नेताजी बोस जासूसी मामला, परिजनों ने मोदी सरकार से की जांच की मांग

नेताजी बोस जासूसी मामला, परिजनों ने मोदी सरकार से की जांच की मांग
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केंद्र सरकार ने करीब दो दशकों तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की और उनके रिश्तेदारों की जासूसी करवाई थी।

नई दिल्ली. नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जासूसी का खुलासा होने पर उनके पोते चंद्रकुमार बोस ने केंद्र सरकार से जांच की मांग की है। गौरतलब है कि इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) की फाइलों से नेताजी की जासूसी का खुलासा हुआ है।

जिसके मुताबिक केंद्र सरकार ने करीब दो दशकों तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की और उनके रिश्तेदारों की जासूसी करवाई थी। ओरिजिनल फाइलों को पश्चिम बंगाल सरकार ने अभी भी गुप्त रखा है। इन फाइलों पर सबसे पहली नजर इस साल जनवरी में अनुज धर की पड़ी। अनुज का कहना है कि ये फाइलें सरकारी विभाग की गलती से गुप्त सूची से बाहर आई हैं।

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फाइलों से मिली जानकारी के मुताबिक 1948 से 1968 के बीच सरकार ने सुभाष चंद्र बोस के परिवार पर निगरानी रखी थी। इन 20 साल में से 16 साल तक जवाहरल लाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे और आईबी उन्हीं के अंतर्गत काम करती थी। आईबी ने बोस के कोलकाता स्थित दो घरों की निगरानी की थी।
दरअसल बोस के घरों की जानकारी ब्रटिश राज के दौरान शुरू की गई थी। लेकिन देश आजाद होने के बाद आईबी भी नेताजी को घरों की जासूसी करती रही। आईबी नेताजी के मौत के करीब बीस साल बाद तक उनके परिजनों पर नजर रखती रही। इंटरसेप्टिंग और बोस परिवार की चिट्ठियों पर नजर रखने के अलावा, आईबी के जासूसों ने उनकी स्थानीय और विदेश यात्रा की भी जासूसी की।
ऐसा करने के पीछे आईबी का क्या मकसद हो सकता है यह कहना तो मुश्किल हैं लेकिन यह सब करने के पीछे की सरकार की मंशा यह जानने की हो सकती है कि नेताजी के परिजन किस से मुलाकात करते हैं। अधिकारी आईबी हेडक्वार्टर को इसकी जानकारी उपलब्ध कराते थे। जिसे उस दौरान सिक्योरिटी कंट्रोल' कहा जाता था।
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