Tatiya Vrindavan: बांसों से घिरे इस क्षेत्र में अब तक नहीं आया कलयुग! वजह जानकर नहीं होगा विश्वास

वृंदावन का टटिया स्‍थान ऐसा धाम है जहां ठाकुर जी विराजमान हैं। कहते है दुनिया की यह एक ऐसी जगह है, जहां अभी तक कलयुग अपने पैर पसारने में नाकाम रहा है। यहां कलयुग से आशय आ

By :  Desk
Updated On 2024-04-26 18:13:00 IST
टटिया स्‍थान में विशुद्ध प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर आप यहां से वापस नहीं आना चाहेंगे।

Tatiya Vrindavan: भागदौड़ भरी जिंदगी में हर कोई दो पल सुकून के चाहता है। आधुनिक टेक्नोलॉजी और विज्ञान के चलते जीवन आसान हुआ है, लेकिन इसने इंसान के सुकून को छीन लिया है। ऐसे में हर इंसान चाहता है कि प्रकृति की ख़ूबसूरती को निहारा जाए और आनंद के कुछ पल निकाले जाएं। एक ऐसी ही जगह है उत्तर प्रदेश में वृंदावन का टटिया स्‍थान, जहां आकर आप प्राचीन काल की दुनिया को जी सकोगे। यहां अलग ही शांति का अनुभव होता है। 

वृंदावन का टटिया स्‍थान ऐसा धाम है जहां ठाकुर जी विराजमान हैं। कहते है दुनिया की यह एक ऐसी जगह है, जहां अभी तक कलयुग अपने पैर पसारने में नाकाम रहा है। यहां कलयुग से आशय आधुनिक मशीनी युग से है। टटिया स्‍थान में विशुद्ध प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर आप यहां से वापस नहीं आना चाहेंगे। यहां साधु संत संसार से विरक्त होकर ठाकुर जी की भक्ति में लीन रहते हैं। यहां किसी भी यंत्र, मशीन या बिजली का इस्‍तेमाल नहीं किया जाता है। 

पेड़-पत्ते भी बेहद ख़ास

हैरान वाली बात तो है, लेकिन यह सच भी है। हरिदास संप्रदाय से जुड़ा टटिया स्थान प्रकृति से निकटता, पवित्रता, दिव्यता और आध्यात्मिकता का अहसास करवाता है। मोबाइल फोन तो दूर की बात है, इस जगह पर पंखे और बल्‍ब तक आपको देखने को नहीं मिलेंगे। ठाकुर जी को आरती के समय पंखा भी पुराने समय की तरह डोरी की मदद से होता है। यहां के पेड़-पत्ते भी बेहद ख़ास है, बताया जाता है कि यहां के अधिकांश पत्तों पर राधा नाम उभरा हुआ होता है। 

टटिया स्थान का इतिहास

स्वामी हरिदास जी बांके बिहारी जी के अनन्य भक्त हुआ करते थे। उन्होंने वृंदावन के पक्षियों, फूलों और पेड़ों से ही प्रेम और दिव्य संगीत का पाठ सीखा। इस स्‍थान को बांस के डंडे के इस्तेमाल से पूरे इलाके को घेरा गया था, जिसके पीछे की वजह शिकारियों और तीमारदारों से स्थान की सुरक्षा करना था। स्थानीय बोलचाल में बांस की छड़ियों को 'टटिया' कहा जाता है, ऐसे में इस स्थान का नाम टटिया स्थान पड़ गया और आज यह इसी नाम से जाना जाता है। 

मोबाइल नहीं ले जा सकते 

टटिया स्‍थान में रहने वाले साधु - संत आज भी देह त्‍याग के लिए समाधि ही ग्रहण करते है। संत कुएं के पानी का ही इस्तेमाल करते है। वे किसी भी तरह की दान-दक्षिणा नहीं लेते है। इस क्षेत्र में कोई दान-पेटी भी आपको दिखाई नहीं देगी। यहां आने वाले भक्तों को मोबाइल फोन लाने की अनुमति नहीं हैं। न सिर्फ मोबाइल फोन बल्कि किसी भी तरह की आधुनिक वस्तु को यहां लाने पर प्रतिबंध हैं। महिलाओं को सिर ढंककर ही यहां पर प्रवेश करने की अनुमति है। 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं व जानकारियों पर आधारित है। Hari Bhoomi इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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