मथुरा हादसा: क्या है 'माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए' तकनीक? जिससे जली हुई हड्डियों से भी हो सकेगी मृतकों की सटीक पहचान

क्या है माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए तकनीक? जिससे जली हुई हड्डियों से भी हो सकेगी मृतकों की सटीक पहचान
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माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए केवल मां से संतान में ट्रांसफर होता है। 

सामान्य डीएनए टेस्ट फेल होने के बाद, आगरा लैब के विशेषज्ञ जली हुई हड्डियों और दांतों से डीएनए निकालकर मृतकों की शिनाख्त करेंगे।

आगरा : मथुरा के यमुना एक्सप्रेसवे पर हुए दर्दनाक हादसे के बाद प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती उन शवों की पहचान करना है जो पूरी तरह जलकर कोयला हो चुके हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 10 मृतकों की पहचान तो सामान्य डीएनए से हो गई है, लेकिन शेष शवों के अवशेषों की शिनाख्त के लिए अब 'माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए' (mtDNA) तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा।

आगरा विधि विज्ञान प्रयोगशाला के विशेषज्ञों ने इस उन्नत तकनीक के जरिए उन परिवारों को उनके अपनों के अवशेष सौंपने की तैयारी शुरू कर दी है, जिनकी पहचान अब तक नहीं हो सकी है।

पहचान के लिए नई 'माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए' तकनीक का सहारा

हादसे में कुछ शव इस कदर जल गए थे कि उनमें सामान्य न्यूक्लियर डीएनए पूरी तरह नष्ट हो चुका है। ऐसी स्थिति में अब माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए तकनीक का उपयोग किया जाएगा।

यह डीएनए कोशिका के भीतर सुरक्षित रहता है और आग की भीषण तपिश में भी जल्दी खत्म नहीं होता। विशेषज्ञों का मानना है कि जली हुई हड्डियों और दांतों के भीतर से यह डीएनए प्राप्त कर उन मृतकों का पता लगाया जा सकेगा, जिनकी पहचान के अन्य सभी रास्ते बंद हो चुके हैं।

क्या होती है 'माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए' (mtDNA) तकनीक

​माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए शरीर की कोशिकाओं के भीतर 'माइटोकॉन्ड्रिया' में पाया जाता है। सामान्य डीएनए कोशिका के केंद्र में होता है और आग या सड़न में जल्दी नष्ट हो जाता है, लेकिन mtDNA की हजारों कॉपियां एक ही कोशिका में होने के कारण यह बहुत अधिक टिकाऊ होता है।

यह तकनीक उन स्थितियों में रामबाण साबित होती है जहा शव के नाम पर केवल जली हुई हड्डियां या दांत ही बचते हैं। वैज्ञानिक हड्डियों के पाउडर या दांतों के 'पल्प' से इस डीएनए को निकालकर लैब में विकसित करते हैं और फिर रिश्तेदारों के नमूनों से उसका मिलान करते हैं।

माता के पक्ष से मिलान कर की जाएगी शिनाख्त

इस नई तकनीक की प्रक्रिया सामान्य डीएनए टेस्ट से थोड़ी अलग और जटिल है। माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए केवल मां से संतान में ट्रांसफर होता है। इसलिए, लैब में वैज्ञानिक मृतक के अवशेषों से मिले डीएनए का मिलान उसकी मां, सगे भाई-बहन या ननिहाल पक्ष के किसी करीबी रिश्तेदार के डीएनए से करेंगे।

यह टेस्ट उन मामलों में आखिरी उम्मीद होता है जहाँ शरीर का कोई भी हिस्सा सही सलामत न बचा हो, केवल हड्डियां ही शेष हों।

अत्यधिक जलने के कारण सामान्य टेस्ट हुए फेल

यमुना एक्सप्रेसवे के माइलस्टोन-127 पर हुई भीषण भिड़ंत के बाद लगी आग इतनी तेज थी कि कई शव हड्डियों के ढांचे में तब्दील हो गए थे। प्रशासन के लिए चुनौती तब बढ़ गई जब तीन शवों का सामान्य डीएनए मिलान सफल नहीं हो सका।

चूंकि सामान्य टेस्ट के लिए जीवित ऊतकों (Tissues) की जरूरत होती है और वे आग में पूरी तरह जल चुके थे, इसलिए अब वैज्ञानिक इस नई और उन्नत पद्धति की ओर बढ़े हैं ताकि किसी भी प्रकार की त्रुटि के बिना सही व्यक्ति की पहचान हो सके।

प्रक्रिया में लगेगा समय, परिजनों को रिपोर्ट का इंतजार

मथुरा पुलिस और आगरा एफएसएल के अधिकारियों के अनुसार, माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए की प्रक्रिया सामान्य टेस्ट के मुकाबले अधिक समय लेती है। वर्तमान में विशेषज्ञों की टीम नमूनों को प्रोसेस करने में जुटी है।

जैसे ही इस तकनीक के माध्यम से मिलान पूरा होगा, पहचान की आधिकारिक पुष्टि कर अवशेषों को उनके वारिसों को सौंप दिया जाएगा। प्रशासन का कहना है कि वे पूरी सावधानी बरत रहे हैं ताकि हर परिवार को उनके सही प्रियजन के अवशेष मिल सकें।


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