यूपी में लंपी वायरस का कहर: 7 जिलों में पशु लॉकडाउन! जानें बीमारी के लक्षण और बचाव के उपाय

Lumpy virus in UP
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उत्तर प्रदेश के 7 जिलों में लंपी वायरस का प्रकोप, पशुओं की आवाजाही पर रोक। जानें लक्षण, बचाव व सरकार की गाइडलाइंस।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में इन दिनों लंपी वायरस का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है, जिसने पशुपालकों और प्रशासन दोनों की चिंता बढ़ा दी है। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। लंपी वायरस से प्रभावित सात जिलों में पशु लॉकडाउन की घोषणा की गई है।

इस आदेश के तहत सोनभद्र, चंदौली, गाजीपुर, बलिया, देवरिया, कुशीनगर और महाराजगंज में पशुओं के आवागमन पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। साथ ही, इन जिलों में किसी भी तरह के पशु मेले या हाट के आयोजन पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है, ताकि संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। यह खबर उन पशुपालकों के लिए महत्वपूर्ण है जिनके पशु इस बीमारी से प्रभावित हो रहे हैं।

लंपी वायरस क्या है?

लंपी वायरस एक संक्रामक वायरल रोग है जो मुख्य रूप से गायों और भैंसों को प्रभावित करता है। इसे कैप्रिपॉक्स वायरस के कारण होने वाली एक बीमारी माना जाता है।

यह बीमारी पशुओं की त्वचा पर गांठें या सूजन पैदा करती है, जो बाद में घाव का रूप ले लेती हैं। भले ही यह रोग मनुष्यों को सीधे तौर पर प्रभावित नहीं करता है, लेकिन इससे दूध उत्पादन में भारी कमी आती है और पशुओं की मृत्यु भी हो सकती है, जिससे पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। यह वायरस एक पशु से दूसरे पशु में बहुत तेजी से फैलता है, इसलिए इसकी रोकथाम के लिए तुरंत उपाय करना बहुत जरूरी है।

लंपी वायरस के प्रमुख लक्षण

लंपी वायरस से संक्रमित पशुओं में कई तरह के लक्षण दिखाई देते हैं, जिन्हें पहचानना बहुत जरूरी है। सबसे पहला और सबसे आम लक्षण है तेज बुखार। इसके बाद, पशु की आंखों और नाक से पानी बहना शुरू हो जाता है। धीरे-धीरे, पशु के पूरे शरीर पर, खासकर सिर, गर्दन, थन और जननांगों पर, दो से पांच सेंटीमीटर के आकार की गांठें बनने लगती हैं। इन गांठों में पस भर जाता है और वे फूटने लगती हैं, जिससे गहरे घाव हो जाते हैं। इसके अलावा, पशु खाना-पीना छोड़ देता है, दूध उत्पादन में भारी कमी आती है, और पशु कमजोर हो जाता है। यदि समय पर इलाज न किया जाए, तो स्थिति गंभीर हो सकती है।

कैसे फैलता है यह संक्रमण?

लंपी वायरस मुख्य रूप से कीट-पतंगों जैसे कि मच्छर, मक्खी और टिक्स के काटने से फैलता है। ये कीट संक्रमित पशु का खून चूसकर दूसरे स्वस्थ पशु तक वायरस पहुंचाते हैं। इसके अलावा, संक्रमित पशुओं के साथ सीधे संपर्क में आने से भी यह बीमारी फैल सकती है। साझा किए गए पानी, भोजन और बर्तनों के माध्यम से भी वायरस का प्रसार संभव है। यही वजह है कि सरकार ने पशुओं के आवागमन पर रोक लगाई है ताकि संक्रमण को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने से रोका जा सके। खासकर बिहार और नेपाल की सीमा से लगे जिलों में विशेष सावधानी बरती जा रही है, क्योंकि इन क्षेत्रों में संक्रमण का खतरा अधिक है।

बचाव और रोकथाम के उपाय

इस बीमारी से बचाव के लिए सबसे जरूरी है सावधानी और स्वच्छता। पशुपालकों को सलाह दी जाती है कि वे संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से तुरंत अलग कर दें। पशुओं के बाड़े को साफ-सुथरा रखें और नियमित रूप से कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करें ताकि मक्खी-मच्छरों को खत्म किया जा सके। सरकार ने इस बीमारी की रोकथाम के लिए टीकाकरण अभियान भी शुरू किया है।

सोर्स: हरिभूमि लखनऊ ब्यूरो

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