स्टैच्यू ऑफ यूनिटी और वंशवादी प्रतीक

किसी को उम्मीद नहीं थी कि इतिहास के गर्त में खो चुके सरदार वल्लभ भाई पटेल आज बहस का विषय बन जाएंगे। लोग पटेल ही नहीं पटेल के पुश्तैनी घर तक को याद करने लगे जो इलाहाबाद स्थित पंडित जवाहर नेहरू के पुश्तैनी मकान आनंद भवन के मुकाबले र्जजर स्थिति में है। इसे चाहे राजनीति कहें, या कुछ और। पटेल को नरेंद्र मोदी ने बहस के केंद्र में लाया है। एक अनोखे तरीके से जिसका जवाब कांग्रेस के पास नहीं है। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी नेहरू परिवार के हर उस प्रोजेक्ट, पुल, नहर, भवनों को पीछे कर देगा जो पिछले पचास सालों में मुगलों की परंपरा के हिसाब से नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर बनाया गया है। जिस पटेल को कांग्रेस भूला चुकी थी, जिस पटेल को कम्युनिस्ट हिंदूवादी कह निंदा करते थे, उन्हें सेकुलर बताया जा रहा है। उन्हें कांग्रेस का बताया जा रहा है।नरेंद्र मोदी का यह मास्टर स्ट्रोक है। इतिहास लेखन के वामपंथी, गांधीवादी, दक्षिणपंथी और सबआल्टर्न स्कूल जिन्होंने पटेल को इतिहास लेखन में सही जगह नहीं दिया, नए सिरे से विचार करने को मजबूर हैं। इतिहासकारों के एक किसी को उम्मीद नहीं थी कि इतिहास के गर्त में खो चुके सरदार वल्लभ भाई पटेल आज बहस का विषय बन जाएंगे। लोग पटेल ही नहीं पटेल के पुश्तैनी घर तक को याद करने लगे जो इलाहाबाद स्थित पंडित जवाहर नेहरू के पुश्तैनी मकान आनंद भवन के मुकाबले र्जजर स्थिति में है। इसे चाहे राजनीति कहें, या कुछ और। पटेल को नरेंद्र मोदी ने बहस के केंद्र में लाया है। एक अनोखे तरीके से जिसका जवाब कांग्रेस के पास नहीं है। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी नेहरू परिवार के हर उस प्रोजेक्ट, पुल, नहर, भवनों को पीछे कर देगा जो पिछले पचास सालों में मुगलों की परंपरा के हिसाब से नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर बनाया गया है। जिस पटेल को कांग्रेस भूला चुकी थी, जिस पटेल को कम्युनिस्ट हिंदूवादी कह निंदा करते थे, उन्हें सेकुलर बताया जा रहा है। उन्हें कांग्रेस का बताया जा रहा है।
नरेंद्र मोदी का यह मास्टर स्ट्रोक है। इतिहास लेखन के वामपंथी, गांधीवादी, दक्षिणपंथी और सबआल्टर्न स्कूल जिन्होंने पटेल को इतिहास लेखन में सही जगह नहीं दिया, नए सिरे से विचार करने को मजबूर हैं। इतिहासकारों के एक स्कूल ने आजादी के बाद इतिहास लेखन में नेहरू का गुणगान किया। नेहरू को स्थापित करने के लिए उन्होंने सुभाष के समाजवाद को अपरिपक्व कहा था। सरदार पटेल को तो कहीं जगह ही नहीं मिली। इतिहास का हर स्कूल पटेल को पूरी तरह से नजरअंदाज करता रहा है, लेकिन स्टेच्यू ऑफ यूनिटी देश के इतिहासकारों को अब मजबूर करेगी। वो पटेल पर बहस करेंगे। उन्हें नए सिरे से स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास लिख पट कि स्ी को उम्मीद नहीं थी कि इतिहास के गर्त में खो चुके सरदार वल्लभ भाई पटेल आज बहस का विषय बन जाएंगे। लोग पटेल ही नहीं पटेल के पुश्तैनी घर तक को याद करने लगे जो इलाहाबाद स्थित पंडित जवाहर नेहरू के पुश्तैनी मकान आनंद भवन के मुकाबले र्जजर स्थिति में है। इसे चाहे राजनीति कहें, या कुछ और। पटेल को नरेंद्र मोदी ने बहस के केंद्र में लाया है। एक अनोखे तरीके से जिसका जवाब कांग्रेस के पास नहीं है। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी नेहरू परिवार के हर उस प्रोजेक्ट, पुल, नहर, भवनों को पीछे कर देगा जो पिछले पचास सालों में मुगलों की परंपरा के हिसाब से नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर बनाया गया है। जिस पटेल को कांग्रेस भूला चुकी थी, जिस पटेल को कम्युनिस्ट हिंदूवादी कह निंदा करते थे, उन्हें सेकुलर बताया जा रहा है। उन्हें कांग्रेस का बताया जा रहा है।नरेंद्र मोदी का यह मास्टर स्ट्रोक है। इतिहास लेखन के वामपंथी, गांधीवादी, दक्षिणपंथी और सबआल्टर्न स्कूल जिन्होंने पटेल को इतिहास लेखन में सही जगह नहीं दिया, नए सिरे से विचार करने को मजबूर हैं। इतिहासकारों के एक स्कूल ने आजादी के बाद इतिहास लेखन में नेहरू का गुणगान किया। नेहरू को स्थापित करने के लिए उन्होंने सुभाष के समाजवाद को अपरिपक्व कहा था। सरदार पटेल को तो कहीं जगह ही नहीं मिली। इतिहास का हर स्कूल पटेल को पूरी तरह से नजरअंदाज करता रहा है, लेकिन स्टेच्यू ऑफ यूनिटी देश के इतिहासकारों को अब मजबूर करेगी। वो पटेल पर बहस करेंगे।
उन्हें नए सिरे से स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास लिख पटेल को उचित जगह देने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
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