यूपी BJP में 'छाता रणनीति': पंकज चौधरी होंगे यूपी बीजेपी के नये सेनापति? कुर्मी कार्ड से 2027 में हैट्रिक लगाने की फिराक में भाजपा

पंकज चौधरी होंगे यूपी बीजेपी के नये सेनापति? कुर्मी कार्ड से 2027 में हैट्रिक लगाने की फिराक में भाजपा
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पंकज चौधरी 1991 में, पहली बार महराजगंज लोकसभा सीट से सांसद चुना गया।

यह कदम 2027 चुनाव से पहले कुर्मी वोट बैंक को सीधे साधने, और सहयोगी अपना दल पर निर्भरता कम करने की बीजेपी की व्यापक सामाजिक इंजीनियरिंग रणनीति का हिस्सा है।

लखनऊ : उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अगले अध्यक्ष के लिए केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री और 7 बार के सांसद पंकज चौधरी का नाम लगभग फाइनल माना जा रहा है। यह कदम 2027 के विधानसभा चुनावों को देखते हुए संगठन को एक नई दिशा देने के लिए उठाया जा रहा है।

अचानक रेस में आए पंकज चौधरी और हाईकमान का फैसला

यूपी बीजेपी अध्यक्ष पद की दौड़ में पहले कई बड़े नाम शामिल थे। शुरुआती चर्चा में पार्टी के भीतर से कई वरिष्ठ नेताओं के नाम सामने आए, जिनमें प्रमुख रूप से सुब्रत पाठक (कन्नौज के पूर्व सांसद), सतीश गौतम (अलीगढ़ से सांसद), और संगठन के अनुभवी नेता कैबिनेट मंत्री धर्मपाल सिंह के नाम शामिल थे।

सुब्रत पाठक को एक जुझारू युवा ब्राह्मण चेहरे के रूप में देखा जा रहा था, जबकि सतीश गौतम को जाटव समुदाय से आने के कारण दलित कार्ड के तौर पर देखा गया, वही जाटों समाज से ही आने वाली साध्वी निरंजन ज्योति का भी नाम खूब सुर्खियों में था।

हालांकि, इन नामों के बीच अचानक केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी का नाम तेजी से उभरा और फाइनल हो गया। इस अचानक बदलाव के पीछे की सबसे बड़ी वजह कुर्मी वोट बैंक को साधने की रणनीति है। बीजेपी नेतृत्व ने महसूस किया कि मौजूदा राजनीतिक हालात में एक ऐसा मजबूत ओबीसी चेहरा चाहिए जो न सिर्फ सांसद हो, बल्कि जिसका संगठन पर भी गहरी पकड़ हो।

बीएल संतोष की बैठक - कुर्मी कार्ड पर मुहर

पंकज चौधरी के नाम को अंतिम रूप देने से पहले, राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रदेश के अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ महत्वपूर्ण बैठकें कीं। इन बैठकों में मुख्य फोकस प्रदेश की सामाजिक और चुनावी चुनौतियों पर रहा।

सूत्रों के अनुसार, बैठक में इस बात पर सहमति बनी कि 2027 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए अध्यक्ष पद पर एक मजबूत कुर्मी नेता को बिठाया जाए।

इस निर्णय का सीधा मतलब है कि बीजेपी अब पूरी तरह से कुर्मी वोट बैंक को अपने पक्ष में मजबूती से लाने का प्रयास करेगी। यह वोट बैंक लोकसभा चुनाव में कुछ हद तक समाजवादी पार्टी की ओर शिफ्ट हुआ था।

बीएल संतोष की उपस्थिति और इस फैसले ने स्पष्ट कर दिया है कि यह चयन केवल प्रदेश स्तर का नहीं, बल्कि सीधे केंद्रीय हाईकमान की रणनीति का हिस्सा है।

क्या अपना दल पर विश्वास नहीं रहा?

पंकज चौधरी को अध्यक्ष बनाने के पीछे यह संकेत भी निहित है कि बीजेपी अब कुर्मी वोटों के लिए पूरी तरह से अपने सहयोगी दल अपना दल (एस) और उसकी नेता अनुप्रिया पटेल पर निर्भर नहीं रहना चाहती।

लोकसभा चुनाव 2024 में, कुर्मी बहुल क्षेत्रों में समाजवादी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि अपना दल (एस) कुर्मी वोट बैंक के इस बदलाव को प्रभावी ढंग से रोक नहीं पाई या बीजेपी के पक्ष में पूरी तरह कन्वर्ट नहीं कर पाई।

बीजेपी अब ओबीसी वोटों को साधने के लिए सीधे तौर पर अपने संगठन का उपयोग करना चाहती है। पंकज चौधरी जैसे कद्दावर और 7 बार के सांसद कुर्मी नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर, बीजेपी ने यह संदेश दिया है कि वह कुर्मी समाज को अपने मुख्यधारा के नेतृत्व में उच्च स्थान दे रही है, जिससे वह अनुप्रिया पटेल के प्रभाव से अलग होकर भी इस समुदाय के वोटों को अपने पाले में खींच सके।

यह भाजपा के अपने 'कोर ओबीसी' नेतृत्व को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

बीजेपी का सामाजिक समीकरण - छाता रणनीति

पंकज चौधरी की ताजपोसी बीजेपी की उत्तर प्रदेश में 'सामाजिक छाता' रणनीति को और मजबूत करती है, जिसके तहत विभिन्न प्रमुख जातियों के प्रभावशाली नेताओं को शीर्ष नेतृत्व में जगह दी गई है: क्षत्रिय चेहरे के रूप में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रूप में।

ब्राह्मण चेहरे के रूप में उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक तो पिछड़ा समाज मौर्य/शाक्य/कुशवाहा में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के रूप में। पिछड़ा समाज कुर्मी चेहरे के रूप में अब प्रदेश अध्यक्ष पंकज चौधरी।

यह संतुलन दिखाता है कि बीजेपी संगठन और सरकार दोनों में सभी प्रमुख जातीय समूहों को प्रतिनिधित्व देकर 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए मजबूत नींव तैयार कर रही है।

पंकज चौधरी - राजनीतिक सफर और पारिवारिक पृष्ठभूमि

पंकज चौधरी का राजनीतिक सफर लगभग 35 साल पुराना है और यह ज़मीनी स्तर से शुरू हुआ है। उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा 1989 में गोरखपुर नगर निगम के पार्षद के चुनाव से शुरू की थी और बाद में डिप्टी मेयर भी बने, साल 1991 में, उन्हें पहली बार महराजगंज लोकसभा सीट से सांसद चुना गया।

वह इस सीट से अब तक 7 बार (1991, 1996, 1998, 2004, 2014, 2019, और 2024) लोकसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, जो उनकी गहरी जनाधार को दर्शाता है। 7 जुलाई 2021 को, उन्हें मोदी कैबिनेट में शामिल किया गया और वह वर्तमान में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री के रूप में कार्यरत हैं।

उनके परिवार का महाराजगंज जिले की स्थानीय राजनीति में गहरा प्रभाव रहा है। उनके पिता स्व. भगवती प्रसाद चौधरी भी क्षेत्र के सम्मानित व्यक्ति थे। उनकी पत्नी भाग्यश्री एक कंपनी निदेशक हैं। उनके परिवार ने लंबे समय तक जिला परिषद की राजनीति पर भी अपना दबदबा बनाए रखा है।

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