Unnao Rape Case: कुलदीप सेंगर की सजा निलंबन पर रोक, दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला पलटा

अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट विस्तृत सुनवाई करेगा।
नई दिल्ली : देश की सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को एक बड़ा फैसला सुनाते हुए उन्नाव दुष्कर्म मामले के दोषी और पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सजा निलंबित करने के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है।
जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने सीबीआई की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह कदम उठाया।
हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने सेंगर को यह कहते हुए जमानत दे दी थी कि वह साढ़े सात साल की सजा काट चुका है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता और पीड़ित परिवार की सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए इस राहत पर फिलहाल ब्रेक लगा दिया है।
दिल्ली हाईकोर्ट का विवादित फैसला और सीबीआई की दलील
23 दिसंबर 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट ने कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद की सजा को उसकी अपील लंबित रहने तक निलंबित कर दिया था।
हाईकोर्ट का तर्क था कि सेंगर एक 'लोक सेवक' नहीं है, इसलिए उस पर POCSO एक्ट की धारा 5 के बजाय सामान्य धाराओं में विचार होना चाहिए। इस फैसले के खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सीबीआई ने तर्क दिया कि अपराध के समय सेंगर विधायक था, जो एक लोक सेवक की श्रेणी में आता है, और हाईकोर्ट ने इस तथ्य की अनदेखी कर उसे जमानत देने में गलती की है।
इंडिया गेट पर पीड़ित परिवार का भावुक प्रदर्शन
जैसे ही दिल्ली हाईकोर्ट से सेंगर की सजा निलंबित होने की खबर आई, पीड़ित परिवार और सामाजिक कार्यकर्ताओं में भारी रोष फैल गया।
दुष्कर्म पीड़िता, उसकी मां और महिला अधिकार कार्यकर्ता योगिता भयाना ने दिल्ली के इंडिया गेट पर धरना दिया। पीड़िता ने भावुक होते हुए कहा कि अगर अपराधी बाहर आएगा तो उसका पूरा परिवार असुरक्षित हो जाएगा।
प्रदर्शन के दौरान पीड़िता ने यह भी आरोप लगाया कि आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2027 को देखते हुए सेंगर को राजनीतिक लाभ पहुँचाने की कोशिश की जा रही है। इस प्रदर्शन की तस्वीरों और वीडियो ने सोशल मीडिया पर न्याय प्रणाली को लेकर नई बहस छेड़ दी थी।
कौन है कुलदीप सिंह सेंगर? अपराध की पूरी कुंडली
कुलदीप सिंह सेंगर उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले की बांगरमऊ सीट से चार बार विधायक रह चुका है। वह पहले बसपा और सपा में रहा, फिर भाजपा में शामिल हुआ। 2017 में एक नाबालिग लड़की ने उस पर दुष्कर्म का आरोप लगाया था।
मामला तब राष्ट्रीय स्तर पर गरमाया जब पीड़िता ने मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह की कोशिश की और उसके पिता की पुलिस हिरासत में संदिग्ध मौत हो गई।
2019 में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मामला दिल्ली ट्रांसफर हुआ, जहाँ तीस हजारी कोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई। इसके बाद भाजपा ने उसे पार्टी से निष्कासित कर दिया और उसकी विधानसभा सदस्यता भी रद्द हो गई।
जेल में ही रहेगा सेंगर: अन्य मामलों का शिकंजा
भले ही दिल्ली हाईकोर्ट ने दुष्कर्म मामले में उसे जमानत दे दी थी, लेकिन कुलदीप सिंह सेंगर अभी जेल से बाहर नहीं आ पाता। दरअसल, वह पीड़िता के पिता की हिरासत में हुई मौत के मामले में भी 10 साल की सजा काट रहा है।
उस मामले में उसे अभी तक कोई राहत नहीं मिली है। सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश के बाद अब दुष्कर्म मामले में भी उसकी रिहाई के रास्ते बंद हो गए हैं।
पीड़िता का डर और सुरक्षा की मांग
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से ठीक पहले पीड़िता ने एक बार फिर अपनी सुरक्षा को लेकर डर जाहिर किया था। उसने बताया कि उसके परिवार के सदस्यों और गवाहों की सुरक्षा कम कर दी गई है।
पीड़िता का कहना था कि सेंगर का रसूख इतना ज्यादा है कि बाहर आने पर वह गवाहों को प्रभावित कर सकता है और उसके बच्चों की जान को खतरा हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इन चिंताओं को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाना उचित समझा।
आगामी घटनाक्रम और कानूनी पेंच
अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट विस्तृत सुनवाई करेगा। कोर्ट यह तय करेगा कि क्या एक विधायक को 'लोक सेवक' मानकर POCSO की कठोर धाराओं के तहत सजा को बरकरार रखा जाना चाहिए या नहीं।
फिलहाल, सर्वोच्च अदालत के इस हस्तक्षेप ने पीड़ित परिवार को एक बड़ी उम्मीद दी है और कुलदीप सेंगर की कानूनी मुश्किलें फिर से बढ़ा दी हैं।
