Insurance Policy Buying: इंश्योरेंस मिस-सेलिंग से कैसे बचें, पैसा देने से पहले ये सवाल ज़रूर पूछें?
Insurance Policy Buying Tips: अगर कोई इंश्योरेंस पॉलिसी ले रहे तो मिस-सेलिंग से जुड़ी बातों को ध्यान में रखना जरूरी है। अगर आपको कोई पॉलिसी खरीदने के लिए फोर्स करे तो अलर्ट हो जाएं।
इंश्योरेंस खरीदते वक्त इन बातों का ध्यान रखेंगे तो मिस-सेलिंग से बच सकते हैं।
Insurance Policy Buying Tips: इंश्योरेंस की गलत बिक्री यानी मिस-सेलिंग अक्सर पहली नज़र में गलत नहीं लगती। सामने वाला आत्मविश्वास से बात करता है, मददगार लगता है और जल्दी फैसला करवाना चाहता है। प्रोडक्ट असली और रेगुलेटेड भी हो सकता है लेकिन दिक्कत उसके बेचने के तरीके में होती है-गलत वादे, आपकी ज़रूरत से मेल न खाना और जरूरी शर्तों को चुपचाप छोड़ देना। इससे बचाव का सबसे अच्छा तरीका रफ्तार कम करना और पैसे देने से पहले कुछ साफ सवाल पूछना।
अगर इंश्योरेंस पॉलिसी बेचने में जल्दबाज़ी है तो सावधान हो जाएं। आज ही लें..ऑफर खत्म होने वाला है...नियम बदलने वाले हैं- ये लाइनें आपको सोचने का वक्त नहीं देतीं। अच्छा प्रोडक्ट दो दिन बाद भी अच्छा ही रहेगा। अगर सच में डेडलाइन है तो लिखित में सर्कुलर या नियम दिखाने को कहें।
पॉलिसी अपनी जरूरत के हिसाब से ही लें
कई बार आपका लक्ष्य साफ साफ नहीं होता। सुरक्षा चाहिए तो सुरक्षा वाला प्रोडक्ट लें। ग्रोथ चाहिए तो निवेश वाला। जब एक ही प्रोडक्ट को इंश्योरेंस के साथ, निवेश, टैक्स सेविंग, रिटायरमेंट के साथ ही बच्चों की पढ़ाई का खर्च निकालने तक... सब बताया जाए, तो सतर्क रहें। बंडल ठीक हो सकता है लेकिन जटिलता में नुकसान छुप जाता। बेचने वाला अगर ये साफ नहीं बता पा रहा कि सुविधा के बदले आप क्या छोड़ रहे, तो साइन न करें।
खर्चे दिन की रोशनी में लाएं
ज्यादातर पछतावा छुपे खर्चों से होता है। निवेश वाले इंश्योरेंस में मौखिक रिटर्न की बातों पर भरोसा न करें। ऑफिशियल बेनिफिट इलस्ट्रेशन लें और ध्यान से पढ़ें- बीच में प्रीमियम बंद करने पर क्या होगा? तीसरे-पांचवें साल में सरेंडर वैल्यू कितनी है, चार्ज काटकर हाथ में क्या आएगा।
म्यूचुअल फंड जैसे निवेश में जोखिम और खर्च बताना जरूरी है। अगर कोई जोखिम, एक्सपेंस रेशियो या उतार-चढ़ाव की बात टाल रहा है तो समझ लें तुलना करने पर तस्वीर बदल जाएगी।
एश्योरेड से सावधान रहें
इंश्योरेंस में गारंटी शर्तों के साथ होती है-समय पर हर प्रीमियम, लंबा लॉक-इन। मार्केट-लिंक्ड निवेश में पक्की गारंटी जैसी बात सही नहीं। अगर पिच का लहजा है कि ये तो तय है, तो संतुलित जानकारी नहीं मिल रही। आपसे आश्रित, मौजूदा कवर, कर्ज, लक्ष्य, निवेश अवधि और जोखिम सहने की क्षमता, इन सभी बातों पर सवाल होने चाहिए। अगर बात सीधे फॉर्म भरने पर आ जाए, तो सूटेबलिटी बस टिक-बॉक्स बन गई है।
पॉलिसी मिलने के बाद 15 दिन (और ऑनलाइन/डिस्टेंस मोड में 30 दिन) का मौका मिलता है। पर लोग समय पर पढ़ते नहीं, डेडलाइन चूक जाती है या बाद में कटौतियां दिखती हैं। इसे बैक-अप रखें, जल्दी साइन करने का लाइसेंस नहीं।
पॉलिसी साइन करने से पहले लिखित में डिटेल मांगें
पांच बातें लिखकर देने को कहें कि आप क्या खरीद रहे, सालाना खर्च, दूसरे-तीसरे साल में रुकने पर क्या होगा। भुगतान कब शुरू होगा, और सबसे बड़ा जोखिम। अगर बेचने वाला असहज हो जाए, तो वही संकेत काफी है। मिस-सेलिंग से बचने के लिए साफगोई आपका सबसे बड़ा हथियार है।
(प्रियंका कुमारी)