बिहार चुनाव 2025: मगध का परिणाम तय करेगा अवध की भावी राजनीति का समीकरण- पूर्वांचल पर गहरा असर

मगध का परिणाम तय करेगा अवध की भावी राजनीति का समीकरण- पूर्वांचल पर गहरा असर
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बिहार में NDA की जीत या हार यूपी के सियासत पर गहरी छाप छोड़ेगी।

यूपी के बलिया, गाजीपुर से सटे बिहार के बक्सर, रोहतास जैसे सीमावर्ती जिलों में सफल होने वाले जातीय समीकरण सीधे तौर पर यूपी की क्षेत्रीय पार्टियों की रणनीति तय करेंगे।

लखनऊ डेस्क : बिहार के नतीजों पर पूर्वांचल की राजनीतिक निर्भरता और सीमावर्ती जिलों का समीकरण उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से यानी पूर्वांचल की निगाहें इस समय बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों पर टिकी हुई हैं। भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से बिहार से सटा होने के कारण, पूर्वांचल की राजनीति पर बिहार के चुनावी नतीजों का सीधा और गहरा असर होता है।

यूपी के चंदौली, गाजीपुर और बलिया जैसे पूर्वांचल के जिले सीधे तौर पर बिहार के कैमूर, बक्सर, रोहतास और सारण जैसे सीमावर्ती जिलों से सटे हुए हैं। इन सीमावर्ती क्षेत्रों में एक जैसी जातीय संरचना, समान सामाजिक मुद्दे और रोजी-रोटी के लिए दोनों राज्यों के बीच लगातार आवागमन रहता है।

यदि बिहार में किसी विशेष सामाजिक समूह पर आधारित राजनीतिक प्रयोग सफल होता है, तो उसका अनुकरण पूर्वांचल की सियासत में शुरू हो जाता है, जिससे यहां की क्षेत्रीय पार्टियों और राष्ट्रीय दलों की रणनीति पूरी तरह से बदल जाती है।

जातिगत ध्रुवीकरण और मंडल की राजनीति का पुनः उदय

बिहार का चुनाव परिणाम उत्तर प्रदेश में जातिगत ध्रुवीकरण की हवा को तय करने वाला एक बड़ा कारक बनेगा। बिहार में मुख्य रूप से ओबीसी (OBC) और दलित वोट बैंक पर केंद्रित राजनीति हावी रही है। विशेष रूप से, बिहार के सीमावर्ती जिलों में रहने वाले यादव, कुर्मी, और दलित समुदाय के वोट पैटर्न का सीधा असर पूर्वांचल के समीपवर्ती जिलों के मतदाताओं पर पड़ता है।

यदि बिहार में सामाजिक न्याय के मुद्दों पर आधारित किसी गठबंधन को बड़ी जीत मिलती है, तो उत्तर प्रदेश में भी प्रमुख विपक्षी दल तुरंत ही इसी समीकरण को साधने की कोशिशें तेज कर देंगे। यह खासकर क्षेत्रीय दलों जैसे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के लिए महत्वपूर्ण होगा, जो अपने पारंपरिक वोट बैंक को एकजुट करने के लिए बिहार के सफल फॉर्मूले का इस्तेमाल कर सकती हैं।

सत्ता विरोधी लहर का प्रभाव और पलायन के मुद्दे

बिहार में अगर सत्तारूढ़ दल के खिलाफ एक मजबूत सत्ता विरोधी लहर सामने आती है और इसका फायदा विपक्षी गठबंधन को मिलता है, तो उत्तर प्रदेश में सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।

पूर्वांचल क्षेत्र, जो अक्सर जातीय आधार पर विभाजित रहता है, बिहार का परिणाम यह संकेत देगा कि क्या जनता अब क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दों जैसे पलायन और बेरोजगारी को अधिक महत्व दे रही है। चुंकि बिहार और यूपी के सीमावर्ती जिलों में बड़ी संख्या में लोग काम की तलाश में शहरों की ओर पलायन करते हैं, इसलिए बिहार चुनाव के दौरान पलायन को रोकने के वादे और नीतियों का असर यूपी के मतदाताओं पर भी पड़ेगा।

यदि बिहार में बड़ा बदलाव आता है, तो भाजपा को उत्तर प्रदेश के आगामी चुनावों के लिए अपनी नीतियों पर ध्यान केंद्रित करना पड़ेगा।

राष्ट्रीय दलों की रणनीति में बदलाव और सीमावर्ती क्षेत्रों में प्रचार का महत्त्व

बिहार के नतीजे राष्ट्रीय पार्टियों, विशेष रूप से कांग्रेस और भाजपा, की उत्तर प्रदेश इकाई के लिए भविष्य की दिशा तय करेंगे। बिहार चुनाव के दौरान सीमावर्ती जिलों जैसे कैमूर, बक्सर, रोहतास, सारण, और पश्चिमी चंपारण में होने वाले राजनीतिक प्रचार और रैलियों की गूंज सीधे तौर पर यूपी के बलिया, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, और सोनभद्र तक पहुंचती है।

यदि बिहार में महागठबंधन बिहार में अच्छा प्रदर्शन करता है, तो उत्तर प्रदेश में वह क्षेत्रीय दलों के साथ सौदेबाजी की बेहतर स्थिति में होगी। वहीं, भाजपा की जीत उसके कोर वोट बैंक को और मजबूत करेगी। इसलिए, दोनों ही राज्यों की सीमा से लगे क्षेत्रों में जीत-हार का संदेश यूपी की 403 विधानसभा सीटों के लिए भविष्य का खाका खींचने में निर्णायक साबित होगा।


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