्रम संहिताएँ मजदूरों से नौकरी की सुरक्षा छीन रही हैं, काम के घंटे बढ़ा रही हैं, ट्रेड यूनियनों को कमजोर कर रही हैं और प्रवासी-असंगठित मजदूरों को पूरी तरह असुरक्षित छोड़ रही हैं। यह मजदूरों के साथ खुला विश्वासघात है।”विपक्ष के प्रमुख आरोप इस प्रकार हैं:नौकरी की सुरक्षा लगभग खत्म
पहले 100 कर्मचारियों तक की इकाई को छंटनी के लिए सरकारी अनुमति जरूरी थी, अब यह सीमा बढ़ाकर 300 कर दी गई। इससे देश के 80% से अधिक कारखाने बिना किसी अनुमति के मनमर्जी से छंटनी कर सकेंगे।
फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट को बेतहाशा बढ़ावा मिलने से स्थायी नौकरियां खत्म हो जाएंगी और ग्रेच्युटी-पेंशन जैसे लाभ से मजदूर वंचित रह जाएंगे।
काम के घंटे 12 तक करने की खुली छूट
कागज पर 8 घंटे का दिन बना हुआ है, लेकिन राज्य सरकारें अब 12 घंटे की शिफ्ट लागू कर सकती हैं। ओवरटाइम की अधिकतम सीमा भी राज्य तय करेंगे। विपक्ष का कहना है कि इससे मजदूरों की थकावट, दुर्घटनाएं और स्वास्थ्य जोखिम कई गुना बढ़ जाएंगे।
ट्रेड यूनियनों पर सबसे बड़ा हमला
- हड़ताल से पहले 60 दिन का नोटिस और उसके बाद 14 दिन का कूलिंग पीरियड अनिवार्य।
- सिर्फ 51% सदस्यों वाली एक यूनियन को ही मान्यता, बाकी यूनियनों को हाशिए पर धकेलना।
- अगर 50% मजदूर एक साथ छुट्टी लें तो उसे भी हड़ताल मानकर दमन किया जा सकेगा।
300 से कम कर्मचारियों वाली इकाइयों में ‘हायर एंड फायर’ नीति
- स्टैंडिंग ऑर्डर लागू नहीं होंगे; काम के घंटे, छुट्टी, बर्खास्तगी के नियम भी बाध्यकारी नहीं।
- मालिकों को पूरी छूट कि जैसा चाहें वैसा करें।
सुरक्षा मानकों में भारी कटौती
- छोटे कारखानों (20-40 कर्मचारी) को सुरक्षा कानूनों से बाहर कर दिया गया।
- बीड़ी मजदूर, पत्रकार आदि संवेदनशील क्षेत्रों की विशेष सुरक्षा समाप्त।
- फ्लोर वेज और सोशल सिक्योरिटी को भी नोटिफिकेशन से कभी भी बदलने की छूट।
प्रवासी और असंगठित मजदूर सबसे ज्यादा मार में
- विस्थापन भत्ता पूरी तरह खत्म।
- आधार-आधारित पंजीकरण से लाखों प्रवासी मजदूर सामाजिक सुरक्षा से बाहर हो जाएंगे।
कानून तोड़ने को ‘जुर्माना देकर’ वैध करने का प्रावधान
- वेतन चोरी, सुरक्षा उल्लंघन जैसे गंभीर अपराधों को सिर्फ जुर्माना देकर कंपाउंड कर लिया जाएगा।
- विपक्ष ने इसे “कानून तोड़ो, पैसा दो, बच जाओ” की व्यवस्था बताया।
विपक्ष का एकमत संदेश: “ये संहिताएं मजदूरों के हक नहीं, पूंजीपतियों के हित बचाने के लिए लाई गई हैं। इन्हें तत्काल वापस लिया जाए।”