उत्तर प्रदेश: अस्पतालों में संसाधनों का टोटा, लेकिन स्वास्थ्य विभाग नहीं खर्च कर पाया 56% बजट

अस्पतालों में संसाधनों का टोटा, लेकिन स्वास्थ्य विभाग नहीं खर्च कर पाया 56% बजट
X

बजट खर्च न होने का सबसे गंभीर प्रभाव उन योजनाओं पर पड़ा है जो सीधे जनता से जुड़ी हैं।

वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए प्रदेश सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं को विश्वस्तरीय बनाने और ग्रामीण क्षेत्रों तक चिकित्सा पहुचाने के उद्देश्य से 33,019.56 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया था।

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने के सरकार के प्रयासों को विभागीय सुस्ती ने बड़ा झटका दिया है। वित्तीय वर्ष 2025-26 के समापन की ओर बढ़ने के बावजूद, स्वास्थ्य विभाग को आवंटित कुल बजट का 56 प्रतिशत हिस्सा अब तक खर्च नहीं किया जा सका है।

रिपोर्टों के अनुसार, विभाग के पास उपलब्ध 33,019.56 करोड़ रुपये में से आधे से अधिक राशि बिना इस्तेमाल के पड़ी है, जिससे राज्य की कई महत्वपूर्ण स्वास्थ्य योजनाएं और बुनियादी ढांचे का विकास अधर में लटक गया है।

अरबों का बजट फाइलों में हुआ कैद

उत्तर प्रदेश सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांति लाने के उद्देश्य से इस वर्ष 33,019 करोड़ रुपये से अधिक का भारी-भरकम बजट आवंटित किया था।

आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि विभाग ने 24,831 करोड़ रुपये के खर्च की प्रशासनिक मंजूरी तो दे दी, लेकिन धरातल पर मात्र 7,508.74 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए हैं।

इसका सीधा अर्थ है कि बजट का एक बहुत बड़ा हिस्सा केवल कागजी कार्यवाही और टेंडर प्रक्रियाओं के जाल में उलझकर रह गया है।

कैशलेस और इमरजेंसी सेवाएं पड़ीं ठंडी

बजट खर्च न होने का सबसे गंभीर प्रभाव उन योजनाओं पर पड़ा है जो सीधे जनता से जुड़ी हैं। राज्य कर्मचारियों के लिए शुरू की गई 'कैशलेस इलाज योजना' के लिए 150 करोड़ रुपये रखे गए थे, लेकिन विभाग अब तक केवल 50 करोड़ रुपये ही इस्तेमाल कर पाया है।

इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि इमरजेंसी स्वास्थ्य सेवाओं के संचालन के लिए दिए गए 155 करोड़ रुपये के फंड में से विभाग ने एक रुपया भी खर्च नहीं किया है, जिससे आपातकालीन चिकित्सा व्यवस्था पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

निर्माण कार्य और चिकित्सा उपकरणों की खरीद में देरी

यूपी के विभिन्न जिलों में बन रहे नए मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों के सुदृढ़ीकरण के लिए जारी राशि का सही समय पर उपयोग नहीं हो पा रहा है। खाद्य एवं औषधि नियंत्रण प्रशासन जैसी महत्वपूर्ण इकाई, जिसके लिए 1,080.84 करोड़ रुपये का प्रावधान था, वह भी बजट खर्च करने की दौड़ में काफी पीछे है।

बजट उपयोग की इस धीमी रफ्तार के कारण अस्पतालों में नई मशीनों की खरीद, वार्डों का विस्तार और दवाओं की निर्बाध आपूर्ति जैसी प्रक्रियाएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।

लापरवाही और जवाबदेही पर उठते सवाल

विभागीय सूत्रों का मानना है कि बजट खर्च न होने का मुख्य कारण अधिकारियों द्वारा समय पर निर्णय न लेना और लालफीताशाही है।

जब प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हों, तब इतने बड़े फंड का उपयोग न हो पाना प्रशासनिक विफलता को दर्शाता है।

यदि शेष वित्तीय अवधि में यह राशि खर्च नहीं की गई, तो न केवल योजनाएं अधूरी रहेंगी, बल्कि अगले वर्ष के बजट आवंटन पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo

Tags

Next Story