जानिए, भारतीय समाज में श्राद्ध का क्‍या है महत्‍व, सबसे पहले किस नदी के तट पर किया गया श्राद्ध

जानिए, भारतीय समाज में श्राद्ध का क्‍या है महत्‍व, सबसे पहले किस नदी के तट पर किया गया श्राद्ध
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विधान है कि सोलह दिन के पितृ पक्ष में व्यक्ति को पूर्ण ब्रह्मचर्य, शुद्ध आचरण और पवित्र विचार रखना चाहिए।
नई दिल्‍ली. हमारे धर्म-कर्मों में श्राद्ध का अपना अलग महत्‍व है। आइए जानते हैं श्राद्ध मनाने के पीछे क्‍या हैं मुख्‍य कारण। पुराणों के अनुसार जब भी कोई मनुष्य मरता है उसकी आत्मा शरीर को छोड़कर एक यात्रा प्रारंभ करती है। आत्मा किस मार्ग पर जाएगी यह केवल उसके कर्मों पर निर्भर करता है। जब कोई आपका अपना शरीर छोड़कर चला जाता है तब उसके सारे क्रियाकर्म करना जरूरी होता है, क्योंकि क्रियाकर्म से ही आत्मा को शांति मिलती है।
प्रत्येक आत्मा को भोजन, पानी और मन की शांति की जरूरत होती है और उसकी यह पूर्ति सिर्फ उसके परिजन ही कर सकते हैं। कहा जाता है कि श्राद्धपक्ष में पितरों की तृप्ति जरूरी है। इस दौरान ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र व अन्य सामान भेंट करने से पितर की तृप्ति होती है। इसी दान से खुश होकर पितर श्राद्धकर्ताओं को श्रेष्ठ वरदान देते हैं। पुराण में यह भी कहा गया है कि यदि घर में कोई वृद्ध महिला है तो युवा महिला से पहले श्राद्ध कर्म करने का अधिकार उसका होगा।
शास्त्रों के अनुसार पितरों के परिवार में ज्येष्ठ या कनिष्ठ पुत्र अथवा पुत्र ही न हो तो नाती, भतीजा, भांजा पिंडदान करने के पात्र होते हैं। यह कहा गया है कि श्राद्ध से प्रसन्न पितरों के आशीर्वाद से सभी प्रकार के सांसारिक भोग और सुखों की प्राप्ति होती है। आत्मा और पितरों के मुक्ति मार्ग को श्राद्ध कहा जाता है।
विधान है कि सोलह दिन के पितृ पक्ष में व्यक्ति को पूर्ण ब्रह्मचर्य, शुद्ध आचरण और पवित्र विचार रखना चाहिए। गरुड़ पुराण के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान अमावस्या के दिन पितृगण वायु के रूप में घर के दरवाजे पर दस्तक देते हैं। वे अपने स्वजनों से श्राद्ध की इच्छा रखते हैं और उससे तृप्त होना चाहते हैं, लेकिन सूर्यास्त के बाद यदि वे निराश लौटते हैं तो श्राप देकर जाते हैं।
श्रद्धापूर्वक श्राद्ध किए जाने से पितर वर्ष भर तृप्त रहते हैं और उनकी प्रसन्नता से वंशजों को दीर्घायु, संतति, धन, विद्या, सुख एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो श्राद्ध नहीं कर पाते उनके कारण पितरों को कष्ट उठाने पड़ते हैं। ब्रह्म पुराण और गरुड़ पुराण के अनुसार श्राद्ध पक्ष में पितर की तिथि आने पर जब उन्हें अपना भोजन नहीं मिलता तो वे क्रुद्ध होकर श्राप देते हैं जिससे परिवार में मति, रीति, प्रीति, बुद्धि और लक्ष्मी का विनाश होता है।
नीचे की स्लाइड्स में जानिए, श्राद्ध में नर्मदा नदी का क्‍या है महत्‍व -
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