नई व्यवस्था का फायदा तभी होगा, जब यह व्यवस्था पारदर्शी और वरीयता पर आधारित हो

नई व्यवस्था का फायदा तभी होगा, जब यह व्यवस्था पारदर्शी और वरीयता पर आधारित हो
X
नई व्यवस्था का फायदा भी तभी होगा, जब लोग सही तरह से काम करें और व्यवस्था पार्दशी हो।
नई व्यवस्था के अमल में आने के बाद भी पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता कि इस व्यवस्था से सब कुछ ठीक-ठाक ही होगा। कई पूर्व न्यायाधीशों और कानून विशषज्ञों का मानना हैं कि नई व्यवस्था का फायदा तभी होगा, जब यह व्यवस्था पारदर्शी और वरीयता पर आधारित हो।
देश की ऊपरी अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त करने के लिए लाए गए संविधान संशोधन विधेयक को हाल ही में राष्ट्रपति ने अपनी मंजूरी दे दी। राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ ही न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) विधेयक अब कानून बन गया है। नए कानून के तहत सरकार, उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक आयोग का गठन करेगी, जो बीस साल पुराने कॉलेजियम का स्थान लेगा। छह सदस्यीय इस आयोग में देश के मुख्य न्यायाधीश सीजेआई अध्यक्ष के रूप में होंगे तथा सदस्यों में कानून मंत्री, सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीश और दो अन्य नामचीन हस्तियां होंगी। नामचीन हस्तियों का चयन प्रधानमंत्री, सीजेआई और नेता विपक्ष या लोकसभा में सबसे बड़े दल के नेता करेंगे। कानून मंत्रालय में सचिव (न्याय) आयोग के संयोजक होंगे। आयोग को संवैधानिक दर्जा हासिल होगा। आयोग के संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद पैनल के स्वरूप में छेड़छाड़ नहीं की जा सकेगी। इसमें बदलाव के लिए संविधान संशोधन करना होगा, जो कि आसान काम नहीं होगा। नई व्यवस्था के अमल में आने के बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्तियां के अलावा उनके स्थानांतरण का भी फैसला आयोग ही करेगा।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक को पहले ही हमारी संसद अपनी मंजूरी दे चुकी थी। बीते साल अगस्त में यह विधेयक संसद के दोनों सदनों में पारित हो गया था। संसद में मंजूरी मिलने के बाद, इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा गया था। जिस पर उन्होंने भी अपनी मोहर लगा दी। इससे पहले देश के 29 में से 16 राज्य विधानमंडलों ने न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों को नियुक्त करने वाली कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त करने वाले 124वें संविधान संशोधन विधेयक, 2014 को अपनी मंजूरी दे दी थी। दरअसल किसी भी संविधान संशोधन बिल के लिए कम से कम आधे राज्यों की राज्यों की रजामंदी जरूरी होती है। इसके बिना यह प्रक्रिया पूरी नहीं मानी जाती। न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन के बाद उम्मीद है कि ऊपरी अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में पहले से ज्यादा पारदर्शिता और तेजी आएगी। एक अनुमान के मुताबिक कॉलेजियम में होने वाले मतभेदों के चलते फिलवक्त देश भर के उच्च न्यायालयों में 200 से ज्यादा न्यायाधीशों के पद खाली हैं। जाहिर है, इन पदों पर नई नियुक्ति न हो पाने की वजह से ही यह अदालतें अपना काम ठीक ढंग से नहीं कर पा रही हैं।
दरअसल, हमारे देश में लंबे समय से उच्चतर अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया को और ज्यादा पारदर्शी और समावेशी बनाने की बहस चल रही थी। दुनिया भर में किसी विकसित लोकतंत्र में ऐसी कोई दूसरी मिसाल देखने को नहीं मिलती, जहां न्यायधीशों को खुद न्यायाधीश ही नियुक्त करते हों। यानी, उसमें विधायिका या कार्यपालिका की कोई भूमिका न रहती हो। हालांकि साल 1993 से पहले, हमारे यहां सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विधि मंत्रालय द्वारा भेजे गए नामों पर विचार करते थे, लेकिन कॉलेजियम सिस्टम की शुरुआत के बाद सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के अलावा चार अन्य वरिष्ट न्यायाधीश फैसला लेने लगे। एक लिहाज से देखा जाए, तो इस नियुक्ति प्रक्रिया से शक्ति का विकेंद्रीकरण हुआ, लेकिन पहले के सिस्टम और बाद में कॉलेजियम सिस्टम दोनों में भी वक्त के साथ खामियां दिखने लगीं। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति, न्यायाधीशों द्वारा करने की मौजूदा प्रणाली ने न्यायपालिका में आहिस्ता-आहिस्ता संरक्षणवाद और भ्रष्टाचार का रूप ले लिया है। दीगर क्षेत्रों की तरह अब वहां भी पक्षपात और भ्रष्टाचार का बोलवाला दिखने लगा है। चयनमंडल के अधिकार क्षेत्र की मौजूदा प्रक्रिया के दोषपूर्ण होने की सबसे गंभीर मिसाल पिछले दिनों पहले कोलकाता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सौमित्र सेन और बाद में जस्टिस पीडी दिनकरन के रूप में हमारे सामने आई, जिन पर भ्रष्टाचार के इल्जाम में संसद के अंदर महाभियोग की प्रक्रिया भी चली। यही कुछ वजह थीं, जिसके चलते कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठने लगे थे और नियुक्ति प्रक्रिया को बदला जाना जरूरी हो गया था। न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रस्तावित प्रणाली से अब न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों समान रूप से उत्तरदायी होंगी।
नई व्यवस्था के अमल में आने के बाद भी पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता कि इस व्यवस्था से सब कुछ ठीक ठाक ही होगा। नई व्यवस्था को लेकर इस बात की आशंका बनी रहेगी कि कही अब सरकार की दखलअंदाजी न बढ़ जाए। बहराल इस कानून से न्यायिक क्षेत्र में कितना बदलाव आएगा, यह तो आने वाला वक्त ही बतलाएगा। कई पूर्व न्यायधीशों और कानून विशषज्ञों का मानना हैं कि नई व्यवस्था का फायदा तभी होगा, जब यह व्यवस्था पूरी तरह से पारदर्शी और वरीयता पारदर्शी और वरीयता क्रम के आधार पर नहीं होगा, तब तलक व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं आएगा। क्योंकि यह जानी समझी बात हैं कि चाहे कोई सा भी कानून आ जाए, लेकिन सबसे मबत्वपूर्ण बात यह है कि व्यवस्था में कौन बैठा हुआ है। नई व्यवस्था का फायदा भी तभी होगा, जब लोग सही तरह से काम करें और व्यवस्था पार्दशी हो।
खबरों की अपडेट पाने के लिए लाइक करें हमारे इस फेसबुक पेज को फेसबुक हरिभूमि, हमें फॉलो करें ट्विटर और पिंटरेस्‍ट पर-

और पढ़े: Haryana News | Chhattisgarh News | MP News | Aaj Ka Rashifal | Jokes | Haryana Video News | Haryana News App

WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo

Tags

Next Story