अब क्या होगा: प्रेम विवाह करके आईं बहुओं के लिए मुश्किल बना मतदाता सूची सत्यापन, यूपी के दर्जनों जिलों में फंसा SIR अभियान

प्रेम विवाह करके आईं बहुओं के लिए मुश्किल बना मतदाता सूची सत्यापन, यूपी के दर्जनों जिलों में फंसा SIR अभियान
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बूथ लेवल अधिकारियों को इस जटिल स्थिति से निपटने में सबसे ज़्यादा मशक्कत करनी पड़ रही है।

सत्यापन के लिए मायके की 2003 की पुरानी मतदाता जानकारी देना अनिवार्य है, लेकिन मायके वालों से संबंध टूटने के कारण ये महिलाएं जरूरी दस्तावेज़ नहीं जुटा पा रही हैं, जिससे दर्जनों परिवारों का सत्यापन बाधित हो गया है।

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के कई जिलों में इन दिनों चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान के दौरान एक अजीबोगरीब समस्या सामने आ रही है। प्रेम विवाह करके आईं दर्जनों विवाहित महिलाओं का मतदाता सूची में नाम सत्यापित करने में निर्वाचन आयोग के अधिकारियों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

सत्यापन के लिए मायके की पुरानी मतदाता जानकारी की अनिवार्यता और मायके वालों से टूटे हुए संबंधों के कारण यह प्रक्रिया ठप पड़ गई है, जिससे बीएलओ और संबंधित परिवार दोनों ही परेशान हैं।

मायके के रिकॉर्ड की अनिवार्यता बनी मुसीबत

निर्वाचन आयोग ने विवाहित महिलाओं के सत्यापन के लिए वर्ष 2003 की मतदाता सूची से संबंधित जानकारी अनिवार्य कर दी है। इसका मतलब है कि विवाह के बाद पति के घर आई बहुओं को अपने मायके की 2003 की मतदाता सूची में अपने माता-पिता के नाम और उनके विवरण का प्रमाण देना होगा।

प्रेम विवाह करके आईं कई महिलाएं सालों पहले मायके से संपर्क तोड़ चुकी हैं या उनके परिवार ने उनसे संबंध विच्छेद कर लिया है। ऐसे में, इन महिलाओं के लिए मायके से 2003 के मतदाता रिकॉर्ड जैसी संवेदनशील जानकारी मांगना असंभव हो गया है।

वाराणसी, प्रयागराज, अलीगढ़ और महराजगंज जैसे जिलों में ऐसे मामले बड़ी संख्या में सामने आए हैं, जहा महिलाएं अपने नाम की पुष्टि के लिए आवश्यक दस्तावेज जुटा नहीं पा रही हैं।

मायके वालों की बेरुखी और दस्तावेजी सबूत का अभाव

सबसे बड़ी दिक्कत तब आती है जब मायके वाले खुद ही जानकारी देने से इनकार कर देते हैं। कई मामलों में, प्रेम विवाह के कारण परिवार की नाराजगी इतनी गहरी है कि वे बेटी को किसी भी तरह की मदद, यहाँ तक कि एक दस्तावेज की जानकारी भी नहीं देना चाहते।

इसके अलावा, कई बहुएं दूसरे जिलों से आई हैं और उनके पास इतने पुराने रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं। बीएलओ को फॉर्म में जरूरी जानकारी खाली छोड़नी पड़ रही है, जिससे उनके फॉर्म अधूरे माने जा रहे हैं।

नोएडा, बदायूं और बस्ती जैसे जिलों में भी यह चुनौती साफ दिखाई दे रही है, जहाँ वर्षों पहले घर छोड़ने वाली युवतियों को EPIC ID के लिए अपने माता-पिता से संपर्क करने पर मजबूर होना पड़ रहा है।

तकनीकी गड़बड़ियों और बीएलओ की परेशानी

इस सत्यापन प्रक्रिया में सिर्फ सामाजिक नहीं, बल्कि तकनीकी दिक्कतें भी आ रही हैं। मतदाता सूची में नाम गायब होना, एक ही परिवार के सदस्यों की भाग संख्या और क्रम संख्या बदल जाना, या पति के नाम की जगह किसी और का नाम गलती से दर्ज हो जाना आम समस्याएं बन गई हैं।

बूथ लेवल अधिकारियों (BLO) को इस जटिल स्थिति से निपटने में सबसे ज़्यादा मशक्कत करनी पड़ रही है। उन्हें कई बार खुद ही रिश्तेदारों की मतदाता संख्या, पुरानी रिकॉर्ड और दूसरे जिलों की वोटर लिस्ट खंगालनी पड़ रही है, ताकि किसी तरह फॉर्मों का सत्यापन पूरा किया जा सके।

अधिकारियों का कहना है कि अगर निर्वाचन आयोग 2003 की अनिवार्यता में कुछ छूट नहीं देता है, तो हजारों विवाहित महिलाओं के नाम मतदाता सूची में जोड़ने की प्रक्रिया बाधित हो सकती है।


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