Janmashtami 2025: लड्डू गोपाल अभिषेक विधि, आरती और महत्व, जानें जन्माष्टमी पर कैसे करें पूजन

Janmashtami 2025 Laddu Gopal Abhishek Vidhi in Hindi: जन्माष्टमी पर लड्डू गोपाल का अभिषेक शुभ और मंगलकारी माना जाता है। जानें चरणबद्ध विधि, पूजन नियम और अभिषेक का धार्मिक महत्व।

By :  Desk
Updated On 2025-08-16 15:10:00 IST

लड्डू गोपाल के अभिषेक की पूरी विधि।

Janmashtami 2025 Laddu Gopal Abhishek Vidhi in Hindi: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हर साल भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में पूरे भारत में धूमधाम और भक्ति भाव से मनाया जाता है। इस अवसर पर भक्त घर-घर में लड्डू गोपाल की स्थापना करके विशेष पूजन और अभिषेक करते हैं।

शास्त्रों के अनुसार, लड्डू गोपाल का अभिषेक करने से घर में सुख-समृद्धि, सौभाग्य और शांति का वास होता है। पंचामृत स्नान, नारियल जल और सहस्त्रधारा जैसे पारंपरिक चरणों के साथ यह अभिषेक न केवल आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है बल्कि परिवार में सकारात्मक ऊर्जा भी फैलाता है।

लड्डू गोपाल अभिषेक की शास्त्रसम्मत विधि

1. गुरु पूजन

सबसे पहले गुरु की पूजा कर आशीर्वाद लें। दीपक, अगरबत्ती और पुष्प सात बार घुमाकर अर्पित करें।

2. जल स्नान

लड्डू गोपाल को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं।

3. पंचामृत अभिषेक

दूध, दही, घी, शहद और मीठे जल से भगवान का अभिषेक करें।

4. गुनगुना जल स्नान

पंचामृत के बाद हल्के गुनगुने जल से स्नान कराएं।

5. फलों और मेवों से अलंकरण

ड्राई फ्रूट की माला पहनाएं और 3-4 फलों के रस से अभिषेक करें।

6. नारियल पानी अभिषेक

इसके बाद नारियल पानी से स्नान कराएं।

7. सहस्त्रधारा

फलों और फूलों को छलनी में रखकर ऊपर से जल प्रवाहित करें।

8. हल्दी लेपन व तिलक

हल्दी का लेपन करें और चंदन से तिलक लगाएं।

9. श्रृंगार

फूलों की माला और सुंदर वस्त्र पहनाएं।

10. आरती और समापन

कर्पूर आरती 7 बार घुमाएं, फूलों की वर्षा करें और मोरपंख से हवा दें।

अभिषेक का धार्मिक महत्व

शास्त्रों में कहा गया है कि लड्डू गोपाल का अभिषेक करने से भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह विधि परिवार में सकारात्मक ऊर्जा लाती है, घर में समृद्धि बढ़ाती है और जीवन में सौभाग्य का मार्ग प्रशस्त करती है।

श्री कृष्ण आरती लिरिक्स (Shree Krishna Aarti Lyrics in hindi )

आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की

गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।

श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।

लतन में ठाढ़े बनमाली;

भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक;

ललित छवि श्यामा प्यारी की॥

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।

गगन सों सुमन रासि बरसै;

बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;

अतुल रति गोप कुमारी की॥

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।

स्मरन ते होत मोह भंगा;

बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;

चरन छवि श्रीबनवारी की॥

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;

हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद;

टेर सुन दीन भिखारी की॥

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

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