मिशन मंगल: लद्दाख की त्सो कार घाटी में अनुसंधान कर रहे स्कॉलर; ISRO ने बनाए खास HOPE

मिशन मंगल: लद्दाख की त्सो कार घाटी पर अनुसंधान; ISRO ने बनाए खास डोम
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मिशन मंगल: लद्दाख की त्सो कार घाटी पर अनुसंधान; ISRO ने बनाए खास डोम 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 4 अन्य संस्थाओं की मदद से मंगल मिशन पर काम शुरू कर दिया है। लद्दाख की त्सो कार घाटी पर 1 अगस्त से मंगल गृह की तहर बने डोम में खास प्रयोग किए गए। पढ़ें पूरी खबर

Space Research Tso Kar Valley Ladakh: लद्दाख की त्सो कार घाटी भारत की मंगल मिशन की गवाह बन रही है। प्रोटोप्लैनेट नामक प्राइवेट अंतरिक्ष अनुसंधान कंपनी ने यहां हिमालयन आउटपोस्ट फॉर प्लैनेटरी एक्सप्लोरेशन (HOPE) स्थापित कर मंगल मिशन के लिए जरूरी प्रयोग करा रही है। यह भारत का पहला एनालॉग मिशन है, जो चंद्रमा और मंगल की परिस्थितियों से मिलता जुलता है।

प्रोटोप्लैनेट नामक प्राइवेट अंतरिक्ष अनुसंधान कंपनी ने यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), महिंद्रा और अमेरिका की मार्स सोसाइटी के सहयोग से शुरू किया है। इसके लिए पीएचडी स्कॉलर राहुल मोगलापल्ली और यमन अकोट को 150 प्रतिभागियों में कड़ी प्रतिष्पर्धा के बीच चुना गया है। वह 1 अगस्त से 10 दिन तक वे होप में रहे। इस दौरान वह पूरी दुनिया से अलग थलग रहे। 30 किमी दूर बेस टीम से सैटेलाइट के जरिए नजर रखी जा रही थी।

क्वार्ट्ज चट्टानों के नमूने जुटाए

त्सो कार की कठिन मौसम परिस्थितियों में इस दौरान उन्हें काफी परेशानी हुई। इसके बावजूद उन्होंने 9वें दिन तक एक्स्ट्रा-व्हीकुलर एक्टिविटीज (EVA) कीं। 500 मीटर के दायरे में क्वार्ट्ज चट्टानों के नमूने एकत्र किए। 11 अगस्त को जब बाहर निकले तो कैंपसाइट पर चाय पी। राहुल अब अमेरिका और यमन स्कॉटलैंड अपनी पीएचडी पूरी करने जाएंगे।

त्सो कार घाटी में मंगल जैसी परिस्थितियां

लद्दाख की त्सो कार घाटी मंगल ग्रह की परिस्थितियों से थोड़ा मिलती-जुलती है। हिमालय की 4,530 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित यह घाटी ठंडी, शुष्क और नमकीली मिट्टी वाली है। यहां मंगल की तरह ही कम वायुदाब, तेज अल्ट्रावायलेट किरणें और तापमान में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। ऑक्सीजन की कमी और शुष्क जलवायु त्सो कार घाटी को अंतरिक्ष मिशन के लिए अनकूल बनाती है।

मंगल का नकली घर है होप

  • हिमालयन आउटपोस्ट फॉर प्लैनेटरी एक्सप्लोरेशन (HOPE) दो गुंबदनुमा मॉड्यूल्स है। एक का नाम फोबोस और दूसरे का डिमोस है। फोबोस 8 मीटर और डिमोस 5 मीटर चौड़ा है। इनकी उंचाई 18 फीट है। खास पॉलिमर और फाइबरग्लास खिड़कियों से बने ये गुंबद अंतरिक्ष जैसी परिस्थितियों से सुरक्षित रखते हैं।
  • डिमोस में एक एयरलॉक है, जो अंतरिक्ष यात्रियों के बाहर निकलने (EVA) के बाद दबाव को नियंत्रित करता है. इसमें एक बायोडाइजेस्टर भी है, जो मानव कचरे को 90% तक साफ कर पानी को खेती के लिए दोबारा इस्तेमाल करने योग्य बनाता है.
  • फोबोस के तीन हिस्से हैं। एक में चालक दल के सोता है और नमूने एकत्रित करता है। जबकि, दूसरे में रसोई और EVA के लिए नमूने तैयार किए जाते हैं। बिजली के लिए सौर पैनल और बैटरी भी है। यहां 10 दिनों के लिए 80 लीटर पेयजल और 2,500 लीटर रोजमर्रा के उपयोग का पानी स्टोर किया गया है।
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